हरजाई मौका

मिलना था मौका
मिल गया धोखा
चुरा ली मेरी अमानत
अदृश्य हो गई कामना
मौसम हुआ बेगाना
बहारें हुईं हरजाई
सोच रहे थे ख्यालों में
हमें नहीं पता था
हम भी खड़े हैं सवालों में
दिल में खुद ही उत्तर गए जवाबों में
हाथ में आते-आते छिन गया
पड़ गए हम बवालों में
सोच रहे थे अभी आज कल मिल जाएगा
पर मिले हमको सालों में
कितनी शिद्दत से रखा था
मन में घरौंदा बनाने का
पर सिक्के फिसल गए पाताल में
जिंदगी कब चलेगी सवेरे के आकार में
गुजारिश है मेरी आसमानी सरकार से
पुकारे मुझे भी सब कोई अच्छे खिताब से।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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