दस्तक

दस्तक हुई दरवाजे पे, दौड़े चले आए हम,
दस्तक हुई दरवाजे पे, सब काम छोड़ चले आए हम
आज सालों बाद, फिर वही दस्तक?
कमरे में ही पैर जमा लिए हमने,
जैसे आया है, वैसे ही चला जायेगा,
वो ज़माना और था,ये ज़माना और है।
दस्तक हुई दिल पर, जोर से धड़क उठा,
दस्तक हुई दिल पर, बेकाबू हो गया दिल,
और बेकाबू होता चला गया,
सालों बाद फिर वही दस्तक ?धीरे धीरे सुनाई दी,
महसूस भी हुआ पर होने न दिया।
सुनकर अनसुना किया,दिल को बेकाबू होने न दिया,
वो नादानियां और थी,
आज जो निशानियां भी नहीं।
नैंसी कौर, नई दिल्ली

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