मुख्यपृष्ठग्लैमरमैं इस बात को नहीं मानता!-आमिर खान

मैं इस बात को नहीं मानता!-आमिर खान

‘मि. परफेक्शनिस्ट’ के नाम से मशहूर आमिर खान की फिल्मों के लिए दर्शकों को एक लंबा इंतजार करना पड़ता है। फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तां’, ‘लाल सिंह चड्ढा’ जैसी फिल्मों में नजर आए आमिर ‘स्पेशल बच्चों’ पर आधारित फिल्म ‘सितारे जमीं पर’ नजर आएंगे। पेश है, आमिर खान से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
अपनी नई फिल्म की रिलीज पर आप कैसा फील करते हैं?
मेरा जन्म फिल्मी परिवार में हुआ। पापा ताहिर हुसैन एक जाने-माने निर्माता, बड़े पापा नासिर हुसैन निर्माता-निर्देशक, मेरे चचेरे भाई मंसूर खान भी निर्माता निर्देशक हैं। मैंने खुद अपनी होम-प्रोडक्शन फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया है। बतौर एक्टर विकास होने के बावजूद जब भी मेरी नई फिल्म रिलीज होती है मैं नर्वस हो जाता हूं। इस नर्वसनेस में बेतहाशा खुशी, तनाव, उत्सुकता जैसी कई भावनाएं शामिल हैं।
फिल्म ‘सितारे जमीं पर’ के दौरान आपके लिए क्या चैलेंजेस रहे?
३५ वर्षों में महज मैंने ४५-५० फिल्में की हैं। हर क्षेत्र के अलग अनुभव और अलग चैलेंजेस होते हैं। पहली बार ऐसा हुआ कि इस सेट पर मैंने एक सुकून, एक पॉजिटिविटी महसूस की। फिल्म के सेट पर हर इंसान की फिर चाहे वो निर्देशक हो या एक्टर हर एक की अपनी सोच और राय होती है। इस क्रिएटिव डिफरेंसेस की वजह से कई बार फिल्मों के सेट्स पर तनाव हो जाता है। यह स्थितियां नॉर्मल हैं, लेकिन मेरी फिल्म ‘सितारें जमीं पर’ की सेट पर ऐसा कोई तनावपूर्ण माहौल नहीं रहा, बल्कि हमारा हर कलाकार अपने साथ एक ऊर्जा और सकारात्मकता लेकर आया।
फिल्म के लिए आपको किस तरह का होमवर्क करना पड़ा?
मेरी इस फिल्म ‘सितारे जमीं पर’ जो बच्चे थे, वही इस फिल्म के असली हीरो हैं। इन बच्चों ने एक-दूसरे को कमाल का सपोर्ट किया। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ये बच्चे इस कदर बुद्धिमान होंगे। मैंने अब तक शायद ही कभी कहा होगा कि मेरा बेटा जुनैद डिस्लेक्सिया का पेशंट था। उसे पढ़ने में परेशानियां थीं। हमने उसे बिना विलंब थेरेपी शुरू कर दी। मैंने खुद ने न्यूरो डायवर्जेंट बच्चों के साथ काफी समय बिताया। मैंने ऐसे बच्चों को करीब से देखा और समझा है। मेरे घर में जुनैद था ही। सच तो यह है कि अगर बच्चा न्यूरो डायवर्जेंट है तो इसमें उस बच्चे का कोई दोष नहीं, बल्कि यह दोष जेनेटिकली आता है। ऐसे में बच्चों का कोई दोष नहीं होता। जिनका बौद्धिक विकास रुका हुआ है, ऐसे बच्चे कहीं भी किसी भी घर-परिवार में पैदा हो सकते हैं।
बास्केटबॉल कोच के किरदार को आपने किस तरह एन्जॉय किया?
गुलशन फुटबॉल कोच है। फुटबॉल खेलना ऑटिस्टिक बच्चों में आसान माना जाता है। गुलशन स्वभाव से सख्त है और कभी-कभी बदतमीजी से भी बात करता है। असलियत में मेरी अम्मी और मेरे घर-परिवार ने यह तालीम नहीं दी हम किसी से बदतमीजी से बात करें। हकीकत में जब मैं बदतमीजी से पेश नहीं आता तो इस तरह का किरदार निभाना एक अलग अनुभव था। मैं किसी से कड़वा नहीं बोल पाता, जबकि गुलशन कड़वा बोलता है। मैं इस किरदार से विपरीत हूं, सो रिलेट नहीं करता।
‘सितारे जमीं पर’ थिएटरों में रिलीज होगी या ओटीटी पर?
आखिर यह अफवाह कैसे फैली? मैंने ‘सितारें जमीं पर’ थिएटरों के लिए ही बनाई थी। मैंने कभी नहीं कहा कि मेरी यह फिल्म ओटीटी के लिए या यूट्यूब के लिए बनाई है।
क्या आपको लगता है कि फिल्मों पर ओटीटी हावी होगा?
मैं पूरी तरह से सिनेमाप्रेमी हूं। मेरा अस्तित्व सिनेमा से है। यह मेरा बोल्ड स्टेप है, लेकिन मेरे जीवन की आखिरी सांस तक मैं फिल्मों का साथ दूंगा। फिल्मों का बिजनेस ऊपर-नीचे होता है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि इस दौर में सिनेमा मर रहा है। सिनेमा का जादू हमेशा रहेगा। मैं सेट पर किसी मजदूर की तरह काम करते हुए उस माहौल में ढलकर किरदारों में खो जाता हूं। मुझे ओटीटी से कोई तकलीफ नहीं, लेकिन लगाव फिल्मों से है।
हमारे देश में बच्चों के लिए फिल्में क्यों नहीं बनती?
मैंने हर जॉनर की फिल्में बनाई हैं। भिन्न किरदार निभाए हैं। ‘तारे जमीं पर’ इस फिल्म का निर्माण किया, लेकिन निर्देशन करना पड़ा, जबकि मैंने निर्देशन के बारे में कोई प्लानिंग नहीं की थी। कुछ इशूज के चलते मुझे अचानक इस फिल्म का निर्देशन करना पड़ा। हमारे देश में खासतौर पर बच्चों के लिए फिल्मों का निर्माण नहीं होता यह अफसोस की बात है। इंडस्ट्री को लगता है कि बच्चों के फिल्म की कोई मार्केट नहीं है, लेकिन मैं इस बात को नहीं मानता। सच तो यह है कि हम लोगों को बच्चों के लिए फिल्में बनाना नहीं आता।

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