प्राकृतिक आवास में छोड़ने के लिए समिति गठित
सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य वन विभाग मानव-वन्यजीव संघर्ष का स्थायी समाधान ढूंढ़ने में पूरी तरह विफल रहा है। बढ़ते संघर्षों के साथ-साथ मानव मृत्यु दर और बाघों के शिकार की संख्या भी बढ़ रही है। पिछले छह वर्षों में वन विभाग ने लगभग ३५ बाघों को पकड़ा है। इन बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ने के लिए एक समिति गठित की गई है। हालांकि, समिति के समक्ष आनेवाले मामलों की कम संख्या के कारण इन बाघों को स्थायी रूप से वैâद कर लिया गया है।
राज्य में बाघों की संख्या सबसे अधिक चंद्रपुर जिले में है। चंद्रपुर के बाद गडचिरौली, भंडारा और नागपुर जिलों में भी संघर्ष बढ़ रहा है इसलिए सूचना के अधिकार (आरटीआई) से पता चला है कि इस जिले में बाघों के शिकार के मामलों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है, जो यह निर्णय लेगी कि बंदी बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ा जाए या चिड़ियाघरों में भेजा जाए। किसी बाघ को पकड़े जाने के बाद उसके पीछे के कारणों और दस्तावेजों को तुरंत समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है। यदि यह साबित हो जाता है कि बाघ दोषी नहीं है तो समिति सिफारिश करती है कि उसे तुरंत उसके प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया जाए या यदि बाघ ही दोषी है तो उसे चिड़ियाघर को सौंप दिया जाए। हालांकि, ऐसे मामले इस समिति के समक्ष नहीं आते हैं या यदि आते भी हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है। चूंकि बाघ लंबे समय से मानव के संपर्क में है इसलिए उसे उसके प्राकृतिक आवास में नहीं छोड़ा जा सकता। परिणामस्वरूप, वह हमेशा के लिए वैâद में ही रह जाता है। यह समिति मूलत: अपनी माताओं से अलग किए गए बाघ शावकों के संबंध में निर्णय लेने के लिए गठित की गई थी। इसके बाद इसी समिति को बंदी बाघों की रिहाई के संबंध में निर्देश जारी करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई।