मुख्यपृष्ठनए समाचारमुंबई मिस्ट्री: जमनालाल बजाज गांधीजी के पांचवें बेटे!

मुंबई मिस्ट्री: जमनालाल बजाज गांधीजी के पांचवें बेटे!

विमल मिश्र मुंबई

देश के सुप्रसिद्ध बजाज कारोबारी घराने के संस्थापक जमनालाल बजाज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोषाध्यक्ष थे। महात्मा गांधी से उनका संबंध पिता और पुत्र की तरह था।

१९२० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन नागपुर में चल रहा था तो जमनालाल बजाज एक कौतुक भरा प्रस्ताव लेकर महात्मा गांधी के पास आए, ‘आप मुझे अपना पांचवां बेटा बना लें।’ पर, गांधीजी को उनके दूसरे प्रस्ताव ने ज्यादा चौंकाया, ‘मैं आपको पिता के रूप में ‘गोद लेना’ चाहता हूं।’ यह थी एक अद्भुत संबंध की शुरूआत, जिसकी दूसरी मिसाल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नहीं मिलती। जमनालाल बजाज गांधी जी के पारिवारिक सदस्य की ही तरह नहीं ही थे, गांधी जी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को उन्होंने वास्तविक जीवन में जीकर दिखाया था। वे बापू को पिता ही नहीं, अपना गुरु मानते थे और उन्हें अपना सर्वस्व समर्पित कर देना चाहते थे। गांधी जी ने भी अपना पहला ‘डिक्टेटर’ उन्हें ही मनोनीत किया था।
जमनालाल बजाज का जन्म ४ नवंबर, १८८९ को राजस्थान के सीकर में ‘काशी का बास’ में कनीराम और बिरदीबाई के गरीब मारवाड़ी परिवार में हुआ था। वे केवल चौथी कक्षा तक पढ़ पाए। वर्धा के धनी नि:संतान बच्छराज दंपत्ति ने उन्हें बचपन में ही गोद ले लिया। जब वे १३ वर्ष थे, उनका विवाह नौ वर्ष की जानकी से कर दिया गया और केवल १७ वर्ष की उम्र में वे भरे-पूरे बजाज घराने के नियंता थे, जो आज ‘बजाज बिजनेस ग्रुप’ के नाम से देश के अव्वल कारोबारी घरानों में से है।
कांग्रेस के कोषाध्यक्ष
भारतीय स्वतंत्रता के महानायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का १९२० में निधन हो गया था। १९२१ में उनके नाम पर जो ऑल इंडिया तिलक मेमोरियल फंड बना था, उसमें जमनालाल बजाज ने उस समय एक करोड़ रुपए दान किए थे। इस राशि का उपयोग देशभर में खादी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया गया था। जमनालाल जी को कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने तब तक एक वर्ष हो चुका था। १९३७-३८ में हरिपुरा में जमनालाल जी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने पर सहमति हो चुकी थी, लेकिन उन्होंने अपना यह अधिकार नेताजी

सुभाष चंद्र बोस बाबू के पक्ष में त्याग दिया।

कांग्रेस और स्वतंत्रता आंदोलन से जमनालाल जी की संलग्नता महामना मदनमोहन मालवीय और रवींद्रनाथ ठाकुर से संपर्क के साथ हुई थी। १९०६ में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अपनी मराठी पत्रिका ‘केसरी’ का हिंदी संस्करण निकालने के प्रयास में थे तो युवा जमनालाल प्रतिदिन मिलनेवाला एक रुपए का जेब खर्च इस निमित्त जाकर उन्हें भेंट कर आए। महात्मा गांधी से उनका संपर्क १९१५ में दक्षिण अप्रâीका से उनके भारत लौटने के दिनों से ही था। जब बापू ने साबरमती में आश्रम बनाया तो वे वहां जाकर रहे। असहयोग आंदोलन के समय जब विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार शुरू हुआ तो जमनालाल जी का सबसे पहला काम था पत्नी जानकीदेवी के साथ अपने घर के सोने-चांदी जड़े बेशकीमती और रेशमी वस्त्रों को बैलगाड़ी पर लदवाकर शहर के बीचों-बीच उनकी होली जलवाना। विरोध में अंग्रेज सरकार द्वारा दी गई ‘राय बहादुर’ की पदवी उन्होंने त्याग दी और बंदूक और रिवॉल्वर जमा कराते हुए संबद्ध लाइसेंस वापस कर डाले। ‌ब्रिटिश अदालतों का पक्षपात देखते हुए उन्होंने उनका बहिष्कार किया और अपने सारे मुकदमे वापस लेकर साथी व्यावसायियों को मध्यस्थता के जरिए विवादों के निपटारे के लिए मनाते रहे। जिन वकीलों ने आजादी की लड़ाई के लिए अपनी वकालत छोड़ दी, उनके निर्वाह के लिए उन्होंने कांग्रेस को एक लाख रुपए का दान अलग से किया।

जमनालाल जी असहयोग आंदोलन, नागपुर झंडा सत्याग्रह, साइमन कमीशन का बहिष्कार, डांडी यात्रा और अन्य कई आंदोलनों में सक्रिय तौर पर शामिल रहे। असहयोग आंदोलन के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ तीखा भाषण देने और सत्याग्रहियों का नेतृत्व करने के लिए १८ जून, १९२१ को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें ३,००० रुपए के जुर्माने के साथ डेढ़ वर्ष के सश्रम कारावास की कठोर सजा सुनाई गई। जुहू के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने कस्तूरबा गांधी, जानकीदेवी बजाज और बालासाहेब गंगाधर खेर के साथ भाग लिया था। इस उद्देश्य से घोड़बंदर रोड पर भी एक विशेष केंद्र स्थापित किया गया था। ६ नवंबर, १९३० को जमनालाल बजाज ने विले पार्ले में राष्ट्रीय ध्वज फहराया और दूसरे सत्याग्रहियों के साथ ब्रिटिश प्रतिबंधों का उल्लंघन करके नमक बनाया।

कथनी-करनी एक

जाति-भेद के घनघोर विरोधी जमनालाल ने सामाजिक सुधारों की शुरुआत अपने घर से ही की। घर, आंगन, खेत और उद्यानों में स्थित सारे कुएं दलितों के लिए खोल दिए। विनोबा भावे ने १९२८ में वर्धा स्थित उनके पूर्वजों के लक्ष्मीनारायण मंदिर में जब दलितों और हरिजनों का प्रवेश कराया। अछूतोद्धार के साथ हिंदू-मुस्लिम एकता के भी कितने ही काम उन्होंने किए।
जमनालाल बजाज ने परिवार सहित खादी और स्वदेशी को स्वयं ही नहीं अपनाया, गांधी जी ने जब १९३५ में अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना की, तब उसके ‌लिए खुशी-खुशी अपना विशाल उद्यान भी सौंप दिया। उनका एक दूसरा बड़ा काम गोसेवा संघ के जरिए गो-सेवा का था। उन्होंने गांधी सेवा संघ, सस्ता साहित्य मंडल आदि संस्थाओं की स्थापना की। १९३६ में नागपुर में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन हुआ, जिसके बाद उन्होंने वर्धा में देश के पश्चिम और पूर्व के प्रांतों में हिंदी प्रचार के लिए २० एकड़ भूमि दान में देकर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना की।

१९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में जेल से रिहाई के बाद जमनालाल जी मां आनंदमयी से मिलने देहरादून गए हुए थे। वहां से वर्धा लौटने के बाद मस्तिष्क की नस फट जाने से ११ फरवरी, १९४२ में उनका अचानक देहांत हो गया। सामाजिक क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने के लिए ‘जमनालाल बजाज पुरस्कार’ आज भी उनकी याद दिलाता है। देश और समाज सेवा का संस्कार बजाज खानदान ने विरासत में पाया है। जमनालाल जी के निधन के बाद उनकी पत्नी जानकी देवी बजाज ने स्वयं को देशसेवा में समर्पित कर दिया। बड़े पुत्र कमलनयन वर्धा से तीन बार कांग्रेस सांसद रहे, जिनके वारिस राहुल बजाज हुए। छोटे पुत्र रामकृष्ण बजाज अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूदे थे और १९४२ से १९४६ तक चार साल जेल में बिताए थे।

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