मुख्यपृष्ठसंपादकीयबहुमतमुक्त भाजपा!

बहुमतमुक्त भाजपा!

नरेंद्र मोदी पहली बार जब २०१४ में सत्ता में आए तब उन्होंने ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ का नारा बुलंद किया। २०२४ में उसी कांग्रेस ने मोदी के घमंडी सीने का गुब्बारा फोड़ दिया है। कांग्रेस ने पटखनी मारकर भाजपा को छिन्न-भिन्न कर दिया। भाजपा कम से कम नौ राज्यों से निष्कासित हो गई है। भाजपा वहां खाता नहीं खोल सकी। तमिलनाडु जैसे बड़े राज्य में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। पंजाब एक महत्वपूर्ण राज्य है। इस राज्य में भी भाजपा खाता नहीं खोल पाई। मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम जैसे सीमावर्ती राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन शून्य है। पुड्डुचेरी और चंडीगढ़ में भी भाजपा नहीं बची है। (अर्थात मध्य प्रदेश सहित बारह राज्यों में कांग्रेस की हालत ऐसी ही दयनीय है।) उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मिलकर भाजपा को ‘आधे’ राज्य से साफ कर दिया। महाराष्ट्र में तो भाजपा पर मुंडन कर खुद का ही श्राद्ध करने की नौबत शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस ले आई है। देश में इस गणित पर नजर डालें तो ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ का नारा साफ तौर पर खो गया है। मोदी-शाह के गुजरात में कांग्रेस ने अपना खाता खोला और कई सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने भाजपा उम्मीदवारों को पसीना-पसीना कर दिया है। मोदी कांग्रेस का योगदान स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। मोदी की नई भाजपा कहती थी कि आजादी की लड़ाई के दौरान देश की प्रगति में कांग्रेस कहीं नहीं थी, लेकिन इस बार कांग्रेस ने सौ सीटों का आंकड़ा पार करके मोदी के तर्क को गलत साबित कर दिया। मोदी की तरह भाजपा अध्यक्ष डॉ. नड्डा ने ये भी एलान किया था कि अब से देश में सिर्फ भाजपा होगी और हम क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व खत्म कर देंगे, लेकिन देखिए वक्त ने उनसे वैâसा बदला लिया। भाजपा ने अपना बहुमत खो दिया और मोदी को नीतिश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, चिराग पासवान आदि क्षेत्रीय दलों के समर्थन से खिचड़ी सरकार बनानी पड़ रही है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जब मोदी संघ प्रचारक के तौर पर काम कर रहे थे तो उन्हें ‘खिचड़ी’ बहुत प्रिय थी। अब उन्हें कुछ समय तक सिर्फ खिचड़ी ही खानी पड़ेगी। लोकसभा नतीजों से पहले नड्डा ने हुंकार भरी थी, ‘हमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जरूरत नहीं है। अब हम मोदी टॉनिक लेकर आत्मनिर्भर और मजबूत हो गए हैं।’ लेकिन नतीजा ये हुआ कि मोदी टॉनिक कमजोर पड़ गया और भाजपा को संघ के कदम पर याचक बनकर खड़ा होना पड़ा। मोदी और शाह ने जो भी अस्वाभाविक कृत्य किया, उसका उन पर ही उल्टा असर हुआ। पिछले कुछ दिनों से मोदी-शाह दंड बैठक कर रहे हैं, लेकिन हार उनके काले चेहरों पर साफ दिख रही है। मोदी कांग्रेस, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस को खत्म करने निकले थे, लेकिन मोदी ऐसा नहीं कर सके और ये पार्टियां और अधिक मजबूती के साथ सामने आईं। मोदी ने अपने प्रचार अभियान में ऐसी भाषा का प्रयोग किया कि शरद पवार भटकती आत्मा हैं और उद्धव ठाकरे नकली संतान हैं, लेकिन उसी भटकती आत्मा और नकली संतान ने महाराष्ट्र में भाजपा के ‘पिंड’ को कौवों के साथ उड़ा दिया और बहुमत गवां चुकी मोदी की आत्मा, क्षेत्रीय दलों के पीपल पर लटकती नजर आ रही है। चिराग पासवान की ‘लोजपा’ को अमित शाह ने तोड़कर चिराग के चाचा को सौंप दी। निशान और पार्टी गवां कर खड़े हुए चिराग! आज उसी चिराग के टेके पर मोदी सत्ता स्थापित कर रहे हैं। यही मोदी की नीति है। कल वे कांग्रेस पार्टी की प्रशंसा करना शुरू कर देंगे और सत्ता बरकरार रखने के लिए जरूरत पड़ने पर सोनिया गांधी के दरवाजे पर खड़े होंगे। मोदी सौ फीसदी बिजनेसमैन हैं और बिजनेसमैन सिर्फ अपना फायदा देखता है। अमित शाह ने आंध्र जाकर तेलुगु देशम को खत्म करने की बात कही थी। और ऐसा भी कहा था कि चंद्रबाबू को ‘एनडीए’ में कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा। खुद नीतिशबाबू ने आरोप लगाया था कि अमित शाह नीतिश कुमार की पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। आज मोदी-शाह को सत्ता के लिए उसी नीतिश कुमार के चरणामृत का प्राशन करना पड़ा। मोदी ने इस तरह का हौवा निर्माण किया कि सत्ता में आने पर कांग्रेस मुसलमानों को आरक्षण देगी, लेकिन चंद्रबाबू खुद मुस्लिम समुदाय को आरक्षण देने के पक्ष में हैं और इसकी मांग कर रहे हैं। तो क्या मोदी ने चंद्रबाबू की मांग मान ली है? यह सवाल उठता है। सरकार बनाने के लिए बहुमत के आंकड़े तक पहुंचते-पहुंचते मोदी-शाह थक गए। मोदी का घमंड उतर गया। मोदी अब अपने मुंह से हिंदुत्व का ‘हिं’ भी नहीं निकाल पाएंगे। जैसा मोदी ने तय किया वैसा कुछ नहीं हुआ। क्योंकि मोदी की कथनी और करनी सब झूठ थी। उनका तप और ध्यान दिखावा था। मोदी ने सत्ता के लिए पहले पार्टियां तोड़ीं, अब समझौते किए। क्योंकि ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ बनाने के चक्कर में आधा भारत ‘भाजपामुक्त’ हो चुका है और मोदी का घमंड बैसाखियों पर लटका हुआ है। ‘इंडिया’ ने ‘बहुमतमुक्त भाजपा’ इस सत्य को सच कर दिया। फिर भी मोदी के लोगों का दावा है कि दुनियाभर से बधाई संदेश आ रहे हैं। यह आश्चर्य की ही बात है!

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