भरतकुमार सोलंकी
मुंबई
अक्सर जब शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आता है तो सबसे पहली प्रतिक्रिया होती है कि ‘बाजार बहुत रिस्की हो गया है’, ‘अब पैसा निकाल लेना चाहिए’, ‘शेयर बाजार तो जुआ है’। लेकिन क्या आपने कभी ठहरकर यह सोचा है कि बाजार को दोष देना कितना आसान है? असल में बाजार रिस्की नहीं होता, रिस्क उस पोर्टफोलियो में छिपा होता है, जिसे आपने खुद तैयार किया है। बिना योजना, बिना समझ और बिना उद्देश्य के। दरअसल, बाजार तो एक मंच है, जहां कंपनियों का प्रदर्शन, आर्थिक नीतियां और वैश्विक घटनाएं सामने आती हैं। लेकिन आप किस कंपनी या फंड में पैसा लगा रहे हैं, कब तक लगा रहे हैं, क्यों लगा रहे हैं, ये सब निर्णय आपका है। जब कोई निवेशक केवल एक सेक्टर या एक शेयर में सारा पैसा लगा देता हैं तो वह बाजार में नहीं, अपने पोर्टफोलियो में रिस्क क्रिएट करता है।
जरा सोचिए, अगर आपने टेक्नोलॉजी सेक्टर के उफान पर २०२१ में भारी निवेश कर दिया और उसके बाद आई गिरावट में घबरा गए तो दोष बाजार को क्यों? लेकिन वहीं अगर किसी ने अपने पैसे को अलग-अलग सेक्टरों में, म्यूचुअल फंड्स के जरिए एसआईपी के माध्यम से समय की कसौटी पर निवेश किया तो वो वही उतार-चढ़ाव को एक अवसर की तरह देखता है। क्योंकि उसका पोर्टफोलियो संतुलित और उद्देश्यपूर्ण है। असल में रिस्क का मतलब सिर्फ पैसा डूबना नहीं होता, रिस्क का असली मतलब है, अपने तय लक्ष्यों तक न पहुंच पाना।
रिस्क से बचने का तरीका बहुत जटिल नहीं है। अगर आप अपने निवेश को लक्ष्य आधारित करें-जैसे बच्चों की शिक्षा, रिटायरमेंट या घर खरीदना और उस हिसाब से एक डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाएं तो बाजार की हलचल आपको विचलित नहीं करेगी। एसआईपी यानी सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान और एसेट एलोकेशन यानी संपत्ति का संतुलन-ये दो ऐसे औजार हैं, जो लंबे समय में किसी भी निवेशक को भावनात्मक पैâसलों से बचाते हैं। सबसे अहम बात-जिस तरह डॉक्टर के बिना इलाज करना जोखिम है, उसी तरह एक प्रशिक्षित वित्तीय सलाहकार के बिना निवेश करना भी रिस्क से भरा है।
बाजार को दोष देना आसान है, लेकिन आईने में झांकना और अपनी निवेश रणनीति को सुधारना थोड़ी मेहनत मांगता है। अगली बार जब बाजार गिरे तो डरने की बजाय खुद से सवाल करें कि कहीं रिस्क बाजार में नहीं, मेरे पैâसलों में तो नहीं? निवेश एक यात्रा है और अगर सही सोच, धैर्य और समझ के साथ की जाए तो ये यात्रा हमें वित्तीय आजादी की मंजिल तक जरूर पहुंचाती है।
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)