मुख्यपृष्ठनए समाचार४०० सीटें आ रही हैं तो फिर क्यों ‘भारत रत्न’ के सहारे...

४०० सीटें आ रही हैं तो फिर क्यों ‘भारत रत्न’ के सहारे लोकसभा की  वैतरणी पार करना चाहती है भाजपा!

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

भाजपा ने आगामी लोकसभा चुनाव में अपने सहयोगी दलों के साथ ४०० सीटें जीतने का दावा किया है। इस दावे में कितना दम है, यह इसी से समझा जा सकता है कि अब उसे सीटें जीतने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है और साथ ही ‘भारत रत्न’ का सहारा लेना पड़ रहा है। आजादी के बाद जब से देश का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया जा रहा है, यह पहली बार है, जब एक साल में ५ लोगों को इसे देने की घोषणा हो चुकी है। हालत यह है कि राजनीतिक गलियारों में इस तरह की चर्चा है कि चुनाव घोषित होने-होते अभी यह संख्या बढ़ भी सकती है। असल में असलियत तो यह है कि ‘भारत रत्न’ के सहारे भाजपा लोकसभा की ‘वैतरणी’ पार करना चाहती है। कल इसका प्रत्यक्ष नमूना देखने को भी मिला।
केंद्र सरकार ने कल तीन हस्तियों को ‘भारत रत्न’ देने का एलान किया। इसे लेकर अब तक पांच महान हस्तियों को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने की घोषणा हो चुकी है। कल पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को यह सम्मान देने की घोषणा की गई। यह खबर आते ही उनके पोते जयंत चौधरी ने कहा कि ‘दिल जीत लिया’। असल में जयंत की पार्टी रालोद के साथ भाजपा पश्चिमी यूपी में तालमेल बैठाने के चककर में है। पर बात बन नहीं रही थी। सूत्र बताते हैं कि सीटों के अलावा जयंत ने अपने दादा चौधरी चरण सिंह को भी ‘भारत रत्न’ देने की मांग कर डाली। इसके बाद कल घोषणा हो गई। अब भाजपा के साथ तालमेल के सवाल पर जयंत चौधरी ने तो यहां तक कह दिया कि अब मैं वैâसे मना कर सकता हूं? सूत्रों की मानें तो अब इन दोनों की डील भी फाइनल हो गई है और जयंत चौधरी बहुत जल्द ही भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में शामिल हो सकते हैं।
चौधरी चरण सिंह के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और कृषि क्षेत्र में क्रांति के नायक रहे वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भी ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा हुई। जिस तेजी से यह सम्मान दिए जाने की घोषिणा हो रही है, उस पर टीएमसी नेता कुणाल घोष ने सवाल उठाते हुए कहा कि राव को ‘भारत रत्न’ देने के पीछे कहीं कोई राजनीति तो नहीं है। दूसरी तरफ बसपा प्रमुख मायावती काफी समय से स्व. कांशीराम को ‘भारत रत्न’ देने की मांग कर रही हैं। पर सरकार ने अभी तक उनकी बात सुनी नहीं है, इसलिए वे नाराज हो गई हैं। गौरतलब है कि बिहार में नीतिश कुमार को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा बेचैन थी। ऐसे में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा हुई। नीतिश ने इसकी तारीफ की और कुछ दिनों में ही राजद का दामन छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना ली थी। भाजपा में मोदी के उदय के बाद लालकृष्ण आडवाणी हाशिए पर कर दिए गए थे। राम मंदिर आंदोलन में आडवाणी की प्रमुख भूमिका थी। हाल ही में अयोध्या में जब राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी तो आडवाणी वहां नहीं आए थे। इस पर मोदी और भाजपा की काफी आलोचना हुई थी। देश में आडवाणी के काफी चाहनेवाले हैं। ऐसी चर्चा है कि इन समर्थकों की नाराजगी दूर करने के लिए ही आडवाणी को ‘भारत रत्न’ देने का एलान हुआ। जहां तक कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का सवाल है तो उन्हें इसलिए ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा हुई, ताकि अवॉर्ड की निश्पक्षता और सम्मान बना रहे। राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाजपा इन घोषणाओं से लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान यह दंभ भरेगी कि वह राष्ट्र के नायकों को सम्मान देने में तेरा-मेरा की राजनीति नहीं करती है, बल्कि इससे ऊपर उठकर वह सबको उचित सम्मान देती है। कर्पूरी ठाकुर, चरण सिंह और नरसिम्हा राव को ‘भारत रत्न’ देकर भाजपा नेता जमकर प्रचार करेंगे कि राष्ट्र का भला करने वाले भाजपा विरोधी ही क्यों नहीं हों, उनके योगदान को स्वीकार करने की माद्दा उसमें है। इससे भाजपा राष्ट्रवाद के अपने एजेंडे को और मजबूती दे सकती है। बता दें कि इसके पहले २०१९ में ‘भारत रत्न’ नानाजी देशमुख को दिया गया था। फिर पांच साल तक मोदी सरकार चुप बैठी रही और चुनावी साल आते ही एक ही महीने में ‘भारत रत्न’ की बरसात हो गई।
चौधरी चरण सिंह के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और कृषि क्षेत्र में क्रांति के नायक रहे वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भी ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा हुई। जिस तेजी से यह सम्मान दिए जाने की घोषिणा हो रही है, उस पर टीएमसी नेता कुणाल घोष ने सवाल उठाते हुए कहा कि राव को ‘भारत रत्न’ देने के पीछे कहीं कोई राजनीति तो नहीं है। दूसरी तरफ बसपा प्रमुख मायावती काफी समय से स्व. कांशीराम को ‘भारत रत्न’ देने की मांग कर रही हैं। पर सरकार ने अभी तक उनकी बात सुनी नहीं है, इसलिए वे नाराज हो गई हैं। गौरतलब है कि बिहार में नीतिश कुमार को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा बेचैन थी। ऐसे में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा हुई। नीतिश ने इसकी तारीफ की और कुछ दिनों में ही राजद का दामन छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना ली थी। भाजपा में मोदी के उदय के बाद लालकृष्ण आडवाणी हाशिए पर कर दिए गए थे। राम मंदिर आंदोलन में आडवाणी की प्रमुख भूमिका थी। हाल ही में अयोध्या में जब राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी तो आडवाणी वहां नहीं आए थे। इस पर मोदी और भाजपा की काफी आलोचना हुई थी। देश में आडवाणी के काफी चाहनेवाले हैं। ऐसी चर्चा है कि इन समर्थकों की नाराजगी दूर करने के लिए ही आडवाणी को ‘भारत रत्न’ देने का एलान हुआ। जहां तक कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का सवाल है तो उन्हें इसलिए ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा हुई, ताकि अवॉर्ड की निश्पक्षता और सम्मान बना रहे। राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाजपा इन घोषणाओं से लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान यह दंभ भरेगी कि वह राष्ट्र के नायकों को सम्मान देने में तेरा-मेरा की राजनीति नहीं करती है, बल्कि इससे ऊपर उठकर वह सबको उचित सम्मान देती है। कर्पूरी ठाकुर, चरण सिंह और नरसिम्हा राव को ‘भारत रत्न’ देकर भाजपा नेता जमकर प्रचार करेंगे कि राष्ट्र का भला करने वाले भाजपा विरोधी ही क्यों नहीं हों, उनके योगदान को स्वीकार करने की माद्दा उसमें है। इससे भाजपा राष्ट्रवाद के अपने एजेंडे को और मजबूती दे सकती है। बता दें कि इसके पहले २०१९ में ‘भारत रत्न’ नानाजी देशमुख को दिया गया था। फिर पांच साल तक मोदी सरकार चुप बैठी रही और चुनावी साल आते ही एक ही महीने में ‘भारत रत्न’ की बरसात हो गई।

अन्य समाचार