मुख्यपृष्ठसमाचारसरकारी फाइलों में धूल फांक रहा है महिला अस्पताल का प्रस्ताव!

सरकारी फाइलों में धूल फांक रहा है महिला अस्पताल का प्रस्ताव!

-इलाज न मिलने से दर्द से तड़पती हैं गर्भवती महिलाएं… कई महिलाओं की हो चुकी है मौत

योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर

जिला मुख्यालय पर गर्भवती महिलाओं को उपचार के साथ ही सुविधाएं उपलब्ध कराने की कवायद सरकार की फाइलों में दम तोड़ रही है। पालघर जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए यहां कोई आधुनिक अस्पताल नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां बनने वाले विशेष महिला अस्पताल का प्रस्ताव ईडी सरकार की फाइलों में धूल फांक रहा है। इससे जिले की खासतौर पर आदिवासी महिलाओं की हालत बिगड़ने के बाद उन्हें केंद्र शासित प्रदेश सिलवासा और मुंबई, ठाणे के अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है।
जिले में समय से इलाज न मिलने के कारण अब तक कई गर्भवती महिलाओं और उनके गर्भ में पल रहे नवजातों की मौत हो गई है। जिला विभाजन के बाद, केंद्र सरकार की नीति है कि प्रत्येक जिले में एक स्वतंत्र जिला अस्पताल के साथ-साथ एक महिला अस्पताल भी होना चाहिए। जिले में आठ ग्रामीण अस्पताल हैं और प्रत्येक अस्पताल में प्रतिमाह करीब २०० डिलिवरी और १०० सिजेरियन डिलिवरी हो रही हैं, जबकि जिले के ४६ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में हर महीने ३५० से ४०० डिलिवरी हो रही हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सालभर में करीब ५ हजार महिलाएं प्रसूति के लिए आती है।
ग्रामीण अस्पतालों में हर महीने कई सिजेरियन डिलिवरी की जाती है, लेकिन जब किसी महिला को प्रसव के दौरान गंभीर समस्या हो जाती हैं, तो उसे इलाज के लिए जिले से बाहर स्थानांतरित कर दिया जाता है, जिससे अब तक कई महिलाओं की मौत हो गई है।
बमोखाडा,जव्हार,दहानू,विक्रमगढ़,तलासरी जैसे इलाकों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ खस्ताहाल सड़कों की मार भी गांव में रहने वाले आदिवासियों पर पड़ती है। कई ऐसे गांव है जहां बारिश के कारण सड़क के टूट जाने और नदियों नालों में पानी बढ़ने से महिलाओं को कई दिनों तक प्रसव पीड़ा को झेलती पड़ती है।

जिले में विशेष महिला अस्पताल बनाने का प्रस्ताव २०१७ में शासन को भेजा जा चुका है। इस प्रस्ताव को अभी तक शासन से मंजूरी नहीं मिली है।
-संजय बोदाड़े, जिला शल्य चिकित्सक पालघर

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