अन्याय काल!

मोदी सरकार को सत्ता के सिंहासन पर बैठे लगभग १० साल पूरे हो गए हैं। किसी भी सरकार को लगातार १० साल तक काम करने का मौका मिलना राज्य प्रशासन के लिहाज से लंबी ही अवधि है। यह कहने के बाद कि जनता ने हमें इतने लंबे समय तक सत्ता के सिंहासन पर बैठाया है, हमारी सरकार ने इन १० वर्षों में देश के लिए क्या किया है और देशवासियों के जीवन को कितना सहने योग्य बनाया, सरकार को एक लेखा-जोखा पेश करना चाहिए। लेकिन हमेशा अतीत में रहनेवाली मोदी सरकार को होश में लाने और वर्तमान समय के बारे में सवाल पूछने का उत्तम कार्य कांग्रेस पार्टी ने किया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को मोदी सरकार के दस साल के काले कारनामों पर ‘काली पत्रिका’ ही जारी कर दी। इस ब्लैक पेपर के जरिए कांग्रेस ने मोदी सरकार की नाकामियों पर उंगली उठाई है, उन्होंने सरकार की निष्क्रियता पर भी सवालों की झड़ी लगाई है। बेशक, इस ब्लैक पेपर की असली वजह भी मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ही हैं। १ फरवरी को देश का अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि २०१४ से पहले कांग्रेस काल की अर्थव्यवस्था पर एक श्वेत पत्र तैयार किया जाएगा। यानी हमारी सरकार ने दस साल में क्या किया, इसका हिसाब देने की बजाय मोदी सरकार ने पुराने कांग्रेस शासन काल की पोथियां बाहर निकालने की घोषणा कर दी। अगर सरकार ऐसा श्वेत पत्र लाना चाहती थी तो २०१४ में सत्ता में आने के बाद क्यों नहीं लाई? इसके उलट मोदी सरकार ने श्वेत पत्र का मुद्दा निकालकर कांग्रेस को सामने से मौका दिया और कांग्रेस ने भी सरकारी श्वेत पत्रिका से पहले सरकार के खिलाफ ही ‘काली पत्रिका’ निकालकर एक कदम आगे बढ़ा दिया और यह ठीक ही हुआ। एक तरह से यह ब्लैक पेपर कांग्रेस पार्टी द्वारा मोदी सरकार के शासनकाल के खिलाफ दायर किया गया आरोप पत्र ही है। महंगाई, बेरोजगारी, सामाजिक न्याय, किसानों के मुद्दे जैसे कई मुद्दों पर मोदी सरकार पूरी तरह विफल रही है और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस सरकार का दस साल का कार्यकाल यानी अन्याय काल है, ऐसा हल्ला बोल कांग्रेस ने अपनी काली पत्रिका में कहा है। ‘दस साल…अन्याय काल’ शीर्षक वाले इस ‘ब्लैक पेपर’ में कांग्रेस ने देश के युवाओं, महिलाओं, किसानों, मेहनतकशों और अल्पसंख्यकों के साथ किए गए अन्यायों को सामने रखा है। बेरोजगारी आज देश में सबसे गंभीर मुद्दों में से एक बन गई है, लेकिन मोदी सरकार इस समस्या पर एक भी शब्द निकालने को तैयार नहीं है। महंगाई कम करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में सरकार कुछ नहीं कहती। जबकि सरकार द्वारा किए गए पुराने वादे और पुरानी घोषणाएं अभी भी कागज पर हैं, नई घोषणाओं की ‘गारंटी’ दी जा रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियों का डर दिखाकर सरकार दूसरे दलों के नेताओं को भाजपा में शामिल कर रही है। पिछले १० साल में सरकार इसी तरह से डरा कर देशभर के दूसरे राजनीतिक दलों के ४११ विधायकों को भाजपा में शामिल करा चुकी है। मोदी सरकार देश के लोकतंत्र को खत्म करने का प्रयास कर रही है। कई राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारों को उखाड़ फेंक भाजपा ने वहां अपनी सरकारें बनाईं। गैर-भाजपा सरकार वाले राज्यों में केंद्र द्वारा ‘मनरेगा’ के मजदूरों का पैसा भी नहीं दिया जाता है कांग्रेस ने इस ब्लैक पेपर के जरिए इस तरह के कई आरोप लगाए हैं। सत्ता के उन्माद में बेहोश सरकार इस ब्लैक पेपर के किसी भी मुद्दे पर बोलने या अपना पक्ष रखने को तैयार नहीं। इसके उलट प्रधानमंत्री मोदी ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि यह काली पत्रिका हमारे कामों को नजर न लगे इसलिए कांग्रेस द्वारा लगाया गया काला टीका है। नि:संदेह, सिर्फ इसलिए कि प्रधानमंत्री ने ऐसा उपहास किया, कांग्रेस द्वारा जारी काले पत्र में मुद्दों का महत्व कम नहीं हो जाता। आज सरकार चाहे जितनी भी टालमटोल कर ले, लेकिन तीन महीने बाद आनेवाले चुनाव में देश की जनता सरकार से इन गंभीर मुद्दों पर जवाब मांगे बिना नहीं रहेगी। अपने दस साल के शासनकाल में उन्होंने क्या-क्या दीये जलाए। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी को आज देशवासियों को यह बताने की जरूरत है। लेकिन उससे इतर नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक कांग्रेस के समय जो हुआ, मोदी वही पुराना इतिहास उगल रहे हैं। देश की जनता से वर्तमान को छिपाकर अतीत में रमाने का खेल मोदी सरकार अब ज्यादा नहीं खेल सकती। दस साल के ‘अन्याय काल’ के खिलाफ कांग्रेस द्वारा जारी ब्लैक पेपर ने सरकार की इज्जत चौराहे पर लाकर टांग दी है। जनता को भी मोदी सरकार द्वारा प्रायोजित धर्मवाद और खोखले विकास के भूल-भुलैया में न फंसकर सरकार से बेरोजगारी और महंगाई जैसे असली मुद्दों पर सवाल पूछना चाहिए!

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