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निवेश गुरु : उत्पाद आधारित मजबूत अर्थव्यवस्था या कागज के नोटों की थोथी व्यवस्था!

भरतकुमार सोलंकी

दुनियाभर के देशों में दो तरह की अर्थव्यवस्था का निर्माण होने जा रहा है। एक उत्पाद आधारित हों और दूसरी करेंसी नोटों के दम पर चलती हैं। उत्पाद पर आधारित अर्थव्यवस्था में उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्पाद स्रोत निर्माण किया जाता है तो दूसरी ओर करेंसी नोट पर आधारित अर्थव्यवस्था में नोटों की प्रिंटिंग बढ़ाकर बाजारों को चलाया जाता है।
भारत की बात करें तो हमारा देश कृषि प्रधान देश रहा है। विश्व प्रतिस्पर्धा की दौड़ में आज हमारे देश की ८० प्रतिशत भूमि कृषिविहीन बनकर रह गई है तो सिर्फ बीस प्रतिशत भूमि पर ही कृषि उत्पाद बढ़ रहे हैं। शेष भारत के लोग अब दुनिया के उन २० प्रतिशत उत्पादकों पर निर्भर हैं, जो अपना उत्पाद बढ़ाकर नोटों की करेंसी पर निर्भर लोगों को अपने उत्पाद की आपूर्ति करते हैं। इस तरह एक कृषि प्रधान देश की अर्थव्यवस्था अब करेंसी नोटों पर आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है।
एक समय हमारे देश के साथ दुनियाभर में व्यापार करने के लिए एक सिस्टम, जिसमें वस्तुओं के बदले वस्तुओं का आदान-प्रदान किया जाता था। इस लेन-देन में अगर कोई अंतर होता था तो करेंसी के रूप में स्वर्ण-मुद्राओं से सौदों का निपटारा किया जाता था, जिसे बार्टर सिस्टम के नाम से जाना जाता था। आज भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामान के बदले सामान और शेष मूल्य राशि का भुगतान डॉलर में किया जाता है। डॉलर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी धाक जमा रखी है, जिसके चलते स्वर्ण-मुद्राओं का स्थान डॉलर ने लिया है। लेकिन फिर भी डॉलर का चलन अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं अथवा उनके अपने पड़ोसी देश में ही होता है, जिसकी यह करेंसी है। क्या भारत के स्थानीय बाजारों में परचून की दुकान या सब्जी-मंडी में कोई डॉलर देकर खरीदी कर सकता है? शायद नहीं, तो फिर क्या कोई विदेश में जाकर भारतीय करेंसी नोट देकर सामान खरीद सकता है, यह भी नामुमकिन है। हां, दो-चार पड़ोसी देशों में यह जरूर चलता है तो उसका कारण यही है कि उन पड़ोसी देशों की सीमा पर लोगों का आना-जाना लगा रहता है तो यह उनका रोज का रूटीन बन गया है। लेकिन थोड़ी देर के लिए सोचिए अगर कोई देश दिवालिया हो जाए तो क्या उसकी करेंसी को दूसरे देश के वासी अपने देश का सामान खरीद-बिक्री भुगतान में उसे स्वीकार करेगा?
आज विश्व के कई देशों में अमेरिकन डॉलर का चलन अधिक है तो उसका मूल कारण यह है कि उसकी अपनी उत्पादन क्षमता मजबूत है, जिसे वह दुनिया भर के देशों में आपूर्ति करता है। हमें भी अगर हमारे देश की करेंसी का चलन दुनियाभर के देशों में स्थापित करना है तो सर्वप्रथम हमारी उत्पाद क्षमता को बढ़ाना होगा, अन्यथा हमारी करेंसी एक दिन कागज के रद्दी टुकड़े से ज्यादा कुछ नहीं रहेगी। अब आप ही बताइए भारत को आप एक करेंसी आधारित मंडी यानी बाजार बनाना चाहते हैं अथवा उत्पाद आधारित मजबूत अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहेंगे?
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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