मुख्यपृष्ठस्तंभउड़न छू : डंका और ताकत

उड़न छू : डंका और ताकत

अजय भट्टाचार्य
डंकापति अमेरिका से वापस आ चुके हैं और भक्त समुदाय सैम अंकल की एक फोटो / वीडियो वायरल कर अहोभाव से विभोर है कि देखो वैâसे दुनिया के सबसे ताकतवर देश का मुखिया हमारे डंकापति को बैठने के लिए कुर्सी लगाकर खुद पीछे खड़ा है। ये है फलाना है तो मुमकिन है, लेकिन समर्थक समुदाय न तो देख पाया और न सून पाया कि डंकापति से मिलने से पहले ही अंकल सैम ने ‘प्रतिस्पर्धात्मक शुल्क’ (रेसीपोकल टेरिफ) का फरमान जारी किया, जिसमें उन्होंने विशेष रूप से भारत की ऊंची शुल्क दरों की निंदा की और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करने पर और विपरीत परिणामों की धमकी दी। प्रेस कॉन्प्रâेंस में डंकापति दस मिनट तक अंकल सैम की शानदार जीत और उनके पिछले तीन हफ्तों की नीतियों की तारीफों के पुल बांधते रहे। मगर अंकल सैम ने डंकेश की यात्रा को महज ३० सेकंड में एक वाक्य के जरिए निपटा दिया। इतने भर से पेट नहीं भरा तो अंकल सैम के कार्यालय द्वारा जारी प्रेस बयान में दुनिया को बताया गया कि फलाने के नेतृत्ववाला भारत अमेरिका से बड़ी मात्रा में तेल और गैस खरीदने के लिए सहमत हो गया है। अपमान पर और नमक छिड़कते हुए यह भी कहा गया कि भारत को अमेरिका को अपने सबसे बड़े तेल और गैस आपूर्तिकर्ता के रूप में स्वीकार करना होगा, चाहे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कुछ भी हों। हमने रूस से तेल इसलिए खरीदा क्योंकि वह युद्धग्रस्त देश हमें रियायती दरों पर बेचने को तैयार था, लेकिन अब अमेरिका हमारी कीमत और मात्रा दोनों तय करेगा।
अंकल सैम ने केवल तेल और गैस थोपने तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि खुलेआम घोषणा की कि भारत को व्यापार घाटे को संतुलित करने के लिए एफ-३५ लड़ाकू विमान खरीदने के लिए मजबूर किया जाएगा। मतलब डंकापति की अमेरिका यात्रा का यह स्पष्ट परिणाम है भारत के हितों का शर्मनाक आत्मसमर्पण। हमारे नेता की अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की हताशा ने हमारे देश को इस स्थिति में पहुंचा दिया है। जब नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया और हमारे प्रधानजी को ऐसा कोई निमंत्रण नहीं मिला, तो हमारे नेता ने विदेश मंत्री को वॉशिंगटन डीसी भेजा ताकि देर से ही सही, निमंत्रण प्राप्त किया जा सके। लेकिन सैम ने मना कर दिया। शी जिनपिंग की आत्म-सम्मान की भावना देखिए कि अंकल सैम का आमंत्रण और व्यक्तिगत फोन कॉल मिलने के बावजूद, उन्होंने समारोह में जाने के बजाय अपने उपराष्ट्रपति को भेजा। यही एक आत्मनिर्भर नेता का आत्मविश्वास होता है। अमेरिकी सरकार द्वारा भेजे गए अप्रवासी भारतीयों की पहली खेप में सभी को हाथ-पैर में जंजीर बांधकर भेजा गया था, लेकिन इस बीच डंकापति ने अमेरिका यात्रा की और अंकल सैम को इशारों में समझाया। वे समझ गए कि ये २०१४ के पहले का भारत नहीं है। अब ये आजाद शक्तिशाली भारत है…जो विरोध करना जानता है। र्इंट का जवाब पत्थर से देना जानता है। लिहाजा भेजी गई दूसरी खेप में केवल पुरुषों को बेड़ियां बांध पाए… महिलाओं के हाथ पैर नहीं बांध पाए। हौसला मत टूटने देना महामानव का प्लीज..!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

अन्य समाचार