सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई के कुर्ला में धारावी पुनर्विकास के नाम पर राज्य सरकार की मनमानी के खिलाफ स्थानीय लोग मुखर हो गए हैं। सरकार ने धारावी के अयोग्य निवासियों को बसाने के लिए मदर डेयरी प्लॉट आवंटित कर दिया, जबकि इस जमीन पर व्यावसायिक और आवासीय विकास प्रतिबंधित है। इससे नाराज स्थानीय निवासियों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस फैसले को रद्द करने की मांग की और चेतावनी दी कि यदि सरकार नहीं मानी तो वे कानूनी कार्रवाई करेंगे।
सरकार ने धारावी पुनर्विकास परियोजना (डीआरपी) के तहत यह प्लॉट ५० एकड़ जमीन के सौदे में शामिल कर दिया, लेकिन अभी तक यह तय ही नहीं हुआ कि कौन पात्र है और कौन नहीं। जिन लोगों को पुनर्वास मिलना था, उनकी सूची बने बिना ही सरकार ने जमीन बांट दी। यह सरकारी लापरवाही का बड़ा उदाहरण है।
स्थानीय निवासियों ने इस आवंटन को लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। उनका कहना है कि जनता से कोई राय नहीं ली गई, न ही कोई सार्वजनिक परामर्श हुआ। सवाल उठता है कि क्या सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ बिल्डरों के फायदे तक सीमित रह गई है?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन
नागरिकों ने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट के एमसी मेहता बनाम कमल नाथ (१९९७) केस का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्य प्राकृतिक संसाधनों का ट्रस्टी है और इन्हें जनता के हित में ही उपयोग करना चाहिए। सरकार द्वारा इस जमीन को निजी कंपनी को देना जनता के अधिकारों का हनन है।