मुख्यपृष्ठस्तंभदिल्ली डिस्पैच : यह वाकई ‘राष्ट्रीय सुरक्षा' का मसला है?

दिल्ली डिस्पैच : यह वाकई ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का मसला है?

एम. एम. सिंह

रक्षा मंत्रालय द्वारा ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का हवाला देते हुए सशस्त्र बलों में अधिकारियों, सैनिकों और चिकित्सा अधिकारियों आदि सहित कर्मचारियों की कमी के संबंध में डेटा का खुलासा करने से इनकार करना सत्ता के मंसूबों पर सवालिया निशान खड़ा कर सकता है! विपक्ष इसे वास्तविक राष्ट्रीय हित की अनदेखी मान रहा है। उसका कहना है कि वास्तविक राष्ट्रीय हित यह मांग करता है कि सशस्त्र बलों में रिक्तियों की वास्तविक संख्या सार्वजनिक की जाए।
गौरतलब है कि  ५ अगस्त को रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने राज्यसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अपेक्षित डेटा ‘राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित एक संवेदनशील परिचालन मामला’ था और इस तरह के विवरण का खुलासा करना राष्ट्रीय हित में नहीं होगा।
दरअसल, कांग्रेस सांसद अनिल कुमार यादव मंडाडी का सवाल था कि क्या सरकार ने इस तथ्य पर ध्यान दिया है कि सशस्त्र बलों में अधिकारियों, सैनिकों, चिकित्सा अधिकारियों आदि सहित कर्मचारियों की कमी है और इन रिक्तियों को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। उस सवाल के जवाब में सरकार का यह तर्क सामने आया।
सच तो यह है कि परंपरागत रूप से, रक्षा मंत्रालय कर्मियों की कमी के बारे में अपडेट प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, १३ मार्च, २०२३ को रक्षा मंत्रालय में तत्कालीन राज्य मंत्री अजय भट्ट ने बताया कि १० मार्च, २०२३ तक सेना में ८,०७० अधिकारी पद और जूनियर कमीशन अफसर तथा अन्य रैंक के १२७,६७३ पद रिक्त थे। इसके अतिरिक्त भट्ट ने बताया कि १ जनवरी, २०२३ से १० मार्च, २०२३ के बीच ६१३ अफसर पद और १९,०६५ जेसीओ/ओआर पद भरे गए। हाल ही में नीति में यह बदलाव १४ जून, २०२२ को अग्निपथ योजना की शुरुआत के बाद आया है।
यह नई भर्ताr पहल, जो पिछली प्रक्रिया की जगह लेती है, २०२६ तक १.७५ लाख र्किमयों की अधिकतम भर्ताr के साथ चार साल के कार्यकाल के लिए सैनिकों को भर्ती करती है। अपना कार्यकाल पूरा होने पर, २५ फीसदी तक अग्निवीर आगे की भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से नियमित वैâडर में शामिल हो सकते हैं।
‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के हवाले पर सरकार से सवाल करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टैग करते हुए कहा कि ‘बीजेपी के फर्जाr राष्ट्रवादियों ने अब इस महत्वपर्ू्ण जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में डालने से इनकार कर दिया है, जिन्होंने हमारे देशभक्त युवाओं पर अग्निपथ योजना थोपी और उनका भविष्य बर्बाद कर दिया।’
‘मोदी जी, आपकी ही सरकार पिछले कुछ वर्षों से समय-समय पर अधिकारियों, सैनिकों, जेसीओएस और चिकित्सा अधिकारियों की रिक्तियों की संख्या के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रकाशित करती रही है। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि आपने अचानक ऐसा करने से इनकार क्यों कर दिया है।’
‘क्या आपको डर है कि रिक्तियों की संख्या के बारे में यह जानकारी आपके द्वारा सशस्त्र बलों पर एक तरफा थोपे गए गलत विचार वाली अग्निवीर प्रेरणा पर प्रश्नचिह्न लगाएगी? राज्यसभा में, ऐसे पिछले कई उदाहरण हैं जहां रक्षा मंत्रालय ने यह महत्वपर्ू्ण जानकारी प्रदान की। अब क्यों रुकें?’ खड़गे सवाल करते हैं। बकौल खड़गे मार्च २०२३ में सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, सशस्त्र बलों में १.५५ लाख से अधिक पद खाली हैं। ‘वास्तविक राष्ट्रीय हित’ की मांग है कि सशस्त्र बलों में रिक्तियों की वास्तविक संख्या सार्वजनिक की जाए, ताकि राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए उन रिक्तियों को भरने के लिए ‘व्यापक उपाय’ किए जाएं।
गौरतलब है कि पिछले दो वर्षों से अधिक समय से कोविड के कारण कोई भर्ती नहीं हुई है और अग्निपथ योजना के तहत सीमित संख्या के साथ मिलकर अगले कुछ वर्षों में कर्मियों की कमी बढ़ जाएगी। हालांकि सशस्त्र बल, विशेष रूप से सेना, भर्ती बढ़ाने के साथ-साथ कर्मियों की संख्या बढ़ाने पर भी जोर दे रही है। सशस्त्र बल में मैनपावर की कमी का मुद्दा समय-समय पर गर्माता रहा है, और फौरी तौर पर उसके जवाब कभी दिए गए, कभी टाल दिए गए या फिर रस्म अदायगी के तौर पर दिए गए हैं। सवाल यही उठता है कि यदि सशस्त्र बलों में मैनपावर की कमी है तो उसे सार्वजनिक तौर पर जाहिर करने से सरकार हिचकिचाती क्यों है, वह क्या छिपाना चाहती है?

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