मुख्यपृष्ठस्तंभलिटरेचर प्वाइंट : ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय

लिटरेचर प्वाइंट : ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय

रासबिहारी पांडेय

प्रेम की अकथ कथा को कहना कवि कुल गुरुओं के लिए भी कठिन रहा है, सामान्य जन की तो बात ही दूर है, इसलिए कबीर एक दोहे में यह कहने को विवश हुए-
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
लेकिन सोशल मीडिया के इस जमाने में युवा जोड़ों ने प्रेम को खेल तमाशा बना दिया है। पश्चिमी सभ्यता के अनुसार ये ७ फरवरी से १४ फरवरी के आठ दिनों तक आठ दिवस मनाते हैं।
पहला दिन रोज डे होता है जिस दिन प्रेमी को गुलाब दिया जाता है। दूसरा दिन प्रपोज डे यानी प्रेम निवेदन किया जाता है। तीसरे दिन चॉकलेट डे यानी चॉकलेट देकर प्रेमालाप को आगे बढ़ाया जाता है, चौथे दिन टेडी डे यानी टेडी खिलौना दिया जाता है, पांचवें दिन प्रॉमिस डे यानी वादा निभाने की कसम ली जाती है, छठे दिन हग डे यानी आलिंगन किया जाता है, सातवें दिन किस डे यानी चुंबन किया जाता है और आठवें दिन वैलेंटाइन डे यानी प्रेमास्पद को पूरी तरह अपना मानकर वैलेंटाइन डे मनाया जाता है।
भारतीय सभ्यता में ऐसी बेवकूफियों के लिए कोई जगह नहीं है। अगर किसी के प्रति आकर्षण है तो पश्चिमी सभ्यता के नक्शे कदम पर चलकर तत्काल गुलाब देकर उससे प्रेम निवेदन नहीं किया जाता, बल्कि अच्छे अवसर की तलाश की जाती है। बहुत दिनों तक एक-दूसरे को परखा जाता है, मन मिलने की बाट जोही जाती है, फिर प्रेम निवेदन किया जाता है।
भारतीय संस्कृति के चार स्तंभ हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन्हें क्रम से मनुष्य के पुरुषार्थ से भी जोड़ा गया है। धर्म अर्थात् अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करना। गीता कहती है- स्वधर्मे में निधनं श्रेय: पर धर्मो भयावह:। अर्थात् अपना कार्य करते हुए व्यक्ति निर्वाण को प्राप्त हो जाता है तो भी उत्तम है। अपने स्वाभाविक कार्य को करते हुए व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए अर्थ यानी धन का अर्जन करता है। धनार्जन के पश्चात वह काम सुख यानी स्त्री और परिवार आदि कामनाओं की पूर्ति करता है। चौथी संकल्पना मोक्ष की है, जो भारतीय दर्शन के अनुसार सबसे चरम उपलब्धि है। मोक्ष यानी जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाना। सरल शब्दों में कहें तो परम सत्ता में लीन हो जाना, भगवत् धाम को चले जाना। इसे ईसाई हेवेन, मुसलमान जन्नत और हिंदू वैकुंठ कहते हैं।
अनीश्वरवादी लोग मोक्ष की संकल्पना को सच नहीं मानते, किंतु व्यक्ति के पुरुषार्थ के तीन आधारों से सहमत नजर आते हैं। पाश्चात्य सभ्यता में काम सुख सबसे ऊपर है, इसीलिए यहां मां को प्रधानता दी जाती है, पिता को नहीं। मां कई विवाह करके पुन: एकाकी जीवन व्यतीत करने लगती है। बेटा मूलत: मां के नाम से ही पहचाना जाता है। भारत पितृ प्रधान देश है, पिता का पता न होने पर पुत्र को बुरी निगाह से देखा जाता है।
पश्चिम से कोट, पैंट, कंप्यूटर, इंटरनेट, खेती-बाड़ी और कल कारखानों की आधुनिकतम मशीनों को अपनाकर हमने अपने जीवन स्तर को सुधारा है, लेकिन हमें उनसे प्रेम और जीवन जीने का तरीका सीखने की कतई जरूरत नहीं है। भारतीय मनीषा का जीवन दर्शन सर्वश्रेष्ठ है। जीवन के रहस्य और जीने की कला का विशद वर्णन भारतीय साहित्य में है। ज्ञान का जो विपुल भंडार भारत के पास है, वह विश्व में किसी के पास नहीं है। युवा पीढ़ी को इस अंधानुकरण से बचते हुए अपनी संस्कृति का अनुकरण करना चाहिए। सनातनी लोग अब इस दिन को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाने लगे हैं।

(लेखक वरिष्ठ कवि व साहित्यकार हैं।)

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