मुख्यपृष्ठनए समाचारआईआरआर ने भी किया स्वीकार... देश की सबसे बड़ी दुश्मन है ‘मुद्रास्फीति’!

आईआरआर ने भी किया स्वीकार… देश की सबसे बड़ी दुश्मन है ‘मुद्रास्फीति’!

‘कम खपत वृद्धि’ की चुनौती का सामना कर रही है अर्थव्यवस्था

जब भी हिंदुस्थान के दुश्मनों का नाम लिया जाता है तो पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर आता है। इसके बाद देश के दुश्मनों में चीन भी शामिल हो गया। गलवान घाटी में चीन के साथ गतिरोध के बाद यह दुश्मनी लगातार बढ़ी है।
मगर आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो न तो पाकिस्तान और न ही चीन देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। हिंदुस्थानी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी दुश्मन महंगाई है। इसलिए सरकार भी काफी चिंतित नजर आ रही है।
आईआरआर (इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च) के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने कहा कि हिंदुस्थानी अर्थव्यवस्था कम खपत वृद्धि की चुनौती का सामना कर रही है। इसका अहम कारण मुद्रास्फीति है, जिसका असर निम्न आय वर्ग पर पड़ रहा है। पंत ने एक रिपोर्ट में कहा कि हालांकि, देश की अर्थव्यवस्था अब सामान्य से कम मानसून और तेल की बढ़ती कीमतों के दोहरे झटके से निपटने की क्षमता रखती है, लेकिन चुनौती मुद्रास्फीति को कम करने की है, ताकि लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए अधिक पैसा हो। उनके अनुसार, मुद्रास्फीति में एक प्रतिशत की कमी से सकल घरेलू उत्पाद में ०.६४ प्रतिशत की वृद्धि होगी। या फिर पीएफसीई (प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर) में १.१२ फीसदी की बढ़ोतरी होगी। यदि मुद्रास्फीति को एक प्रतिशत तक कम किया जा सके, तो यह सभी के लिए फायदे की स्थिति होगी। पीएफसीई व्यक्तिगत उपभोग के लिए वस्तुओं और सेवाओं पर व्यक्तियों के व्यय को दर्शाता है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स की सहायक कंपनी के अनुमान के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में पीएफसीई सालाना आधार पर ५.२ फीसदी की दर से बढ़ेगी, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह ग्रोथ ७.२ फीसदी थी। पंत के अनुसार, आर्थिक वृद्धि व्यय से प्रेरित होती है। वार्षिक आधार पर लगातार उच्च स्तर के खर्च ने राजकोषीय घाटा और ऋण जोखिम पैदा कर दिया है, जिससे ब्याज दरें ऊंची रहेंगी। पंत ने कहा कि जब तक निजी कंपनियां निवेश करना शुरू नहीं करतीं और सरकार अपने कुछ निवेश वापस नहीं ले लेती, तब तक अर्थव्यवस्था में स्थिर वृद्धि नहीं होगी। वित्त वर्ष २०२२-२३ में भारतीय अर्थव्यवस्था ७.२ फीसदी की दर से बढ़ी। सरकार का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में विकास दर ७.३ फीसदी रहेगी। जहां तक आरबीआई का सवाल है तो उसने अपने रेपो रेट में कोई कमी नहीं की, जिससे कर्ज लेना सस्ता नहीं हुआ। इससे उन लोगों को झटका लगा है, जो सस्‍ते कर्ज की आस लगाकर बैठे हैं। हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बार-बार यही कहती रहीं कि खुदरा महंगाई दर स्थिर हो रही है।

खुदरा महंगाई काबू में नहीं
खुदरा महंगाई दर का सीधा संबंध खाने-पीने की वस्तुओं से है। इस साल गेहूं, चावल, ची’नी जैसे जरूरी खाद्य सामग्री हद से ज्यादा महंगे हुए हैं। सबसे ज्यादा कीमतें तो दाल की बढ़ी हैं। सबसे प्रमुख तूअर दाल तो २०० रुपए क्रॉस करते हुए २५० का आंकड़ा छू लिया। इसके बाद आम आदमी की कटोरी से दाल गायब ही हो गई। यह तो हुई दाल की बात। आम आदमी के लिए सब्जियां खाना भी मुहाल हो गया है। टमाटर ने एक बार फिर ५० का आंकड़ा पार किया तो प्याज ७५ पर पहुंच गया। हरी सब्जियों के भाव भी ८० से १०० रुपए तक पहुंच गए। ऐसे में खुदरा महंगाई का बढ़ना लाजिमी था।

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