मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाकिस्सों का सबक: जीवन की सार्थकता

किस्सों का सबक: जीवन की सार्थकता

डॉ. दीनदयाल मुरारका

एक राजा को विश्व का इतिहास तैयार करवाने की इच्छा हुई। वित्त की व्यवस्था की गई। राज्य के इतिहासकारों को इकट्ठा किया गया और उसके लिए तीन वर्ष का समय निर्धारित किया गया।

निश्चित अवधि के बाद इतिहासकारों ने अपना श्रम और पुरुषार्थ राजा के सामने प्रस्तुत किया। चार ऊंटों पर विशालकाय पचास इतिहास के ग्रंथ लादकर लाए गए। राजा ने इन पोथियों को देखकर उन्हें अमान्य कर दिया। कहा मुझे इतना विस्तृत इतिहास नहीं चाहिए मेरे पास इतना समय कहां है कि मैं इन सभी ग्रंथों को पढ़ सकूं। इन्हें छोटा करो।
इतिहासकारों ने उन ग्रंथों को छोटा किया तो पचास की जगह पच्चीस ग्रंथ बन गए। किंतु राजा संतुष्ट नहीं हुआ। उसने और छोटा करने की बात कही तो इतिहासकार ने सारी सामग्री दस ग्रंथों में समेट दी। राजा की आपत्ति अभी कायम थी। एक इतिहासकार ने उन्हें दस से पांच ग्रंथों में ही समाहित कर दिया। राजा अभी संतुष्ट नहीं हुआ।
अंत में थककर एक इतिहासकार ने इसे केवल एक ग्रंथ में ही समाहित कर दिया। इतिहासकारों को उम्मीद थी कि अब राजा इसे जरूर स्वीकार कर लेगा। कारण इससे कम करना अब संभव नहीं था। लेकिन राजा ने इसे और छोटा करने को कहा। तो इतिहासकार ने एक पंक्ति लिखी और राजा के समक्ष रख दी। उसमें लिखा था, आदमी जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। यही दुनिया का इतिहास है।
राजा ने उसे स्वीकार किया कि जन्म और मरण में सारी सच्चाई है। हम यह नहीं जानते कि कौन व्यक्ति कहां से आया है? मरने के बाद कहां जाता है? उसी का जन्म सार्थक होता है जो दुनिया में अपनी शक्ति का विकास करके अपनी बुद्धि और कौशल से समाज के लिए कुछ उपलब्ध कराता है।

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