मुख्यपृष्ठसंपादकीयसुनो घासीरामों, हत्या की कलई खुल गई है!

सुनो घासीरामों, हत्या की कलई खुल गई है!

पुणे के पुलिस आयुक्त अमितेश गुप्ता ने नागपुर के पुलिस आयुक्त के तौर पर ‘सेवा’ की और बाद में नागपुर वालों ने उनको पुणे की वतनदारी बहाल की। उसी वतनदारी के एवज में श्रीमान गुप्ता भाजपा को ‘दान’ देने वाले बिल्डरों और गुंडों की टोलियों का समर्थन कर रहे हैं। पुणे के कल्याणी नगर में बिल्डर विशाल अग्रवाल के शराबी बेटे ने लापरवाही से दो युवाओं की हत्या कर दी। तब से पुणे पुलिस कमिश्नर इस मामले में उलटा-सीधा रुख अपनाकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। विधायक रवींद्र धांगेकर ने इस हेराफेरी का खुलासा किया है। यदि पुलिस आयुक्त ने अपनी सेवा भाजपा या बिल्डरों को समर्पित कर दी है तो यह उनका मामला है, लेकिन पुणे की सड़कों पर दो युवाओं की जान चली गई उससे आयुक्त का मन नहीं पिघला और वह कानून का खोखला डंडा बजाते रहे। इतने बड़े हादसे के बाद भी पुणे के संरक्षक मंत्री अजीत पवार हमेशा की तरह ‘नॉट रिचेबल’ थे। यह उनका पसंदीदा शगल है। ‘मैं पुणे का संरक्षक मंत्री हूं और जो मैं कहूंगा वह होगा’ इस तरह का दम भरने वाले, अजीत पवार ने दुर्घटना के बाद संवेदना व्यक्त करना तो दूर, दो लाइन का निषेध पत्र भी नहीं निकाला। अब हादसे के पूरे छह दिन बाद अजीत पवार ने इस पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, ‘चाहे बेटे का बाप कितना भी अमीर क्यों न हो, कार्रवाई होगी ही।’ लेकिन ‘ही’ पर जोर देकर यह बात कहने में उन्हें छह दिन क्यों लग गए? पुणे के संरक्षक मंत्री छह दिन बाद यह बयान क्यों दे रहे हैं कि इस मामले में शुरू से ही किसी तरह का कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है? उनको इस बात का खुलासा करने में एक सप्ताह लग जाना कि घटना पर उनकी नजर पहले दिन से थी, ही सब कुछ कह जाता है। पुणे में घासीराम कोतवाल का शासन फिर से अवतरित हो गया है और यह साफ दिखाई देता है कि सरकार ने उस घासीरामी मामलों के सूत्र वहां के पुलिस कमिश्नर को दे दिए हैं। बिल्डर अग्रवाल का पुराना इतिहास अब सामने आ गया है। उसके अनुसार उसने राजनेताओं, गिरोहों, प्रशासन के भ्रष्ट लोगों और पुलिस की मदद से अपने आर्थिक साम्राज्य का विस्तार किया। ‘चंदा दो, धंधा लो’ भाजपा का नया मंत्र है। अग्रवाल ने अब तक किसी को कितना दान दिया है और उसके कारण पुणे में कई टिंगे-वा-टिंगरे बेशर्मी से अग्रवाल के बचाव में आगे आए, यह दिखता है। पुणे में पोर्शे कार से हुए हादसे को लेकर ‘चर्चासत्र’ चल रहे हैं। हालांकि कई वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, सेवानिवृत्त अधिकारी मंच पर हैं, लेकिन इस मामले में आरोपियों की रिहाई के लिए भाजपा और पुलिस कमिश्नर ने कमर कस ली है। शिंदे सरकार के कुछ उद्योगपति मंत्रियों के पुणे में बिल्डरी कार्य हैं और उन्हें अग्रवाल और उनके बेटे पर दया आ गई है। इन उद्यमशील मंत्रियों ने पुणे आकर इन बिल्डरों को किसी भी तरह बचाने और साढ़े १७ साल के उस हत्यारे लड़के को, जो फिलहाल सुधारगृह में भेजा गया है, उसे मुक्त कराने और उसे ‘पोर्शे’ कार में घर पहुंचाने का मन बना लिया है। मुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री द्वारा गहन जांच आदि के दिए गए आदेश एक ढकोसला है। अग्रवाल की मदद करने और उन्हें बाहर निकालने के लिए आंतरिक आदेश हैं और पुणे पुलिस आयुक्त यही कर रहे हैं। इसलिए पुणे के पुलिस कमिश्नर को घर भेजने के लिए आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए। पुणे के कमिश्नर फडणवीस टोली के हाथ हैं और उनसे इन हत्याओं की जांच सीधे तौर पर नहीं हो पाएगी। पुणे के पुलिस कमिश्नर हर दिन नई जानकारी लेकर आ रहे हैं। इसलिए विधायक धांगेकर जो कहते हैं वही सच है। पुणे निवासियों द्वारा आवाज उठाने के बाद इस मामले में दो अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। दो मृतकों अनीश और अश्विनी को न्याय देने के बजाय उनकी ‘हत्याओं’ की डील करने की कोशिश जारी है और इसीलिए पुणे कमिश्नर की नीति जांच में अक्षम्य गलतियां करने और मामले को व्यवस्थित और कानूनी तरीके से दबाने की थी। लेकिन फिलवक्त जनमत जोर के चलते इस पर ब्रेक लग गया है। मामले की समानांतर जांच के लिए ‘एसआईटी’ नियुक्त करना जरूरी है। जिस लड़के ने नशे की हालत में दो युवाओं की हत्या की, वह बिल्कुल भी नाबालिग नहीं है। उसकी उम्र साढ़े सत्रह साल है। यानी वह अच्छा संज्ञानी है। उस पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाना चाहिए और ‘निर्भया’ मामले में यही हुआ। लेकिन जब तक फडणवीस का आदमी पुलिस आयुक्त के पद पर बैठा रहेगा, तब तक मृतकों को न्याय नहीं मिलेगा। कमिश्नर पर धांगेकर के आरोप गंभीर हैं। उनके इस आरोप को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कमिश्नर बिल्डरों के पॉकिट पर काम करते हैं। धांगेकर एक विधायक हैं और अन्य विधायकों की तरह खरीदे जाने की श्रेणी में नहीं आते हैं। भाजपा और अजीत पवार के सभी घासीराम इस मामले में जुबान सिलकर बैठे हुए हैं, ऐसे वक्त में धांगेकर ने इस मुद्दे को उठाया और एक शराबी रईस द्वारा की गई दो हत्याएं आसानी से पचाई न जा सके इसलिए मजबूती से खड़े हैं। पुणे को दीमक लग गया है और अजीत पवार जैसे लोग उस दीमक के कीड़े हैं। उन्होंने ही पुणे में बिल्डरों का साम्राज्य खड़ा किया। अवैध जमीन कारोबार को राजनीतिक संरक्षण दिया। गुंडों की टोलियों को ‘मोक्का’ जैसी कार्रवाइयों से बचाया। अग्रवाल जैसे बिल्डरों को बचाने के लिए ‘टिंगे’ और ‘टिंगरे’ गिरोह बनाया और उन्होंने पुलिस व्यवस्था का भरपूर उपयोग किया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पुलिस आयुक्त अमितेश गुप्ता उसी व्यवस्था का हिस्सा हैं और वे इस दीमक के चौकीदार और वसूली प्रमुख हैं, अब इसमें कोई शक ही नहीं रहा है। पुणे के पुलिस कमिश्नर अमितेश गुप्ता का नागपुर में करियर विवादास्पद रहा। उन्होंने फडणवीस आदि लोगों के समानांतर राज्य के एक विनम्र सेवक के रूप में चाकरी की। वे कानून के शासन की अवधारणा को स्वीकार नहीं करते। सरकार के राजनीतिक विरोधियों की नसें दबाने और लोगों को झूठे मुकदमे दायर करने के लिए उकसाने में उनकी करतूत नागपुर में देखी गई थी। पुणे आते ही उन्होंने हत्यारों को आधार देने का काम किया। विधायक धांगेकर की जागरूकता के चलते ‘टिंगे-टिंगरे’ गैंग, सरकार के घासीराम और पुलिस कमिश्नर की साजिश नाकाम हो गई है। दो हत्याओं का मामला ये लोग आसानी से नहीं मिटा पाए। अपने लोगों के मामले निपटाने दो, भाजपा की नीति पुणे में काम नहीं आई। सड़क पर दो हत्याएं हुईं। हत्या की कलई खुल गई है। घासीरामों को यह याद रखना चाहिए!

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