विजय कपूर
ये कैसा वीआईपी प्रोटोकॉल
इन दिनों छह दिन की ब्रिटेन यात्रा पर गए विदेश मंत्री एस. जयशंकर गुजरे ५ मार्च, २०२५ को जब लंदन के चौथम हाउस थिंक टैंक में ‘भारत का उदय और विश्व में भूमिका’ विषय पर संवाद सत्र में भाग लेकर वापस जा रहे थे, तभी एक खालिस्तानी आंदोलनकारी ने न सिर्फ उन पर बढ़कर हमले की कोशिश की, बल्कि विदेश मंत्री के सामने ही हमारे राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ दिया और देश के विरुद्ध अपमानजनक नारे लगाए। हालांकि, ब्रिटिश पुलिस ने इस शख्स को तुरंत दबोच लिया, लेकिन वो चाहती तो ऐसी नौबत ही न आने देती। हिंदुस्थान में हम किसी ब्रिटिश नागरिक के आसपास तो दूर ब्रिटिश हाई कमीशन से भी आंदोलनकारियों को ५० गज दूर रखते हैं। नई दिल्ली स्थित किसी भी विदेशी दूतावास या हाई कमीशन के बाहर जब भी कोई विरोध प्रदर्शन होता है तो पुलिस किसी तरह का जोखिम उठाते हुए प्रदर्शनकारियों को कम से कम ५० गज दूर रखती है। कोई गफलत पैदा न हो इसलिए ५० गज दूर एक रस्सी बांध दी जाती है।
लेकिन विदेशों में चाहे ब्रिटेन हो या कनाडा, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के नाम पर ये भारत विरोधी ताकतों को सिर पर चढ़ाकर रखते हैं। लंदन में वायरल हुए वीडियो से पता चलता है कि भारत विरोधी प्रदर्शनकारी विदेश मंत्री के ४-५ मीटर तक पहुंच गया था, यह खतरनाक हो सकता था। हालांकि, पूरे समय वहां ब्रितानी पुलिस मौजूद थी, लेकिन इसी वजह से तो यह और खतरनाक है। आमतौर पर वीआईपी प्रोटोकॉल के चलते सिर्फ किसी वीआईपी की जान की सुरक्षा का ही प्रोटोकॉल नहीं होता, बल्कि उसके निकट किसी अपमानजनक स्थितियां या असहज करनेवाला माहौल न पैदा हो, इसका भी ध्यान रखा जाता है। लेकिन इस संदर्भ में वायरल हुए वीडियो में दिख रहा है कि प्रदर्शनकारी ने विदेश मंत्री के नजदीक पहुंचकर न केवल तिरंगे को फाड़ा, बल्कि भारत के खिलाफ अपमानजनक नारे भी लगाए, जिसे साफ सुना जा सकता है। भारत सरकार को यह सब हल्के में नहीं लेना चाहिए, भले ब्रितानी प्रधानमंत्री ही क्यों न इस सबके लिए माफी मांग लें। क्योंकि वह एक औपचारिक माफी होगी, जबकि भारत के विरोधी तो पूरी दुनिया के सामने हमारा विरोध करने की अपनी कुटिल रणनीति में सफल ही हो गए।
लोकतंत्र के नाम पर
सवाल है ब्रिटेन हो या कनाडा, नीदरलैंड हो या अमेरिका, जर्मनी हो या प्रâांस। आखिर पश्चिमी देशों में भारत विरोधियों को मानवाधिकारों और लोकतंत्र के नाम पर इस तरह सिर क्यों चढ़ाया जाता है? यह कोई सहजता में घट जानेवाली घटना नहीं है, इसके पीछे दूरगामी राजनीतिक और कूटनीतिक वजहें हैं। ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों का एक बड़ा समुदाय है, जिसमें बड़ी तादाद में पंजाबी सिक्ख हैं। ये समुदाय राजनीति में सक्रिय है और कुछ थोड़े से तत्व इनमें खालिस्तानी विचारधारा का समर्थन करते हैं। अब चूंकि ब्रितानी लेबर पार्टी सिक्ख वोट हासिल करने के लिए खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरमी बरतती है, इसलिए ब्रिटेन में न सिर्फ कई सांसद खालिस्तानी समर्थकों से जुड़े होते हैं, बल्कि उनके दबाव में जब, तब ये भारत विरोधी बयान भी देते रहते हैं। इसके अलावा एक दूसरा बड़ा कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाखंड है। पश्चिमी देश खुद की संप्रभुता को तो इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि उसके आसपास भी किसी तरह के विचार को फटकने नहीं देते, लेकिन भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता उन्हें कतई महत्वपूर्ण नहीं लगती। यहां तक कि ऐतिहासिक और अपनी मनोवैज्ञानिक भावनाओं से तो ये इसका मन ही मन विरोध भी करते हैं। उन्हें लगता है कि अभी कुछ दशकों तक तो भारत हमारा गुलाम था, आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने की शान वैâसे पा रहा है? यही वजह है कि चाहे कनाडा हो या ब्रिटेन, इन देशों में जहां-जहां कॉमन वेल्थ छतरी और संस्कार हैं, वहां-वहां जानबूझकर भारत को कम महत्व देने की सजग कोशिश की जाती है।
ब्रिटिश सरकार को बहुत अच्छी तरह से पता है कि पिछले काफी दिनों से मुट्ठीभर खालिस्तानी, कनाडा से लेकर अमेरिका तक रह रहकर भारत विरोधी प्रदर्शन का मौका ढूंढ़ते रहे हैं। ऐसे में जब भारतीय विदेश मंत्री अपनी महत्वपूर्ण यात्रा के दौरान ब्रिटेन में मौजूद हों और उनके खिलाफ भारत विरोधी आंदोलन करने में सिर के बल खड़े हों, तब तो ब्रितानी सरकार और स्थानीय प्रशासन को अतिरिक्त सजगता बरतते हुए इन्हें भारतीय विदेश मंत्री के आसपास भी कहीं नहीं फटकने देना चाहिए था। लेकिन ब्रिटेन का शासन ही नहीं, बल्कि प्रशासन भी अभी तक औपनिवेशिक हैंगओवर से बाहर नहीं आया। ब्रिटेन अभी भी भारत को छोटे भाई के सरीखे व्यवहार करने का आदी है। क्योंकि ब्रिटेन ने कभी भारत पर औपनिवेशिक राज किया था, इसलिए वह हमारी ताकत, दुनिया में मिलने वाले हमारे महत्व के संदर्भ में सहज नहीं है। भारत एक ग्लोबल पावर के रूप में उभर रहा है, यह बात इन्हें किसी भी तर्क से हजम नहीं होती। इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से ये तमाम देश अपने यहां भारत विरोधी ताकतों को हवा देकर हमें दबाव में रखने की कोशिश करते हैं। सिर्फ भारत विरोधी, भारतीय ताकतें ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन में पाकिस्तान की लॉबिंग भी काफी मजबूत है। हम सब जानते हैं कि किस तरह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई हमेशा ही खालिस्तानी आंदोलनकारियों के कंधे में हाथ रखती रही है। इस समय भी तमाम मीडिया खबरें जो छन-छनकर बाहर आ रही हैं, उनसे साफ है कि ब्रिटेन हो या कनाडा हर जगह खालिस्तानी ताकतों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई हवा दे रही है।
सख्त हो भारत सरकार
भारत को इन सारी हकीकतों को जानते हुए ब्रिटेन के खिलाफ विदेश मंत्री जयशंकर पर हमले की कोशिश और उनके सामने तिरंगे के अपमान को जरा भी हल्के में नहीं लेना चाहिए, बल्कि सख्त से सख्त कदम उठाने चाहिए। हमें ब्रिटेन को कड़ा संदेश देना चाहिए कि वह हमें हल्के में नहीं ले सकता। क्योंकि फिलहाल हमें ब्रिटेन की कम, ब्रिटेन को हमारी जरूरत ज्यादा है। पिछले दो सालों से अलग-अलग ब्रितानी प्रधानमंत्री यूं ही भारत के आगे-पीछे घूमकर व्यापार समझौते की कोशिश नहीं कर रहे, आज भारत दुनिया के व्यापार नक्शे में एक बड़ी ताकत है और भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की तेजी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था है। ब्रिटेन को हमारी इस विकास कर रही अर्थव्यवस्था से अपने फायदे वाला व्यापार समझौता भी करना है। हमसे कई तरह की रियायतें भी लेनी हैं और हमें कूटनीतिक और मनोवैज्ञानिक रूप से छोटा भी साबित करना है, ऐसा हो नहीं सकता। भारत को ब्रिटेन सहित सारी पश्चिमी सरकारों को सख्त लहजे में संदेश देना चाहिए कि वो किसी भी भारत विरोधी रवैये को जरा भी बर्दाश्त नहीं करेगा। ब्रिटेन खुद अपने देश में किसी भी अलगाववादी या आतंकवादी को बर्दाश्त नहीं करता। हम सब जानते हैं कि स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता को लेकर उसका कितना लौहशक्ति वाला रुख रहा है। लेकिन जब बात हमारी स्वतंत्रता या संप्रभुता की आती है तो ब्रिटेन हमें ‘टेकन फॉर ग्रांटेड’ लेने की कोशिश करता है। साल २०२३ में भी लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग पर इसी तरह से हमला हुआ था और तब भी भारतीय ध्वज का अपमान किया गया था। लेकिन भारत सरकार का तब भी रवैया ढुलमुल ही रहा था।
अगर तब सरकार ने सख्त कदम उठाए होते तो आज यह नौबत नहीं आती। भारत सरकार को ब्रिटिश सरकार से यह सख्त सवाल तो पूछना ही चाहिए कि जब राजनयिक प्रोटोकॉल ५० मीटर की दूरी से विरोध प्रदर्शन का है तो फिर विरोधी विदेश मंत्री एस. जयशंकर के १५-१६ फुट तक नजदीक वैâसे पहुंच गए, वह भी तब जबकि वहां ब्रिटेन की पुलिस पहले से ही मौजूद थी? इसका मतलब साफ है कि ब्रितानी पुलिस को प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध सख्ती न पालन करने का निर्देश था या फिर ब्रितानी पुलिस हमें और हमारे विदेश मंत्री को कुछ नहीं समझती। भारत सरकार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री तक सख्त लहजे में यह संदेश पहुंचाना ही होगा कि हम अपने किसी महत्वपूर्ण नागरिक और हमारे स्वाभिमान का जीता-जागता रूप तिरंगे को किसी भी कीमत पर अपमानित नहीं होने देंगे। अगर भारत सरकार २०२३ की तरह इस बार भी विरोध जताने की खानापूर्ति भर करके रह गई, तो आनेवाले दिनों में भारत विरोधी ताकतें और ज्यादा मनबढ़ हो जाएंगी।
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)