सामना संवाददाता / मुंबई
महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस बीमारी चिंता का सबब बनती जा रही है। आलम यह है कि प्रजनन आयु वर्ग की हर १० महिलाओं में से एक इसकी शिकार हैं। डॉक्टरों ने कहा है कि बीमारी का जल्द पता लगाने के लिए जन जागरूकता की जरूरत है। यह दर्दनाक स्थिति बांझपन का कारण बन सकती है इसलिए इसका तुरंत इलाज शुरू करना आवश्यक है। चिकित्सकों ने कहा है कि यह एक दीर्घकालिक स्त्री रोग संबंधी बीमारी है और इसका कोई निश्चित इलाज उपलब्ध नहीं है। इस बीमारी के लक्षण दिखते ही महिलाओं को तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि २० से ४० वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस के मामलों में २० फीसदी की वृद्धि देखी गई है। इस बीमारी के बारे में जागरूकता, समय पर रोग का पता लगाने और प्रभावी प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है।
बीमारी का जल्द नहीं चलता पता
चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी का कई वर्षों तक पता नहीं चल पाता है। इस वजह से यह महिलाओं के जीवन स्तर और प्रजनन क्षमता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। जेनोवा शेल्बी अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. स्वेथा लालगुडी ने कहा है कि एंडोमेट्रियोसिस महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इसके साथ ही यह प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे अंडे का निकलना, फर्टिलाइजेशन या गर्भाशय में गर्भधारण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
पूरी तरह से रुक सकती है एंडोमेट्रियोसिस
नई मुंबई के मदरहुड अस्पताल की प्रसूति व स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. सुरभि सिद्धार्थ ने कहा है कि एंडोमेट्रियोसिस को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, क्योंकि यह मुख्य रूप से शरीर में हार्मोनल असंतुलन, विशेष रूप से एस्ट्रोजन के अधिक स्तर या अनुवांशिकता के कारण होता है। हालांकि, स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। स्वच्छता बनाए रखना, नियमित व्यायाम करना, संतुलित आहार लेना, तनाव प्रबंधन और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच कराना महत्वपूर्ण है। नई मुंबई के मेडिकवर अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुरंजिता पल्लवी ने कहा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस का खतरा समान है।
क्या है एंडोमेट्रियोसिस?
एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें गर्भाशय की अंदरूनी परत के समान ऊतक गर्भाशय के बाहर विकसित हो जाते हैं। यह ऊतक आमतौर पर अंडाशय, पैâलोपियन ट्यूब या श्रोणी क्षेत्र में पाया जाता है। यह ऊतक मासिक धर्म चक्र के दौरान होने वाले परिवर्तनों के प्रति प्रतिक्रिया करता है, जिससे दर्द, सूजन और गांठें बन सकती हैं। इस बीमारी के मुख्य लक्षणों में तीव्र पेल्विक दर्द, दर्दनाक मासिक धर्म, थकान और कुछ मामलों में बांझपन शामिल है।