कहां गर्इं वे मस्तियां, कहां गई वह मौज
वे केशर की क्यारियां, गोबर वाले हौज
गोबर वाले हौज बीच डुबकी लगवाना
मेसू, मठरी, माल-पुओं के थाल उड़ाना
बतला तो ऐ यार जमाने कहां गर्इं वे
खुशियों की बरसात न जाने कहां गर्इं वे
फिसल न जावें तो अभी और दिखावें सीन
साड़ी पहने घूमते मिस्टर अल्लादीन
मिस्टर अल्लादीन गुलाबो बनकर डोलें
कभी चुराते नैन कभी घूंघट को खोलें
इस दहशत से हाथ पीठ पीछे चिपकावें
टिके चोली पर, ताकि, नजर फिसल न जावें
रंग लगे है जिस घड़ी, हाल होय बेहाल
फागुन आते ही सजन, दिल की बदले चाल
दिल की बदले चाल, काटता डोले कन्नी
कांटा लगे गुलाब चवन्नी लगे अठन्नी
फागुन में तो रंग यार इस तरह चढ़े है
बिना भंग भी अंग-अंग खुस-रंग लगे है
होली के त्योहार की, बड़ी अनोखी रीत
मुंह काला करते हुए जतलाते हैं प्रीत
जतलाते हैं प्रीत, गालियों को गा-गा कर
लेकिन अपने साथ सभी को हंसा-हंसा कर
करते हैं दिन-रात इस तरह हंसी-ठिठोली
बोल पड़ें सब लोग, बस करो हो ली हो ली
– नवीन सी. चतुर्वेदी