मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : मेहनत के बाद अंतत: मिली मंजिल

मेहनतकश : मेहनत के बाद अंतत: मिली मंजिल

अशोक तिवारी

कहते हैं कि पुरुष का भाग्य इंसान की समझ से परे है। इंसान का भाग्य उम्र के किस दौर में करवट लेगा यह विधाता के अलावा कोई नहीं जानता। तेलंगाना से मुंबई आए मोहम्मद मोबिन मोहम्मद यूसुफ शेख की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। शेख १९७० के दशक में तेलंगाना से मुंबई आए थे। उस दौरान मुंबई शहर में अंडरवर्ल्ड की अच्छी-खासी दहशत थी। अपराध और अपराधियों का हर तरफ बोलबाला था। शेख के पिता मुंबई में छोटा-मोटा काम कर अपना जीवन-यापन करते थे। उनके परिवार की माली हालत बहुत खराब थी इसलिए शेख कोई शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। शेख बताते हैं कि किसी तरह सरकारी स्कूल में उन्होंने तीसरी तक की शिक्षा प्राप्त की थी, लेकिन परिवार की आर्थिक हालत खराब होने की वजह से उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। पढ़ाई छोड़ने के बाद शेख मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के पास स्थित एसटी बस डिपो के सामने जरी के कारखाने में मजदूर का काम करने लगे। इसी बीच क्षेत्र में मनबढ़ लोगों से उनका परिचय हुआ और वो चेंबूर में शराब के धंधे पर वेटर का काम करने लगे। कुछ दिनों तक वेटर का काम करने के बाद वो शराब मापकर बेचने का काम करने लगे। शेख को मेहनत का यह काम नागवार लगा तो कुछ लोगों के साथ मिलकर वरली स्थित ‘लोटस’ सिनेमा में टिकट ब्लैक करने लगे। बरसों तक फिल्मों का टिकट ब्लैक कर उन्होंने परिवार का भरण-पोषण किया। लेकिन फिल्मों का क्रेज खत्म होते ही टिकट ब्लैक करने का धंधा बंद हो गया। अब शेख के सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई। इस बार उन्होंने अपने जमीर की सुनी और छोटा-मोटा कंस्ट्रक्शन कार्य शुरू कर दिया। कंस्ट्रक्शन के इस कार्य में उन्हें बरकत मिलने के साथ ही समाज में एक पहचान भी मिली। इसके बाद उन्हें भ्रष्टाचार निर्मूलन समिति में कुर्ला तालुका के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। यहां से शेख ने समाज सेवा के कार्य को आगे बढ़ाया। सामाजिक कार्यों और अपनी मेहनत की बदौलत आज कुर्ला क्षेत्र में मोहम्मद मोबीन शेख एक जाना-पहचाना नाम है। २६ जुलाई की बाढ़ और कोरोना काल में आम जनता के लिए उन्होंने काफी राहत कार्य किया। अपने तीनों बच्चों को पढ़ा-लिखाकर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करवानेवाले शेख के तीनों बच्चे आज बड़ी कंपनियों में ऊंचे पद पर कार्यरत हैं और अपनी-अपनी लाइफ में सेटल हैं। शेख का मानना है कि इंसान बुरा नहीं, बल्कि परिस्थितियों का दास होता है। उसके सामने जैसी स्थिति होती है, वैसा बनने पर वो मजबूर हो जाता है। लेकिन हर इंसान का जमीर गलत कार्यों के लिए उसे फटकार लगाता ही रहता है। यही कारण है कि अगर किसी इंसान के दिल में अच्छा बनने की चाह हो तो ऊपरवाला उसे मौका भी देता है और कामयाबी भी। शेख का मानना है कि इंसान को हालात खराब होने से डरना नहीं चाहिए क्योंकि समय का पहिया कब किस तरफ करवट लेगा और इंसान का भाग्य वैâसे बदलेगा, यह सिर्फ रब ही जानता है।

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