सामना संवाददाता / नई दिल्ली
मोदी सरकार को स्वतंत्र मीडिया से काफी डर है। वह मीडिया का मुंह बंद करने के लिए नकेल लगाने का प्रयास करती रहती है। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, २०२३ एक ऐसा ही नकेल है। इस कानून के तहत पत्रकारों पर भी २५० से लेकर ५०० करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह कानून सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया पर लागू होता है। आज डिजटल मीडिया का जमाना है और कई वेबसाइट्स व यूट्यूब चैनल मोदी सरकार की काफी आलोचना करते हैं। ऐसे में किसी नेता या अधिकारी का नाम बिना उनकी अनुमति के लेने पर वे मुश्किल में फंस सकते हैं।
डीपीडीपीए के तहत, निजी जानकारी व डेटा लीक करना गुनाह की श्रेणी में आता है। इसके तहत किसी नेता व अधिकारी का नाम बिना उनकी अनुमति के नहीं छापा, बताया या दिखाया जा सकता है। ऐसा डेटा लीक करने पर ५०० करोड़ रुपए तक का जुर्माना लग सकता है।
संकट में ‘डेटा फिड्यूशियरी’
कानून के तहत ‘डेटा फिड्यूशियरी’ वे संस्थाएं हैं, जो व्यक्तिगत डेटा के संग्रहण, उपयोग और प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों का निर्धारण करती हैं। इसमें मीडिया संगठन और पत्रकार भी शामिल हो सकते हैं, विशेष रूप से जब वे रिपोर्टिंग के दौरान व्यक्तिगत डेटा का उपयोग करते हैं।
पत्रकारिता पर दबाव
इस कानून के तहत पत्रकारों पर दबाव बनाने की कोशिश की गई है। पत्रकारों की औसत सैलरी ५० हजार से लेकर एक लाख तक होती है। ऐसे में वे २५० या ५०० करोड़ रुपए कहां से लाएंगे? जाहिर है यह अनके ऊपर दबाव बनाने की साजिश है। यह स्थिति पत्रकारों के लिए कानूनी जोखिम बढ़ा सकती है और उनकी रिपोर्टिंग की स्वतंत्रता पर प्रभाव डाल सकती है।
पहले पत्रकारों को छूट थी
पहले के ड्राफ्ट बिलों (२०१८, २०१९, २०२१) में पत्रकारों को कुछ हद तक छूट दी गई थी, लेकिन २०२३ के संस्करण में यह छूट खत्म कर दी गई है। अब पत्रकारों को भी अन्य ‘डेटा फिड्यूशियरी’ की तरह सभी दायित्वों का पालन करना होगा। यदि किसी रिपोर्टिंग के दौरान व्यक्तिगत डेटा का अनुचित उपयोग होता है, और वह ‘सार्वजनिक हित’ में नहीं माना जाता, तो संबंधित पत्रकार या मीडिया संस्था पर जुर्माना लगाया जा सकता है।