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संपादकीय : गडकरी का क्या होगा?

भारतीय जनता पार्टी ने १९५ लोकसभा उम्मीदवारों की पहली फेहरिस्त घोषित कर दी है। पहली फेहरिस्त में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का नाम नहीं है इस बात पर हैरान होने की कोई बात नहीं। गडकरी स्पष्ट वक्ता हैं। (कल ही उन्होंने कहा था कि देश के किसान और मजदूर दुखी हैं।) वे किसी के सामने ‘हां जी, हां जी’ करने वाले नहीं हैं। माना जाता है कि पिछले दस सालों में देश में जो विकास हुआ है, उसमें सड़क निर्माण मंत्रालय का सबसे बड़ा योगदान है, जिसे गडकरी संभालते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने गडकरी द्वारा बनाई गई कई राष्ट्रीय परियोजनाओं का उद्घाटन किया, लेकिन उन्होंने उस काम का श्रेय गडकरी को नहीं दिया। मंत्रिमंडल और भाजपा में नितिन गडकरी एकमात्र ऐसे नेता हैं जो मोदी-शाह की दादागीरी के सामने नहीं झुकते। गडकरी की प्रेरणा छत्रपति शिवाजी महाराज हैं। इसलिए स्वाभिमान और गौरव की एक मजबूत रीढ़ इस मराठी नेता को हासिल है। इसे गडकरी की चुनौती कहें या डर का एहसास मोदी-शाह के व्यापार मंडल को जरूर होगा। इसी डर के चलते नितिन गडकरी का २०२४ के चुनाव से हटना तय लग रहा है। पार्टी में उनके चाहने वाले इस बात से जरूर दुखी होंगे कि पहली फेहरिस्त में गडकरी का नाम नहीं है। विनोद तावड़े भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं। उन्होंने १९५ नामों की घोषणा की। इसमें गडकरी शामिल नहीं हैं। पहली फेहरिस्त में क्यों नहीं है गडकरी का नाम? यह भारतीय जनता पार्टी का आंतरिक मामला है; लेकिन १९५ नामों की घोषणा करते वक्त तावड़े को ये मलाल भी महसूस हुआ होगा। जिस विनोद तावड़े की २०१९ में मोदी-शाह ने उम्मीदवारी नकारी, उसी तावड़े ने ‘गडकरी’ को छोड़कर १९५ उम्मीदवारों की फेहरिस्त की घोषणा की। २०२४ में पार्टी में किसी से चुनौती न मिले और चुनौती बन सकते हैं गडकरी। मोदी ने ‘अबकी बार, चार सौ पार’ का नारा दिया। यह सच नहीं है, यह सब हवाबाजी है। अगर भाजपा का खेल २३०-२३५ पर खत्म हुआ तो भाजपा में बगावत हो जाएगी और सिवाय मोदी-शाह के अगर भाजपा सरकार बनाने की कोशिश करती है तो नितिन गडकरी के नाम को सर्वमान्यता मिलेगी, इस एक डर की वजह से गडकरी का पत्ता काटने का दांव-पेंच चलता दिख रहा है। राजनाथ सिंह बिना रीढ़ वाले नेता हैं। वे पार्टी के अंदर या बाहर किसी तरह की चुनौती नहीं दे सकते। दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मंच पर देश ने ‘हार’नाट्य देखा। प्रधानमंत्री मोदी के लिए मंच पर आई बड़ी हार। जब वह हार मोदी के गले में डाला जा रहा था, तो जैसे ही राजनाथ सिंह ने उस हार में अपना सिर डाला, अमित शाह ने अपनी आंखें तरेरी और राजनाथ सिंह ने अपना सिर हार से बाहर निकाल लिया। मंच पर राजनाथ के बगल में नितिन गडकरी भी मौजूद थे। वह इस नौटंकी में बिल्कुल भी शामिल नहीं हुए और एक स्वाभिमानी मराठी व्यक्ति की तरह उन्होंने व्यवहार किया। ऐसे मजबूत रीढ़ वाले, स्वाभिमानी मराठी आदमी को मौजूदा दिल्ली व्यापार मंडल वैâसे बर्दाश्त कर सकता है? सीधा हिसाब यह लगता है कि गडकरी दिल्ली में नहीं चाहिए क्योंकि २०२४ के चुनावों के बाद दिल्ली में राजनीतिक तस्वीर अस्थिर होगी और उस अस्थिरता के दौरान सभी दल को वे मान्य होंगे। गडकरी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। उन्हें अध्यक्ष पद का दूसरा टर्म न मिले इसलिए भाजपा में गंदी राजनीति हुई। गडकरी से जुड़ी कंपनियों पर इनकम टैक्स के छापे मारे गए। गडकरी को काफी बदनाम किया गया और उन्हें दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से रोका गया। इसके पीछे भाजपा का मौजूदा व्यापार मंडल था। अगर गडकरी दूसरी बार भाजपा अध्यक्ष बन जाते तो राष्ट्रीय राजनीति में मोदी-शाह का उदय नहीं होता। राजनाथ सिंह ने भाजपा अध्यक्ष के रूप में गडकरी की जगह ली और घोषणा की कि मोदी प्रधानमंत्री पद का चेहरा होंगे। २०१४ में देश में यह हादसा हुआ था। इसका परिणाम देश भुगत रहा है। लोकतंत्र, आजादी, संविधान… सब खतरे में हैं और चुनाव जीतने के लिए निरंकुशता चल रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परंपरा में तैयार गडकरी आज भी मजबूती से अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। पिछले दस साल में गडकरी को अपमानित करने का एक भी मौका व्यापार मंडल ने नहीं छोड़ा। अब तो कहर टूट पड़ा है। भाजपा के लोकसभा उम्मीदवारों की पहली फेहरिस्त में भ्रष्टाचार के आरोपी मुंबई के कृपा शंकर सिंह का नाम है। प. बंगाल की आसनसोल सीट से विवादित भोजपुरी नट पवन सिंह के नाम का एलान हो गया है। अनेक ऐरे-गैरों के नाम भाजपा की पहली फेहरिस्त में है, लेकिन नितिन गडकरी को पहली फेहरिस्त से बाहर कर दिया गया। यह गडकरी को उनकी जगह दिखाने की कोशिश है। संदेश साफ है कि यदि आप व्यापार मंडल की बात नहीं मानेंगे, जी-हुजूरी नहीं करेंगे तो आपको दंडित किया जाएगा। अगर गडकरी को उम्मीदवारी से वंचित किया गया तो देवेंद्र फडणवीस को नागपुर से उम्मीदवार बनाया जाएगा और फडणवीस भी बड़े उत्साह के साथ नागपुर के दूल्हे के रूप में घोड़े पर बैठेंगे। २०१४ में जब फडणवीस मुख्यमंत्री बने, तो वह कुछ भी नहीं थे। एकनाथ खडसे या नितिन गडकरी में से किसी एक को मुख्यमंत्री होना चाहिए था। भाजपा विधायक गडकरी को नेता मानते थे। अगर गडकरी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन जाते तो आज भाजपा जिस तरह की असभ्य कीचड़ बन गई है, बदले की राजनीति कर रही है, उसे कुछ हद तक रोका जा सकता था, लेकिन मध्य प्रदेश में मोहनलाल यादव, राजस्थान में जिन्हें कोई नहीं जानता भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसी तरह २०१४ में फडणवीस को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। तब से, राज्य की संस्कृति और संस्कारों की गाड़ी उतरने लगी और रुकी नहीं है। फडणवीस के कंधे का इस्तेमाल कर गडकरी पर हमले जारी हैं और महाराष्ट्र के नेताओं को एक-दूसरे के खिलाफ भिड़ाने का खेल दिल्ली ने जारी रखा है। नितिन गडकरी, वसुंधराराजे शिंदे, शिवराजसिंह चौहान भाजपा के असली नेता हैं। उन्होंने वाजपेयी-आडवाणी के नेतृत्व में लंबे समय तक काम किया। उन्होंने देशभक्ति का व्यापार नहीं होने दिया और इन नेताओं ने भाजपा के वैचारिक पतन को रोकने की पहल की। इन सभी के पंख काट दिए गए। गडकरी छत्रपति शिवराय के असीम भक्त। गडकरी की पीठ पर वार करने की साजिश रची गई है क्या?

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