शीतल अवस्थी
आनंदमयी चैतन्यमयी मां भागीरथी श्री गंगा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को दस दिव्य योगों से युक्त होकर मानव के कायिक, वाचिक व मानसिक दस पापों को हरण करने के लिए करुणापूर्वक वसुंधरा पर अवतरित हुई थीं। इसलिए इस पवित्र तिथि पर गंगा दशहरा मनाया जाता है। मां गंगा केवल नदी नहीं हैं, हिंदुओं की आस्था का केंद्र हैं। अनेक धर्म ग्रंथों में गंगा के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है।
गंगाजल को अमृत समान माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है। मकर संक्रांति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान-दान एवं पूजन करना महत्वपूर्ण माना गया है। गंगा को पापों का नाश करने वाली देवनदी माना जाता है। इसलिए धार्मिक मान्यता है कि गंगा स्नान, व्रत, गंगा पूजा और उपासना से सभी दस पापों का नाश होता है। इन पापों में तीन शरीर के, चार वाणी के और तीन मानसिक पाप होते हैं। इसलिए भी इसे दशहरा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि हस्त नक्षत्र में गंगा पृथ्वी पर आईं। स्कंदपुराण में दस योग होने पर यह तिथि बहुत शुभ मानी गई है। यह है ज्येष्ठ माह, शुक्ल पक्ष, दशमी, बुध, हस्त नक्षत्र, व्यतीपात योग, गर, आनंद, वृष राशि में रवि और कन्या राशि में चंद्र की स्थिति।
गंगा के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो मां गंगा के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक हंै। इसमें एक कथा के अनुसार गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनों की बूंदों से हुआ। गंगा के जन्म की अन्य कथाएं भी हैं, जिसके अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। एक मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया और एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया, तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा, जिसे ब्रह्माजी ने अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ। पुराण कथा के अनुसार अपने पूर्वजों के मोक्ष और जगत कल्याण की इच्छा से महाराज भगीरथ ने स्वर्ग से गंगा को मृत्युलोक में लाने के लिए घोर तप किया। उनकी कठिन साधना से ही गंगा ने देवलोक से पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा दशमी के दिन ही गंगा स्वर्ग से अपने प्रचंड वेग से भूलोक पर उतरी। यह वेग भगवान शिव की जटाओं में थमा। इसीलिए इस दिन शिव की उपासना भी विशेष फलदायी मानी गई है। वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से शिव की जटाओं में पहुंची थीं, इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां गंगा की उत्पत्ति हुई थी और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है। शिव की जटाओं से निकलकर गंगा महाराज भगीरथ के पीछे हिमालय के पवित्र तीर्थों से होती हुई ऋषि जाह्नु के आश्रम पहुंची। वहां से गंगा ने रसातल यानी पाताल लोक में प्रवेश कर भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष दिलाया। पुराणों के अनुसार, गंगा विष्णु के अंगूठे से निकली और उन्होंने कपिल मुनि के श्राप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के ६०,००० पुत्रों की अस्थियों का उद्धार किया, जो कपिल मुनि के तेज से भस्म हुए थे। उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लाए। इसी कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा। इसी तरह मान्यता है कि गंगा ऐसी नदी है, जो तीनों लोकों देवलोक, मृत्युलोक और पाताल लोक को अपने पवित्र जल से तृप्त करती हैं। इसलिए इसे तृप्त गंगा भी कहते हैं। इसके साथ ही गंगा पाताल लोक में भोगवती और पितृलोक में वैतरणी के रूप में जानी जाती हैं। नारद पुराण के अनुसार, गंगा कृष्ण पक्ष के छठे दिन से लेकर अमावस्या तक पृथ्वी पर, शुक्ल पक्ष के पहले दिन से दसवें दिन तक पाताल लोक या रसातल में और शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन से लेकर पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष के पांचवे दिन तक वह स्वर्ग में वास करती हैं।