रोहित माहेश्वरी
मायावती ने बड़ा फैसला लेते हुए अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से हटा दिया, जिससे सियासी हलचल तेज हो गई। लखनऊ में बुलाई गई बैठक में उन्होंने भाई आनंद कुमार और रामजी गौतम को नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने साफ कर दिया कि उनके जीते जी कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा। बसपा में परिवारवाद पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं, लेकिन अब मायावती खुद इसे खत्म करने के मूड में दिख रही हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि उनके भाई आनंद कुमार के बच्चों की शादी भी किसी राजनीतिक परिवार में नहीं होगी! सवाल यह है कि क्या यह फैसला पार्टी को मजबूत करेगा या आकाश की अनदेखी कोई नया मोड़ लाएगी? आकाश आनंद, जिन्हें बसपा का युवा चेहरा माना जा रहा था, अचानक हाशिए पर चले गए।
`महाकुंभ की कमाई मृतकों के परिवारों पर खर्च करे सरकार’
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रयागराज महाकुंभ में हुई भगदड़ को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि सरकार का दावा है कि महाकुंभ से प्रदेश की अर्थव्यवस्था में लाखों करोड़ रुपए की कमाई हुई है तो इसी धनराशि से भगदड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा दिया जाए और घायलों के इलाज की व्यवस्था की जाए। अखिलेश यादव ने कहा कि इस कमाई में से कुछ रुपए लापता लोगों को खोजने और घर पहुंचाने के लिए भी रखे जाएं। साथ ही उन दुकानदारों के घाटे की भरपाई की जाए, जिन्होंने सरकार की अव्यवस्थाओं के कारण नुकसान उठाया। उन्होंने मांग की कि मेला कर्मियों को होली का बोनस दिया जाए और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सम्राट हर्षवर्धन से प्रेरणा लेते हुए अधिकांश धन प्रयागराज के इंप्रâास्ट्रक्चर के लिए दान कर देना चाहिए।
`न्याय मांगने वालों पर ही बरसते हैं पत्थर!’
प्रदेश में कानून-व्यवस्था इतनी ‘मजबूत’ हो चुकी है कि अब सांसदों को भी सिर बचाकर दौड़ना पड़ रहा है। ताजा मामला नगीना से सांसद और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद का है, जिनके काफिले पर मथुरा के सुरीर गांव से ५०० मीटर पहले अचानक पत्थरों की बरसात कर दी गई। चंद्रशेखर उस दलित परिवार से मिलने जा रहे थे, जिन पर फायरिंग हुई थी, लेकिन यहां तो खुद उन पर ‘लोकतांत्रिक पत्थर’ दाग दिए गए। हमलावर कौन थे? पुलिस की नाक के नीचे हमला कैसे हो गया? यह सब जांच के विषय हैं, लेकिन हमला होते ही पुलिसकर्मी खुद घायल हो गए, मानो उन्हें भी यकीन नहीं हुआ कि ऐसा कुछ हो सकता है। कार्यकर्ताओं ने किसी तरह चंद्रशेखर को बचाया, लेकिन सरकार और प्रशासन की ‘सुरक्षा गारंटी’ फिर सवालों के घेरे में है। चंद्रशेखर ने दलित बेटियों को न्याय और मुआवजे की मांग की थी, पर शायद पत्थरबाजों ने संदेश दिया कि न्याय की गुहार लगाने वालों को ही रास्ते से हटा दो। अब सवाल यह है कि इन पत्थरों की भाषा सरकार समझती है या उसे अभी भी कोई अनुवादक चाहिए?