– कर्जत-कसारा रूट पर लाखों की संख्या में बढ़े यात्री
– दस सालों में नहीं बढ़ी एक भी लोकल सेवा
– जान हथेली पर रखकर सफर करने के लिए लोग मजबूर
सामना संवाददाता / मुंबई
सोमवार को मुंब्रा के पास खचाखच भरी लोकल ट्रेन से गिरकर चार यात्रियों की मौत और ९ यात्रियों के घायल होने के बाद मध्य रेलवे के जानलेवा सफर की चर्चा फिर शुरू हो गई है। चूंकि यात्रियों की मौतों का रेलवे के लिखित ब्योरा में जिक्र नहीं है, इसलिए मुंब्रा हादसे की चर्चा चार दिन बाद ठंडी पड़ जाएगी और एक बार फिर रेलवे के अनियोजित प्रबंधन की गाड़ी चल पड़ेगी। यात्री इस बात पर गुस्सा जता रहे हैं कि यात्रियों की मौतों का रेलवे अधिकारियों पर कोई असर नहीं होगा। लोकल ट्रेन वैसे तो मुंबईकरों की लाइफलाइन है, लेकिन यह डेथलाइन बनती जा रही है, जिससे कर्मचारियों में भारी डर पैदा हो गया है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पिछले दस सालों में ठाणे-कसारा और ठाणे-कर्जत रूट पर यात्रियों की संख्या में लाखों की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन रेलवे को नई ट्रेनों की संख्या बढ़ाने का समय नहीं मिला है। इसके कारण ठाणे-कसारा का सफर जानलेवा हो गया है।
कल्याण-कसारा से रोजाना करीब ३ लाख यात्री लोकल ट्रेनों से मुंबई आते-जाते हैं, लेकिन कभी भी कोई लोकल समय पर नहीं आती। इस वजह से लोग ऑफिस देर से पहुंचते हैं। हर दिन तकनीकी समस्याओं के कारण उपनगरीय लोकल सेवाएं बाधित होती है। वहीं ट्रेनों में भीड़ के कारण कई यात्रियों को फुटबोर्ड पर लटक कर यात्रा करनी पड़ती है, एसे में लोगों का सफर जानलेवा हो जाता है। पिछले १०-१२ वर्षों में यात्रियों की संख्या बढ़ने के बावजूद एक भी कसारा ट्रेन नहीं बढ़ाई गई है। ट्रेनों में भीड़ दिन-प्रति दिन बढ़ती जा रही है, लेकिन ट्रेनों की संख्या न बढ़ने से यात्री परेशान हैं।
पांच महीने में २७ दुर्घटनाएं, १७ मौतें
आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं, क्योंकि रेल प्रशासन नागरिकों की जान की परवाह नहीं करता और यात्री अपनी कीमती जान गंवा रहे हैं। जनवरी से अब तक कल्याण-कसारा रेल लाइन पर २७ दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें १७ लोगों की जान जा चुकी है। ज्यादातर दुर्घटनाएं भीड़ के कारण हुई हैं। रेलवे प्रशासन यह कहकर हाथ खड़े कर रहा है कि यात्रियों की गैरजिम्मेदारी के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं।