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संपादकीय : व्हाइट हाउस की हार!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने सनकी और अहंकारी स्वभाव के कारण न केवल विश्व राजनीति में बल्कि खुद अमेरिका में भी दिन-ब-दिन अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। वे लाइव शो में आए हुए राष्ट्रपतियों से ताव में आकर लड़ बैठते हैं, हिदुस्थान-पाक युद्ध में युद्धविराम की घोषणा करते हैं और अरबपति उद्यमी एलन मस्क से सार्वजनिक रूप से बहस करते हैं, जिनकी मदद से उन्होंने चुनाव जीता था। ट्रंप के सनकी और अपरिपक्व व्यवहार के कारण, जो एक महाशक्ति के प्रमुख के लिए अशोभनीय है, दुनियाभर में अमेरिका की हंसी हो रही है और अब अमेरिकी लोग भी उनका मजाक उड़ाने लगे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप मनमाने तरीके से फैसले लेते हैं और फिर अमेरिकी अदालतें उनके पैâसलों को या तो रद्द कर देती हैं या स्थगित कर देती हैं। अदालत में बार-बार मुंह की खाने के बावजूद, ‘हम करें सो कायदा’ के तानाशाही रवैये के कारण ट्रंप हर दिन नए फैसले लेते रहते हैं और अदालतें उन्हें विफल कर देती हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ताजा पैâसले के साथ भी यही हुआ। राष्ट्रपति ट्रंप ने बुधवार को एक फरमान जारी कर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले की घोषणा की। हार्वर्ड वास्तव में एक अव्वल दर्जे का वैश्विक विश्वविद्यालय है, लेकिन ट्रंप ने एक विचित्र दावा करते हुए कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों को प्रवेश देना अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होगा,
विदेशी छात्रों का प्रवेश
बंद कर दिया। यह प्रवेश बंदी ६ महीने के लिए लगा दी गई। आदेश में कहा गया था कि विदेश मंत्री मार्को रुबियो यह तय करेंगे कि विश्वविद्यालय में वर्तमान में अध्ययन कर रहे विदेशी छात्रों के वीजा को रद्द किया जाए या नहीं। इससे हार्वर्ड, कैंब्रिज और मैसाचुसेट्स में पढ़नेवाले हजारों विदेशी छात्रों में डर का माहौल पैदा हो गया। हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने अगले दिन राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले के खिलाफ अमेरिकी संघीय अदालत का रुख किया और २४ घंटे के भीतर अदालत ने अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले पर रोक लगा दी। हमारे यहां कितने भी जरूरी मामले हों, वे सालों तक अदालतों में अटके रहते हैं और भले ही असंवैधानिक सरकारें सब कुछ अवैध होने के बावजूद अपना कार्यकाल पूरा कर लें, लेकिन अदालत की तारीखें कभी खत्म नहीं होतीं। लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं होता। हमने ‘व्हाइट हाउस’ की कुछ मांगें नहीं मानी इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप ने बदले की भावना से विदेशी छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अदालत से इस अवैध फैसले को रोकने का अनुरोध किया और अदालत ने तुरंत इसे स्वीकार कर लिया। बुधवार को ट्रंप ने प्रतिबंध आदेश जारी किया और गुरुवार को अदालत ने देश के राष्ट्रपति के इस फैसले को रोक दिया। इसे अमेरिका में प्रगल्भ लोकतंत्र का एक बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है। अदालत ने इसी तरह ट्रंप के पिछले आदेशों को नौकरी में कटौती, जन्म के चलते मिलनेवाली नागरिकता, टैरिफ संबंधित फैसलों और कई अन्य आदेशों पर रोक लगा दी है। हार्वर्ड
अमेरिका का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय
है, जिसकी प्रतिष्ठा विश्वभर में है। शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान की इस मौलिक धरोहर को सहेजने के बजाय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पीछे हाथ धोकर लग गए और अंत में उनकी ही जग हंसाई हुई। इससे पहले ट्रंप ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को दिए जानेवाले १८,००० करोड़ रुपए के फंड को रोककर भी आलोचना झेली थी। हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने उसके खिलाफ भी अदालत में अपील की है। इन सभी मामलों में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साहस की भी सराहना की जानी चाहिए। जिस निर्भीकता के साथ हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने एक विश्व महाशक्ति के प्रमुख के सामने आत्मसमर्पण किए बिना ट्रंप का डटकर मुकाबला किया, उसका उदाहरण विश्व समुदाय को भी अपनाना चाहिए! जब सरकार बेलगाम हो जाए, तानाशाही तरीके से काम करने लगे और बदले की भावना से फैसले लेने लगे, उस समय अदालतों को सक्रिय होकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। इस मामले में अमेरिकी अदालतों की निष्पक्षता और नि:स्पृहता की सराहना की जानी चाहिए। राष्ट्रपति ट्रंप नए ‘तुगलक’ हैं और उनकी तुगलकी फरमानों को अमेरिकी न्याय व्यवस्था हर दिन कूड़े में फेंक रही है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों पर प्रतिबंध लगाने के हालिया फैसले को भी अमेरिकी अदालत ने २४ घंटे के भीतर ही रोक दिया। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी विरुद्ध व्हाइट हाउस की लड़ाई में आखिरकार यूनिवर्सिटी की जीत हुई। तानाशाही की हार हुई। एक यूनिवर्सिटी महाशक्ति के सामने आत्मसमर्पण किए बिना और निखर गई है। अमेरिकी व्यवस्था की यही खूबी स्वीकारने योग्य है!

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