मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : माता-पिता का सपना किया साकार

मेहनतकश : माता-पिता का सपना किया साकार

अनिल मिश्र

कहते हैं जिस व्यक्ति का हौसला बुलंद होता है उसकी मदद ईश्वर भी करते हैं। आदमी यदि सच्ची लगन से कुछ हासिल करना चाहे तो वह जरूर मिलता है। यह बात कल्याण ग्रामीण के म्हारल गांव की सीए पास सुकन्या कुमारी श्रद्धा के ऊपर सटीक बैठता है। श्रद्धा कहती हैं कि उन्होंने कठिन मेहनत के बल पर सीए (चार्टेंट एकाउंटेंट) की परीक्षा पास की। अब आगे ‘रोटरी क्लब’ की मेंबर बनकर उससे मिलनेवाले धन से वो गरीब और जरूरतमंदों की सेवा करेंगी। श्रद्धा की इस कामयाबी से समाज और परिवार में उत्साह का माहौल है।
श्रद्धा एक मध्यम परिवार की लड़की हैं। पिता संजय हलपराव एरोली की एक पंप बनानेवाली कंपनी में काम करते हैं और मां संजीवनी एक पढ़ी-लिखी घरेलू महिला हैं, जिन्होंने अपने बच्चों की कुशल परवरिश की। पहले श्रद्धा मुरबाड में रहती थीं। मुरबाड में दसवी तक शिक्षा ग्रहण करनेवाली श्रद्धा ने ९२.२० प्रतिशत अंक हासिल किया। उसके बाद उन्होंने कॉमर्स से बारहवीं करने के लिए कल्याण के बिड़ला कॉलेज में एडमिशन लिया। श्रद्धा कहती हैं कि सीए क्या होता है उन्हें पता ही नहीं था। जिस क्लासेस में वे ट्यूशन पढ़ती थीं उस क्लासेस वालों ने ही उन्हें सीए की पढ़ाई करने का सुझाव दिया। कल्याण का बिड़ला कॉलेज मुरबाड से दूर होने के कारण माता-पिता म्हारल गांव में आकर रहने लगे। श्रद्धा ने दिन-रात मेहनत कर आखिरकर कामयाबी हासिल कर ली। श्रद्धा ठाणे के मुरबाड़ तहसील स्थित सारलगांव की निवासी हैं। श्रद्धा के भाई ने मुरबाड़ से बदलापुर के बी.आर. हरने इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की। आज इन दोनों भाई-बहनों ने अपनी मेहनत के बलबूते अपने माता-पिता सहित गांव का नाम ऊंचा किया है और दोनों ने ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर माता-पिता के सपनों को साकार किया है।
श्रद्धा बताती हैं कि उनकी मां ने बारहवीं तक शिक्षा ग्रहण की है। काफी लिखने का काम आने की स्थिति में वह अपनी मां को नोट्स लिखने को देती थीं, जिसे उनकी मां लिखकर उन्हें देती थीं। पिता ने भी एक आदर्श पिता की भूमिका निभाई। पढ़ाई के बोझ के साथ ही पिता ने आर्थिक बोझ भी उठाया। हमारी पढ़ाई के दौरान हमारे खाने-पीने अर्थात स्वास्थ्य को लेकर माता-पिता विशेष चिंतित रहते थे। उन्हें इस बात की चिंता रहती थी कि कहीं पढ़ाई के चक्कर में उनकी बेटी बीमार न पड़ जाए। भाई-बहनों की पढ़ाई से अधिक समय माता-पिता का उनकी देखरेख पर खर्च होता था, जिसके कारण वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकीं। श्रद्धा कहती हैं कि अब सीए बनकर उन्होंने माता-पिता का सपना पूरा किया। आगे ‘रोटरी क्लब’ की सदस्य बनकर समाज सेवा करने में भी वे पीछे नही रहेंगी।

अन्य समाचार