दूर नजर डाली
तेरा संदेश न आया
तुझे खत लिखना चाहा
तेरा पता मालूम न हुआ
गलियों-चौबारे पर खड़ी देख रही
तेरा साया भी दिखाई न दिया
बस ख्वाबों में इतना सताया
अश्रु की धारा ने मुझे नहलाया
भुला न पाऊं तेरी हंसिया, बतिया, हस्तियां
सदा याद आए तेरी नादानियां, सादगिया
तूने मेरा वजूद भूला के मुझे रुलाया
तुम मेरी सहेलियां वो अठखेलियां
वृक्ष की ठंडी छांव में बैठना
याद दिलाता है मुझे वो समा
जो अब नहीं है जवां
कोई भी नहीं है मेरे संग अब यहां
अब अकेलेपन का एहसास है
वही सुनहरे पुराने दिन वापस ला दे
वही अटूट रिश्ता फिर से बना दे
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा