सामना संवाददाता / मुंबई
वडाला-घाटकोपर से कासारवडवली तक बनने वाली मेट्रो-४ के लिए जरूरी मोघरपाड़ा कारशेड की जमीन का एमएमआरडीए और पुलिस द्वारा आधी रात को जबरदस्ती अधिग्रहण किए जाने का आरोप कारशेड से प्रभावित किसानों की ‘खारभूमि कृषि समन्वय समिति’ ने कल लगाया। इसके साथ ही समिति में शामिल स्थानीय किसानों ने इस अधिग्रहण की पूरी तरह से पोल खोलकर रख दी। इससे महायुति सरकार के अधीन काम कर रहे एमएमआरडीए और गृह विभाग के पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान उठ खड़े हुए हैं।
ठाणे में कल आयोजित प्रेस कॉन्प्रâेंस में किसानों के वकील एड. किशोर दिवेकर ने बताया कि एमएमआरडीए की ओर से जो सिडको नीति के तहत २२.५ फीसदी और १२.५ फीसदी मुआवजा देने की पेशकश की गई है, उसका समिति ने सख्त विरोध किया है। उन्होंने मांग की है कि भूमि अधिग्रहण कानून २०१३ के अनुसार, मौजूदा चलन मूल्य पर जमीन का मूल्यांकन कर किसानों को उचित मुआवजा दिया जाए। साथ ही एड. दिवेकर ने इस विषय पर उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका लंबित होने की ओर भी ध्यान दिलाया। मेट्रो-४ परियोजना के लिए ठाणे के घोड़बंदर क्षेत्र स्थित मोघरपाड़ा में सर्वे नंबर ३० की १७४.०१ हेक्टेयर जमीन पर एमएमआरडीए ने काम शुरू किया है। इस जमीन पर १९६० से स्थानीय मूल निवासी किसान खेती कर जीवनयापन कर रहे हैं। कुल १६७ पट्टाधारी किसान और ३१ अतिक्रमणधारी किसान इस जमीन पर निर्भर हैं।
कारशेड का विरोध नहीं, उचित मुआवजा दो
मोघरपाड़ा में मेट्रो कारशेड के प्रोजेक्ट का हमें विरोध नहीं है। लेकिन सिडको की नीति और मुआवजा देने के बजाय वर्ष २०१३ के भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार मौजूदा बाजार दर पर मूल्यांकन कर उचित मुआवजा और नुकसान भरपाई दी जाए। जब तक सही मुआवजा नहीं मिलेगा, तब तक हमारी कानूनी लड़ाई जारी रहेगी।
– राकेश पाटील, अध्यक्ष, ‘खारभूमि कृषि समन्वय समिति’