डॉ. ममता शशि झा मुंबई
दिगंबर बाबू के कनिया शीला देवी कुंभ स्नान कर के लेल, ले जेबाक लेल मोन लोहछा के धे देने छलखिन। मोन में ते दिगंबर बाबू के होइ छलइन जे ल जा के सही में कुंभ में छोड़ी अबियनि आ सबदिन के झंझट सँ छुटकारा पाबि जाय, मुदा मोनक बात बजबाक ने हिम्मत छलनि आ ने उचित अवसर छलइ, बेचारा पत्नी सँ हरदम त्रस्त रहइ छलखिन। बुझइ छलखिन जे जिद्द ठानि लेलथि से पूरा करहे पड़तनि!
दुनु बेटा सेहो माय के पठाब के पक्ष में नहिं छलखिन, मुदा माय के कर्कश स्वभाव के बुझइत चुप छला।
दिगंबर बाबू, ‘हे बड़ भीड़ छइ, ट्रेन आ बस में धमगज्जर मचल छइ, हवाई जहाज के टिकट सेहो नहिं भेट रहल अछी, कोना जायब, जे दान-पुण्य करब से येतहि के लिय। अपना गाम के गरीब के चीज-बस्तु दे दिययु।
शांति देवी बात बिच में कटइत चिचियाइत बजलि, ‘मनुखे सबहक भीड़ छइ की जानवर सबके!’
हिंदी सिनेमा सँ प्रभावित शीला देवी के दुनु पुतोहु मोने-मोन खुश छलि जे कुंभ मेला में लोक सब हेरा जाय छइ ताहि लेल पहिल बेर मोन स हुनकर बात के हँ में हँ मिला रहल छलखिन। दुनु भार्इं अपन-अपन कनिया के मोन के बात बुझि क इ बात बुझा देलखिन जे आब कुंभ में लोक सब के हेरेबाक मौका बड़ कम छई कियेक ते प्रशासन एकदम नीक व्यवस्था केने छइ, जगह-जगह खोया-पाया के बुथ बना के रखने छइ। दुनु पुतोहु के पहिल बेर सरकार के व्यवस्थित काज पर मोन तमसा गेलनि, दुनु एक दोसर के मुँह दिस देखइत जे मिथिला के प्रचलित गारि छइ से ठोड़ पटपटबइत बाज लगली। दुनु भार्इं गाड़ी के जोगार में लागि गेला। शीला देवी दुनु पुतोहू के बजा के कहलखिन, ‘हे हम चारिये दिन लेल जाय छी, इ नइ बुझि लेबइ जे घर पर अहाँ सबहक राज भ गेल। हम चारि दिन के लेल सीधा आ सबटा सामग्री निकली के द जाय छी। बेटा सब दिस देखि के बजली, ‘आ हँ अगल-बगल में नहिं कहि दइ जाय छहीं जे हमरा लेल गाड़ी ठीक के देने छहि, हम नहिं चाहइ छी जे हमरा क्यों संग लागि जाय। फेर दुनु पुतोहु दिस देखइत बजली, ‘हम ओत स वीडियो कॉल करइत रहब, अहाँ सबपर ध्यान देने रह लेल।’
दिगंबर बाबू इ सब सुनि के सोचि रहल छला- ‘तन ले के जाय छथि मोन एतहि, अपन अहंकार आ अपन सत्ता जमाब के प्रवृत्ति स जँ मुक्ति भे सकितथि ते असल मुक्ति होइतनि। पाप मोचीनी गंगा कोना एहन लोक सबहक पाप धोति!!!’