सामना संवाददाता / मुंबई
पिछले कुछ वर्षों से राज्य में सहकारिता क्षेत्र का सत्यानाश हो रहा है, जिसे लेकर एनसीपी (शरदचंद्र पवार) सुप्रीमो शरद पवार ने चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि आज राज्य में चीनी मिलों में निजी क्षेत्र कंपनियों का बोलबाला है। राज्य में पहले ८० प्रतिशत सहकारी कारखाने थे और २० प्रतिशत निजी कारखाने, लेकिन अब ५० प्रतिशत निजी कारखाने हो गए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से सवाल किया है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? साथ ही उन्होंने कहा कि मेरी सीएम से विनती है कि एक आयोग नियुक्त कर इन सहकारी संस्थाओं का अध्ययन करें कि इन्हें वास्तव में कौन-सी कठिनाइयां आ रही हैं, जिसके चलते कारखाने निजी लोगों के हाथों में सौंपे जा रहे हैं। मुंबई के यशवंतराव चव्हाण केंद्र में ‘दक्षिण का आंदोलन और सहकार की नींव’ तथा संविधान के १५० वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘सहकार का सशक्तीकरण और राज्य सरकार की नीति’ विषय पर आयोजित परिसंवाद में वे बोल रहे थे, जहां देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार भी उपस्थित थे।
शरद पवार ने कहा कि दक्षिण के आंदोलन के समय जब संघर्ष हुआ, तब अंग्रेजों ने किसानों का दर्द समझकर उपाय योजना की। उस समय किसानों को साहूकार और व्यापारियों से कर्ज लेना पड़ता था, लेकिन वह बंद हुआ और सहकारिता के माध्यम से उन्हें कर्ज मिलने लगा। यह कार्यक्रम राज्य सहकारी बैंक द्वारा आयोजित किया गया है। पहले चीनी मिलें नहीं थीं, गुड़ का व्यापार होता था। एक ही व्यापारी गुड़ बनाता था और बाजार पर उसका दबदबा होता था, लेकिन उसमें बदलाव किया गया और विकल्प के रूप में इस बैंक की स्थापना की गई।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शरद पवार के वक्तव्य पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह सच है कि राज्य में ५० प्रतिशत सहकारी चीनी मिलें अब निजी हो चुकी हैं। चीनी उद्योग अब सिर्फ चीनी पर निर्भर रहकर नहीं चल सकता, उससे जुड़े अन्य व्यवसाय भी करने होंगे। सहकारी कारखानों में प्रोफेशनलिज्म की कमी है, वहां बड़े पैमाने पर भाई-भतीजावाद देखने को मिलता है। सहकारिता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू सहकारी संस्थाएं हैं।