उम्मीद की अर्थी पर सोया आदमी
तिल-तिल जल रहा है जीने को
जबरिया जरौनी का इंतजाम
उसके चहेतिया लोग कर रहें हैं
सांसों के फुल स्टाप की
शिनाख्त अब डागडर के भरोसे है
गंगा जल और तुलसी दल के
विषमांगी मिश्रन को
जबरिया चिम्मचिया दिया जा रहा है घघोले में
नाम बदलने की होंड़ लगी हुई है
कोई फलाने कह रहा है तो कोई लाश
लेटा आदमी नाउम्मीदी के दौर से गुजर कर
अंततोगत्वा मर-मुरा जाता है
और हो जाता है फलाने से लाश
आसानी से मर जाता पा जाता आकाश
अगर लगाया नहीं होता किसी से आस।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी