पिछले साल दो लाख से ज्यादा लोगों द्वारा भारतीय नागरिकता छोड़ने की जानकारी सामने आई है। फिर ये जानकारी खुद केंद्र सरकार ने, वो भी संसद में दी है। पिछले कुछ वर्षों से देश के नागरिकों द्वारा अपना देश छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता स्वीकार करने का ‘ट्रेंड’ देखने में आया है। विलफुल डिफॉल्टर उद्योगपतियों और अरबपतियों के विदेश भागने के भी उदाहरण हैं। नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या जैसे कई लोगों ने भारतीय बैंकों को अरबों रुपए का चूना लगाया और केंद्र सरकार की आंखों के सामने भारत से भाग गए। आज वे दूसरे देशों के नागरिक बनकर ऐशो-आराम से रह रहे हैं और भारत सरकार उनकी ‘संपत्ति जब्ती’ का राग आलाप रही है। बीच-बीच में कुछ ऐसी हवा चलाई जाती है जैसे कि उन्हें तुरंत भारत लाया जा रहा है। लेकिन ऐसी हवाएं सिर्फ इसलिए चलाई जाती हैं ताकि उस हवा से उड़ने वाली धूल से आम लोगों की आंख में धूल झोंकी जा सके। केंद्र के वर्तमान शासक ऐसी धूल झोंकने में कुशल हैं। इसलिए देश से भागे लोग तो वापस भारत नहीं आते, उल्टे भारत में भारतीय नागरिकता छोड़कर दूसरे देशों में जाने वाले लोगों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। यह जानकारी खुद विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने गुरुवार को संसद में दी। मंत्री महोदय ने कहा, पिछले साल लगभग २ लाख १६ हजार २१९ लोगों ने भारतीय नागरिकता त्याग कर देश छोड़ दिया। २०२२ में यह संख्या करीब सवा दो लाख थी। २०२३ का आंकड़ा थोड़ा कम है। लेकिन ये साफ है कि मोदी राज में किस तरह लोगों का देश छोड़ने का सिलसिला जारी है। २०२१ में १ लाख ६३ हजार ३७० लोगों ने भारतीय नागरिकता का त्याग किया। २०१९ में यही संख्या १ लाख ४० हजार थी। इसका मतलब यह है कि पिछले कुछ सालों में देश छोड़ने वाले लोगों की संख्या में बिल्कुल भी कमी नहीं आई है। इसके विपरीत अब यह संख्या दो लाख से ऊपर हो गई है। पिछले महीने विदेशी निवेश फर्म ‘हेन्ली एंड पार्टनर्स’ की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि २०२४ में ४,००० से अधिक भारतीय करोड़पति देश छोड़ देंगे। यह सब भयानक है। मोदी सरकार दस साल से ‘सबका साथ, सबका विकास’ की शेखी बघार रही है। वहीं भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है, इसे वैâसा विकास कहा जा सकता है? हालांकि, नागरिकता छोड़ने के कारण हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं, लेकिन बढ़ती दर चिंताजनक है। बड़ी संख्या में लोगों का भारतीय नागरिकता छोड़ना और साथ ही भारतीय नागरिकता की स्वीकार्यता में कमी आना मोदी सरकार की ‘नीति’ और ‘नीयत’ पर सवालिया निशान है। यह मोदी सरकार के कथित विकास का घिनौना चेहरा है। मोदी कहते हैं कि दुनिया भर के निवेशकों की नजर इस समय भारत की ओर लगी है, लेकिन फिर घरेलू अरबपतियों की नजरें विदेशों की ओर क्यों लगी हैं? भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या क्यों बढ़ रही है? प्रधानमंत्री देश के उद्योगों से ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने में योगदान देने की अपील करते हैं, लेकिन क्या वाकई देश में ऐसा माहौल है? पिछले दस वर्षों में देश का राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक वातावरण धूमिल हो गया है। फिर भी प्रधानमंत्री मोदी अपनी आदतानुसार हमेशा की तरह ‘विकसित भारत’ के गुब्बारे उड़ाते रहते हैं। जनता को पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का सपना दिखा रहे हैं। लेकिन जिन भारतीयों के लिए आप विकास के ये रंग-बिरंगे गुब्बारे उड़ा रहे हैं, वे बड़ी संख्या में इस देश को क्यों छोड़ रहे हैं? स्वदेश के बजाय पराए देश को अपना मानने वालों की संख्या क्यों बढ़ रही है? वे आपके ‘विकसित भारत’ में रहें, उन्हें ऐसा क्यों नहीं लगता? आपके तथाकथित विकास का लाभ न तो देश के गरीबों को हो रहा है और न ही अमीरों को, क्या इस पलायन का मतलब भी यही नहीं है? गरीबों के पास भारत में रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और अमीरों के लिए यह संभव है इसलिए वे पराए देश को ‘अपना’ मान रहे हैं। क्या एक शासक के रूप में आपको यह तकलीफदेह नहीं लगता? इन सब की वजह क्या है, क्या आप कभी इस बात का आत्ममंथन करेंगे? सवाल कई हैं और इनका जवाब तो मोदी को ही देना है। बेशक, मणिपुर और कई अन्य ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दों पर मौन रहने वाले हमारे प्रधानमंत्री भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के मसले पर अपना मुंह खोलेंगे, इसकी संभावना कम ही है।