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मेहनतकश : संघर्ष करते हुए जीवन में बढ़ रहे हैं आगे

अनिल मिश्र

जीवन में अगर इंसान मेहनत करे तो वो क्या कुछ हासिल नहीं कर सकता। ये बात अरविंद पांडे पर बिल्कुल सटीक बैठती है। अरविंद पांडे के पिता शीतला प्रसाद पांडे आर्थिक अभाव के कारण इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद १९६५ में ही मुंबई चले आए। मुंबई आने के बाद १९६७ में वे मुंबई स्थित सेंचुरी मिल में काम करने लगे। जीवन के उतार-चढ़ाव को झेलते हुए वे नौकरी कर ही रहे थे कि इसी बीच १९९२ में मुंबई की मिलों में हड़ताल हो गई। उस समय अरविंद ५वीं कक्षा के छात्र थे। संघर्षपूर्ण परिस्थितियों से दो-चार होते हुए डिप्लोमा की पढ़ाई करनेवाले अरविंद ने १९९४ में बेस्ट उपक्रम के परिवहन अभियांत्रिकी विभाग में नौकरी की शुरुआत की। संघर्षपूर्ण स्थितियों के कारण मनमुताबिक पढ़ाई न कर पानेवाले अरविंद को इस बात का दुख था और उन्होंने ये संकल्प कर लिया कि वे अपने तीनों छोटे भाइयों को पढ़ा-लिखाकर योग्य इंसान बनाएंगे और उन्होंने उस दिशा में कार्य शुरू कर दिया। आज उनके भाई परिवार के साथ खुशहाल हैं। मां को वैंâसर होने के कारण अरविंद का विवाह जल्द कर दिया गया। उसी दरमियान अरविंद के चाचा का सन २००० में ४५ वर्ष की उम्र में निधन हो गया और चाचा के पांच बच्चों की जिम्मेदारी भी अरविंद पर आन पड़ी। अब अरविंद ने चाचा के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई करवाने के साथ उनका विवाह भी करवाया। इसी बीच २००१ में अरविंद के पिता शीतला प्रसाद पांडे को लकवा मार गया। एक वर्ष तक वो बिस्तर पर रहे। कुछ ठीक होने के बाद उन्होंने दोबारा काम पर जाना शुरू किया लेकिन शारीरिक अस्वस्थता के कारण २००५ में उन्हें नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद वे गांव चले गए। गांव जाने के बाद २००८ में वे दोबारा लकवाग्रस्त हो गए। तब से लेकर आज तक वे बिस्तर पर ही हैं। अरविंद पांडे बताते हैं कि शुरू से ही उनका जीवन बेहद कठिन और चुनौतियों भरा रहा। चुनौतियों से जीवन भरा होने के बावजूद उन्होंने अपने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षित किया। उनके दोनों बेटों ने बी. टेक की डिग्री प्राप्त करने के बाद नौकरी शुरू कर दी। लेकिन छोटा बेटा नौकरी छोड़कर एक नामचीन शैक्षणिक संस्थान से एमबीए की उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा है। इतने संघर्षों के बाद भी आज अरविंद पांडे की सामाजिक सेवा जारी है। बेस्ट कर्मचारी ग्राहक संस्था के मानद सचिव के पद पर कार्यरत अरविंद पांडे संस्थान में कार्यरत कामगारों के कल्याण और अन्याय के विरुद्ध सतत संघर्षरत रहते हैं। समाज में बच्चे और बच्चियों के विवाह को लेकर परेशान लोगों की मदद के लिए भी वे हमेशा तत्पर रहते हैं और कई बच्चों की शादी का कार्य वे करवा चुके हैं। ईश्वर की कृपा और अपनी मेहनत के बलबूते आज वे अपने परिवार के साथ ही सभी का हित कर रहे हैं।

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