मुख्यपृष्ठस्तंभजूली के नेता बनने से मजबूत हुए गहलोत

जूली के नेता बनने से मजबूत हुए गहलोत

रमेश सर्राफ
झुंझुनू, राजस्थान

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने टीकाराम जूली को राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता मनोनीत किया है। टीकाराम जूली अलवर ग्रामीण से तीसरी बार विधायक बने हैं तथा गहलोत सरकार में मंत्री रह चुके हैं। जूली को कांग्रेस विधायक दल का नेता बनाकर कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान में दलित कार्ड खेला है। जूली राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने वाले पहले दलित नेता हैं। इससे पूर्व दलित नेता जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान में कांग्रेस सरकार के दौरान १३ महीने मुख्यमंत्री रहे थे। जूली कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह के नजदीकी नेताओं में सुमार होते हैं तथा अलवर के जिला प्रमुख व जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह अपने तीखे बयानों के लिए भी जाने जाते हैं।
राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में जूली के नेता प्रतिपक्ष बनने के कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। चर्चा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट मुरारीलाल मीणा या अपने समर्थक अन्य किसी विधायक को नेता प्रतिपक्ष बनवाना चाहते थे। मगर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भंवर जितेंद्र सिंह के समर्थक टीकाराम जूली को नेता प्रतिपक्ष बनवाकर पायलट समर्थकों को अलग-थलग कर दिया है।
प्रदेश की राजनीति में टीकाराम जूली जहां भंवर जितेंद्र सिंह के समर्थक है। वहीं पांच साल तक गहलोत सरकार में मंत्री रहने के चलते उनके अशोक गहलोत से भी बहुत अच्छे संबंध बन गए हैं। इसी के चलते गहलोत ने उनके नाम का समर्थन किया था। सबसे बड़ी बात यह है कि टीकाराम जूली का विधायक दल के नेता पद के लिए संभावित दावेदारों में कहीं नाम भी नहीं चल रहा था। कांग्रेस आलाकमान ने अचानक ही जूली के नाम की घोषणा कर सभी को चौंका दिया है। कांग्रेस ने जहां मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर पार्टी से दूर जा चुके दलित मतदाताओं को फिर से पार्टी से जोड़ने की दिशा में काम करना प्रारंभ किया था। उसी कड़ी में राजस्थान में भी कांग्रेस ने दलित नेता को विधायक दल के नेता का पद देकर दलित समाज के लोगों को पार्टी से जोड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ाया है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अच्छी तरह से पता है कि जूली का कद कभी भी इतना बड़ा नहीं बन पाएगा कि वे भविष्य में मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार बन सकें। प्रदेश में जब कभी कांग्रेस की सरकार बनेगी तो वे खुद प्रमुख नेता बने रहेंगे। ऐसे में टीकाराम जूली को प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ने से गहलोत को किसी तरह का खतरा नजर नहीं आ रहा है। जैसा उन्हें पायलट से हुआ था।
प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कुल ३४ सीटों में से भाजपा ने २२ सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस ने महज ११ सीटें जीती हैं। एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कुल २५ सीटों में से भाजपा ने १२ और कांग्रेस ने १० सीटें जीती हैं। शेष तीन सीट अन्य के खाते में गई हैं, वहीं २०१८ के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित १२ सीट ही मिली थीं और कांग्रेस को १९ सीटें मिली थी। इसी तरह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में कांग्रेस को १२ सीटें और भाजपा को नौ ही सीटें मिली थीं। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले दलित व आदिवासी समाज ने भी कांग्रेस के मुकाबले भाजपा प्रत्याशियों पर अधिक विश्वास जताया है।
ऐसे में दलित, आदिवासी मतदाताओं का इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ बढ़ते रुझान को रोकने के लिए कांग्रेस ने दलित समाज के युवा नेता टीकाराम जूली को विधायक दल का नेता बनाकर एक नई शुरुआत की है। कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर गोविंद सिंह डोटासरा को बरकरार रखा है। प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस ने जाट व दलित समीकरण बनाकर अगले लोकसभा चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है।
गोविंद सिंह डोटासरा भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक हैं। ऐसे में प्रदेश की राजनीति में विधायक दल का नेता व कांग्रेस अध्यक्ष दोनों ही पदों पर गहलोत समर्थकों के काबिज होने से प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में एक बार फिर अशोक गहलोत का दबदबा बरकरार रहा है। विधायक दल के नए नेता के चुनाव के साथ ही कांग्रेस पार्टी अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी में भी जुट गई है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए संगठन स्तर पर कई कमेटियों का गठन कर पार्टी कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की मुहिम प्रारंभ कर दी है। कांग्रेस के नेताओं को विश्वास है कि प्रदेश में जाट-दलित की राजनीति कांग्रेस के लिये नयी संजीवनी बनेगी।

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)

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