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मनोहर यात्रा का समापन…

मनोहर जोशी, शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के कट्टर शिवसैनिक के रूप में जाने जाते थे। यह भूमिका उन्होंने आखिरी सांस तक बनाए रखी। वे लोकसभा के अध्यक्ष थे। केंद्र में मंत्री थे। वे महाराष्ट्र राज्य में बालासाहेब ठाकरे द्वारा लाए गए ‘शिवशाही’ राज्य के मुख्यमंत्री थे। वे विधानसभा में विपक्ष के नेता भी थे। वे मुंबई के महापौर थे। उन्होंने संसदीय प्रणाली में हर पद पर काम किया, लेकिन उनकी असली पहचान शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के मजबूत सहयोगी और कट्टर शिवसैनिक के रूप में रही। संकट के समय वे शिवसेना के संकटमोचक थे। मनोहर जोशी के निधन से शिवसेना के वटवृक्ष की एक बड़ी शाखा गिर गई है। एक ज्वलंत काल का गवाह काल के पर्दे के पीछे चला गया। दत्ताजी सालवी, वामनराव महाडिक, मनोहर जोशी, दत्ताजी नलावडे, शरद आचार्य, सुधीर जोशी, मधुकर सरपोतदार ये सभी शिवसेना की स्थापना से बालासाहेब के शिलेदार थे, इन सभी ने शिवसेना के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन सभी अष्टप्रधान मंडल में मनोहर जोशी की स्थिति असाधारण विशिष्ट थी। इसका कारण उनका सशक्त व्यक्तित्व था। मोहरों को बिसात पर कब और वैâसे चलाना है उन्हें इस बात का ज्ञान था और उन्होंने राजनीति भी उसी तरह की। मनोहर जोशी ने राजनीति के साथ-साथ उद्योग, क्रिकेट और सामाजिक कार्यों में भी बेहतरीन काम किया, लेकिन देश लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उनके कार्य और महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनके योगदान को याद रखेगा। महाराष्ट्र में जब शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार सत्ता में आई, तब ‘यह शिवशाही है, महाराष्ट्र में शिवशाही आ गई है’, ऐसे उद्गार मुख्यमंत्री श्री मनोहर जोशी ने मंत्रालय के अधिकारियों के सामने व्यक्त किए थे। क्योंकि ‘शिवशाही’ शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे का सपना था और उस सपने को जोशी मुख्यमंत्री के तौर पर आकार देना चाहते थे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर एक ब्राह्मण व्यक्ति को बैठाने का साहस उस वक्त बालासाहेब ने दिखाया और जोशी ने उनके चुनाव को सही ठहराया। आलोचकों का बोलना था कि भले ही मनोहर जोशी मुख्यमंत्री हैं, लेकिन उनका रिमोट कंट्रोल ‘मातोश्री’ यानी बालासाहेब ठाकरे के पास है, लेकिन बिना धैर्य खोए मुख्यमंत्री जोशी कहते, ‘बालासाहेब का रिमोट कंट्रोल मेरे लिए आशीर्वाद है।’ मनोहर जोशी हाजिर जवाब थे, अच्छे प्रशासक और विपरीत परिस्थितियों से लड़ने वाले थे। कोकण के नांदवी से एक लड़का मुंबई आया। मधुकरी कर खाने लगा। पढ़ा-लिखा, उसने संघर्ष किया। शिवसेना के जरिए आगे बढ़ा और आखिर महाराष्ट्र और देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचा। मधुकरी कर जीने वाला यह लड़का आगे जाकर राजनीति के साथ-साथ होटल व्यवसाय में रम गया और रोज हजारों लोगों को खाना खिलाने लगा, इस बात की सराहना शिवसेनाप्रमुख करते थे। गरीबों के लिए एक रुपया में झुणका-भाकर योजना मनोहर जोशी के मुख्यमंत्रित्व काल में शुरू की गई। वह प्रचंड रूप से सफल रही और बाद में अन्य राज्यों ने भी इसका अनुसरण किया। मनोहर जोशी ने बालासाहेब के कई राजनीतिक अभियानों को फतेह किया। उन्होंने बालासाहेब की बात को कभी गिरने नहीं दिया। उनके शब्दों का सम्मान किया। उनके मुख्यमंत्री पद का इस्तीफा बालासाहेब ने एक पत्र देकर लिया था। मनोहर जोशी ने भी बालासाहेब के शब्द को प्रमाण मानकर तुरंत इस्तीफा दे दिया था। ‘क्यों?’ यह भी उन्होंने बालासाहेब से नहीं पूछा। क्योंकि बालासाहेब के शब्द का अर्थ है आदेश और उसका पालन करना, यही उनका सूत्र था। मराठी लोगों पर अन्याय के खिलाफ हर लड़ाई में मनोहर जोशी शिवसेनाप्रमुख के साथ सड़कों पर थे। उन्होंने पुलिस की लाठियां खाईं। जब सीमा मुद्दे पर मुंबई में मोरारजी देसाई की गाड़ी को रोकने की कोशिश की गई तो माहिम में शिवसेनाप्रमुख के साथ मनोहर जोशी थे। बाद में जब सीमा मुद्दे पर शिवसेनाप्रमुख को गिरफ्तार किया गया तो मनोहर जोशी यरवदा जेल में तीन महीने तक बालासाहेब के साथ थे। इस साथ को उन्होंने अंत तक रखा। वह मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। उन्होंने मराठी उद्यमियों के लिए एक वैश्विक मंच तैयार किया और मराठी युवाओं को उद्यमी के रूप में दुनिया में प्रवेश दिलाने के लिए लगातार प्रयास किया। उनके भाषण विद्वत्तापूर्ण होते थे। वे बाकायदा नोट्स के साथ बात करते और अपनी बात समझाने की कोशिश करते। शुरुआत में उन्होंने एक शिक्षक के रूप में काम किया और फिर एक छोटी क्लास से लेकर अब के कोहिनूर टेक्निकल इंस्टीट्यूट, कोहिनूर होटल्स, कोहिनूर कंस्ट्रक्शन तक वे शिखर तक पहुंचे। उनकी राजनीति और सामाजिक बुनियाद पक्की थी। शिवसेना के प्रति उनकी निष्ठा अटूट थी। नांदवी नाम के एक छोटे से गांव से शुरू हुआ उनका सफर ‘वर्षा’ और लोकसभा स्पीकर तक पहुंचा, लेकिन इस सफर के हर चरण पर ‘मातोश्री’ ही उनका पड़ाव था। महाराष्ट्र में ब्राह्मण एक अल्पसंख्यक वर्ग है। फिर भी शिवसेना की वजह से उस समुदाय के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बन सके। क्योंकि शिवसेनाप्रमुख ने हमेशा जाति से ऊपर उपलब्धि को माना। एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री बन गया, लेकिन शिवसेना बहुजन समुदाय की है इस बात का भान मनोहर जोशी ने रखा और महाराष्ट्र की सामाजिक एकता बनाए रखने के लिए उन्होंने काम किया। शिवसेना मनोहर जोशी की सांस थी। अनेक पतझड़ और झंझावातों में भी वे मजबूत जड़ों की तरह अविचल रहे। लोगों से मिलने के लिए वे हमेशा दादर के शिवसेना शाखा में बैठते थे। बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनका यह पसंदीदा काम भी बंद हो गया। उनकी पत्नी अनघाताई अचानक दुनिया छोड़कर चली गईं। उसके बाद वे अकेले रह गये। शिवसेना के पुराने जननेता, सुसंस्कृत राजनीतिज्ञ, महाराष्ट्र की प्रगति पर छाप छोड़ने वाले (पूर्व) मुख्यमंत्री मनोहर जोशी का निधन हो गया। मनुष्य को कभी न कभी जाना ही होता है, लेकिन उसके किए गए विलक्षण कार्य ही अंत में पीछे रह जाते हैं। भले ही मनोहर जोशी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका काम, एक निष्ठावान शिवसैनिक के रूप में उनकी पहचान हमेशा याद रहेगी। मनोहर जोशी के कंधों पर अंत तक भगवा रहा। वे वही भगवा कंधे पर लेकर चले गए। जो मिला वह शिवसेना की वजह से और वह भी भरपूर, इस बारे में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने शिवसेना के भगवा के प्रति अंत तक निष्ठा बनाए रखी। आज की तारीख में इस तरह की निष्ठा दुर्लभ हो गई है। सत्ता के लिए शिवसेना से भगवा से गद्दारी करनेवाले, दिल्लीश्वरों के सामने घाती और लाचार होनेवाले पैदा हो रहे हैं। मनोहर जोशी ने आखिर तक शिवसेना पर अपना ईमान कायम रखा। उनके निधन से एक कृतार्थ जीवन और मनोहर यात्रा का अंत हो गया। एक कट्टर शिवसैनिक, एक भावुक नेता हमारे बीच से चला गया। शिवसेनाप्रमुख मनोहर जोशी का उल्लेख ‘पंत’ कहकर करते थे। उन्होंने पंत की गरिमा को हमेशा बरकरार रखा। मनोहरपंत को महाराष्ट्र हमेशा याद रखेगा।

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