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संपादकीय : क्या सौदा हुआ?

भारत एक संप्रभु एवं स्वतंत्र राष्ट्र है। किसी भी बाहरी राष्ट्र को हमारे राष्ट्र के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, लेकिन अमेरिका के प्रेसिडेंट ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष में हस्तक्षेप किया है और भारत ने ट्रंप के युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। ट्रंप ने अपने ‘एक्स’ अकाउंट पर पारस्परिक रूप से घोषणा की कि भारत ने युद्धविराम स्वीकार कर लिया है। तब तक भारतवासियों और भारतीय सेना को इस युद्धविराम के बारे में जानकारी नहीं थी। प्रेसिडेंट ट्रंप को सरपंच का यह अधिकार किसने दिया? १९७१ के भारत-पाक युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच हुए शिमला समझौते के अनुसार, तीसरे देशों को दोनों देशों के बीच संघर्ष में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन अब भारत के प्रधानमंत्री ने ही शिमला समझौते का उल्लंघन किया। भारत ने ट्रंप के दबाव के आगे झुककर युद्धविराम को मंजूरी दे दी, लेकिन क्या ‘ऑपरेशन सिंदूर’ या पाकिस्तान का बदला पूरा हो गया है? इसका जवाब देश को नहीं मिला। पाकिस्तान अभी भी उसी तरह खड़ा है और पाकी प्रधानमंत्री ने यह घोषणा करके कि ‘हमने युद्ध जीत लिया है’, पहलगाम हमले में सिंदूर खोने वाली २६ बहनों के घावों पर नमक छिड़क दिया। जबकि यह सब हो रहा है, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। युद्ध शुरू होने से पहले गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में गरजते हुए कहा था कि पाक अधिकृत कश्मीर भारत का ही हिस्सा है। हम इसके लिए अपनी जान दे देंगे, लेकिन जब भारतीय सेना इस कश्मीर को लेने के लिए आगे बढ़ी तो मोदी-शाह ने सीधे युद्धविराम स्वीकार कर लिया और प्रेसिडेंट ट्रंप के सामने शरणागत हो गए। पाकिस्तान के साथ संघर्ष में कल तक सात जवानों का बलिदान हुआ, क्या वे व्यर्थ गए? पाक हमले में पुंछ, राजौरी में १२ निर्दोष नागरिक मारे गए उनकी क्या गलती थी? पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू होते ही प्रधानमंत्री मोदी का जोश इस तरह था कि अब वे पीछे नहीं हटेंगे। मोदी के जोश के चलते देश और सेना में
नई ऊर्जा
का निर्माण होते ही प्रेसिडेंट ट्रंप ने विघ्न डाल दिया। पाकिस्तान के हमले में सात भारतीय जवान शहीद हुए। इन्हीं में से एक हैं मुंबई के मुरली नाईक और इस युवा शहीद की उम्र महज २३ साल है। उरी सेक्टर में पाकिस्तानी गोलीबारी का जवाब देते हुए मुरली नाईक और दिनेश शर्मा वीरतापूर्वक शहीद हो गए। दिनेश शर्मा भी एक युवा सिपाही हैं। दोनों पुंछ सेक्टर में पाकिस्तान से भिड़ गए। उन्होंने देश के लिए अद्वितीय वीरता दिखाई और भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे हजारों दिनेश शर्मा, मुरली नाईक भारतीय सीमा पर लड़ रहे हैं और सीने पर गोलियां खा रहे हैं। मुरली नाईक के माता-पिता घाटकोपर की झोपड़पट्टी में रहते हैं। मेहनत-मजदूरी करके घर चलाते हैं। भारत माता की रक्षा के लिए देश की सीमा पर लड़ते हुए एक इकलौता बेटा शहीद हो गया। मुरली के पिता ने कहा ‘मुझे गर्व है कि मेरा बेटा देश के लिए न्योछावर हो गया है’, लेकिन उन्हें भी कलेजे के टुकड़े को खोने का दुख तो होगा ही। जिन्हें युद्ध का राजनीतिक उन्माद चढ़ा है, उन्हें यह याद रखना चाहिए। जो युद्ध के राजनीतिक उन्माद में बेहोश हो चुके हैं, जिन्होंने कभी देश के लिए त्याग नहीं किया, न ही चवन्नी का साहस दिखाया, लेकिन ऐसा प्रचारित किया जा रहा है जैसे यह युद्ध भारतीय जनता पार्टी और उसके अपने लोग ही लड़ रहे हैं। इस प्रचार की असलियत सामने लाने वाले ‘द वायर’, ‘४ पीएम’ जैसे समाचार संस्था को सरकार ने बंद कर दिया। ‘पुण्यप्रसून’ वाजपेयी के चैनल को भी बंद कर दिया गया। गोदी मीडिया के उन्माद को खुली छूट देने के लिए युद्ध के दौरान सच बोलनेवालों का गला घोंट दिया गया और अब संप्रभुता का सार ही खो बैठे हैं। युद्धविराम का खेल शुरू होने के बाद भी रक्षा मंत्री ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को खींच रहे हैं। यद्यपि
मूल प्रश्न आज भी बना
हुआ है कि वे छह आतंकवादी आए कैसे और कैसे गायब हो गए? उनके ठौर-ठिकाने का पता क्यों नहीं लगा? ये सवाल पूछे जाएंगे। गुरुवार की मध्य रात जम्मू के सांबा सेक्टर से भारत में घुसपैठ की कोशिश कर रहे ‘जैश-ए-मोहम्मद’ आतंकी संगठन के सात आतंकियों को सीमा सुरक्षा बल के वीर जवानों ने मार गिराया। इन जवानों ने पाकिस्तानी सीमा पर स्थित पोस्ट को तबाह कर दिया। यह सराहनीय है और प्रत्येक भारतीय नागरिक को उस कार्रवाई पर गर्व होना चाहिए। अगर भारतीय सीमा पर जैश के सात आतंकियों की घुसपैठ रोक उन्हें मार गिराया जाता है तो पहलगाम के पर्यटक स्थल पर घुसपैठ कर अंधाधुंध हमला करनेवाले आतंकवादियों को वैâसे अंदर घुसने दिया गया? कैसे खुला छोड़ दिया गया? कैसे उन्हें २६ बहनों का सिंदूर पोंछने दिया गया और ऐसा करने के बाद उनका क्या हुआ? ये सवाल उठते हैं। उन सवालों को पूछने को अपराध ठहराते हुए अखबारों, समाचार चैनलों और समाचार संगठनों का गला घोंटना लोकतंत्र में आतंकवादी कृत्य माना जाना चाहिए। भारतीय सेना, वायुसेना ने पाकिस्तान द्वारा भारत पर छोड़े गए ड्रोन, मिसाइलों को नाकाम कर दिया। पाकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया गया, लेकिन ये सब करते हुए पहलगाम हमले को अंजाम देनेवाले छह आतंकियों का सही ठिकाना पता नहीं चल सका। भारत-पाकिस्तान युद्ध की चिंगारी उन्हीं छह आतंकियों ने लगाई और चिंगारी भड़क उठी, लेकिन जलती होली पर प्रेसिडेंट ट्रंप ने पानी डाला और सरकार उस होली का शोर मचा रही है। प्रेसिडेंट ट्रंप भारत और पाकिस्तान के बीच शांति चाहते हैं, लेकिन प्रेसिडेंट ट्रंप महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला नहीं हैं। वे एक व्यापारी हैं। भारत के सत्ताधारी व्यापारियों ने अमेरिका के व्यापारी प्रेसिडेंट से हाथ मिला लिया है। प्रेसिडेंट ट्रंप ने इजरायल-फिलिस्तीनी युद्ध को नहीं रोका है। वहां वे सीधे इजरायल का समर्थन करते हुए ‘गाजा’ के लोगों को खत्म होते देखते हैं और भारत को शांति का उपदेश देते हैं। क्या प्रेसिडेंट ट्रंप ने भारत की संप्रभुता खरीद ली है? किसके बदले में? सौदा वास्तव में क्या था? देश को पता होना चाहिए!

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