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ज्ञानहीन गुरु! … ३० फीसदी शिक्षकों को विषयों की नहीं है जानकारी

सामना संवाददाता / मुंबई
हाल ही में जारी असर के सर्वेक्षण से पता चला है कि १४ से १८ वर्ष की आयु के छात्र गणित के साथ-साथ भाषा विषयों में भी पिछड़ रहे हैं। दूसरी तरफ शिक्षा देनेवाले शिक्षकों का ही विभिन्न विषयों में हाल इतना बुरा है कि इसका असर छात्रों की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। ‘हर बच्चे के लिए एक उपयुक्त शिक्षक’ विषय पर किए गए एक शोध में यह चौंकानेवाली जानकारी सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि ३० फीसदी शिक्षकों को विषयों की पूर्ण जानकारी नहीं है, जबकि ४५.७२ फीसदी शिक्षकों के पास उचित व्यावसायिक योग्यता नहीं है। ऐसे में अब चर्चा होने लगी है कि ज्ञान देनेवाले गुरु ही ज्ञानहीन हैं तो बच्चों का भविष्य उज्जवल वैâसे हो सकता है?
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन टीचर एज्युकेशन द्वारा किए गए शोध में कहा गया है कि पहली से ५वीं प्राथमिक कक्षाओं को पढ़ानेवाले ४५.७२ प्रतिशत शिक्षकों के पास उचित व्यावसायिक योग्यता नहीं है और लगभग ३० प्रतिशत शिक्षकों को उन विषयों का पर्याप्त ज्ञान नहीं है, जिन्हें वे पढ़ा रहे हैं। इस शोध में देशभर के ४२२ स्कूलों, ६८ शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के ३,६१५ शिक्षकों और ४२२ प्राचार्यों के साथ ही बीएड शिक्षा के १,४८१ छात्र शिक्षकों ने भाग लिया। इस शोध में यह भी जानकारी सामने आई कि देश में गणित पढ़ानेवाले कुल शिक्षकों में से ४१ प्रतिशत ने डिग्री पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया है या औपचारिक रूप से गणित का अध्ययन नहीं किया है। इसी तरह आठ राज्यों के सरकारी और निजी स्कूलों में ३५ से ४१ प्रतिशत गणित शिक्षकों के पास स्नातक स्तर पर गणित विषय नहीं था।
इन राज्यों में हुआ सर्वे
‘हर बच्चे के लिए उपयुक्त शिक्षक’ रिपोर्ट महाराष्ट्र, बिहार, असम, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, पंजाब, मिजोरम, तेलंगाना राज्यों में किए गए सर्वेक्षणों पर आधारित है। उत्तर पूर्वी राज्यों में स्कूलों में अभी भी शिक्षकों और छात्रों के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इसी तरह निजी क्षेत्र में लगभग ४० प्रतिशत शिक्षक हैं और उनमें से ५० प्रतिशत बिना किसी लिखित दस्तावेज के पढ़ा रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शारीरिक शिक्षा, संगीत और कला विषयों के शिक्षकों की भारी कमी है।
शिक्षा विभाग है खामोश
महाराष्ट्र में शिक्षकों की मौजूदा स्थिति पर इस रिपोर्ट के बारे में स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। असर की रिपोर्ट के बाद भी शिक्षा विभाग खामोश था। छात्रों की गुणवत्ता में सुधार के लिए विभिन्न गतिविधियां चलाने का दावा करनेवाला शिक्षा विभाग इन दोनों रिपोर्टों के सामने आने पर भी राज्य की शैक्षणिक स्थिति पर खामोश है।

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