‘शुभ मंगल सावधान’, ‘रज्जो’, ‘रोड टू संगम’ जैसी फिल्मों और ‘लागी तुझ से लगन’, ‘इस प्यार को क्या नाम दूं’ जैसे धारावाहिकों के साथ ओटीटी पर नजर आनेवाली स्वाति चिटणीस इन दिनों ‘जी’ टीवी के नए शो ‘सरू’ को लेकर सुर्खियों में हैं। शो में मोहक मटकर यानी ‘सरू’ की दादी बनी स्वाति ने अनुभवों के बारे में बात किया है। पेश है, स्वाति चिटणीस से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
-शो ‘सरू’ को स्वीकारने की मुख्य वजह क्या रही?
सबसे अहम वजह है मेरा सशक्त किरदार। हर दूसरी कहानी में हीरो, हीरोइन और उनके रास्ते में कांटे बिछाने वाला विलेन ही अमूमन मुख्य किरदार होते हैं। बहुत कम ऐसी कहानियां बनती हैं जहां दादी, नानी जैसे परिवार के अन्य सदस्य भी कहानी का अहम हिस्सा होते हैं। लिहाजा, मेरा दादी का किरदार भी काफी अहम है।
-आपका दादी का किरदार किस तरह से अलग है?
मेरा किरदार बेहद सशक्त है और वो पूरे बजाज परिवार की मुखिया है। अपने परिवार के हर सदस्य को प्यार से देखनेवाली दादी बिजनेस भी संभालती है। दादी के पति यानी परिवार के दादाजी पैरालाइज्ड हैं। दादी जितनी प्यारी हैं उतनी ही अपने कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदार हैं। दादी की पोती का अपहरण हो चुका है और दादी उसे ढूंढने की हरसंभव कोशिश करती हैं। संक्षिप्त में कहूं तो दादी का यह डैशिंग किरदार किसे नहीं पसंद आएगा?
-दादी और नानी की उम्र की न होने के बावजूद आपने इस किरदार के लिए क्यों हामी भरी?
आपकी बात सही है। मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं क्योंकि मुझे हिंदी, मराठी के साथ टीवी शोज और ओटीटी में लगातार काम मिल रहा है। मुझे अन्य किरदार मिल रहे हैं, लेकिन अगर मैं दादी-नानी बनने के लिए मना करूं तो दर्जनों और कलाकार हैं जो इस किरदार को राजी-खुशी कर लेंगे। खैर, दादी का किरदार निभाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
-इस किरदार के लिए क्या आपने कोई खास तैयारी की थी?
निर्देशक से मुझे काफी मदद मिली और एक अच्छा सा नैरेटिव उन्होंने दिया था, लेकिन हर कलाकार को खुद ही तैयारी करनी पड़ती है। अपने संवादों को जोर-जोर से बोलना ही मेरे लिए सबसे बडा होमवर्क था। ‘मुझे चाहिए’ यह न कहने की बजाय ‘म्हारे को चाहिए’ कहना है। बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। होमवर्क करना भी मुझे अच्छा लगता है, ताकि मैं किरदार बन सकूं।
-हर माध्यम के लिये काम करते हुए आपने किन बदलावों को महसूस किया?
हर माध्यम में काम करते हुए मैंने हर माध्यम का लुत्फ उठाया है। जिन कलाकारों ने स्टेज के लिए काम किया है, वे जानते हैं दर्शकों के सामने लाइव परफॉर्म करना क्या होता है। दर्शकों की प्रतिक्रिया आपको तुरंत मिल जाती है। एक कलाकार के लिए यह एक खास अनुभूति है, जिसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। वक्त के साथ बदलाव आते गए और हर प्लेटफॉर्म टेक्निकली सशक्त होता गया। नई पीढ़ी बेहद प्रोफेशनल है और सब कुछ सीखकर अभिनय के इस माध्यम में कदम रखती है। मैं तो गिरते-पड़ते काम करते-करते सीख गई। न कोई सिखाने वाला गुरु, मार्गदर्शक या मेंटॉर था और न ही परिवार में कोई फिल्मों से संबंधित था।
-नई पीढ़ी से सीखने में कोई दिक्कत तो नहीं होती है आपको?
सच कहूं तो मुझे कई बार मोबाइल फोन की टेक्निकल बातें नहीं समझ आती। शो ‘सरु’ के सेट पर जितने यंगस्टर्स हैं मैं उनसे पूछ लेती हूं। युवाओं से भी सीखा जा सकता है, यह मेरा अनुभव है।
-आपने अभिनय की दुनिया के कई दिग्गजों के साथ काम किया है, कोई खास मेमरीज?
‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’ यह शो मैंने ८ वर्षों तक किया। इस शो की अनगिनत यादें हैं। मैंने रामगोपाल वर्मा के साथ फिल्म ‘जंगल’ की थी। उर्मिला मातोंडकर, नाना पाटेकर के साथ बेहतरीन ट्यूनिंग बनी थी।