हिमांशु राज
लखनऊ में आयोजित 60,000 पुलिस भर्ती अभ्यर्थियों के नियुक्ति पत्र वितरण समारोह के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक शब्द ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में नए सिरे से चर्चा शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस कार्यक्रम को भव्य तरीके से आयोजित किया था और गृह मंत्री को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। हालांकि, अमित शाह ने अपने संबोधन में योगी की कानून-व्यवस्था की प्रशंसा करने के बाद उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को “मेरे मित्र” बताकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी।
इस छोटे से शब्द ने योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर आश्चर्य और तनाव की लकीरें खींच दीं, जबकि केशव मौर्य मुस्कुराते नजर आए। यह घटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उत्तर प्रदेश में भाजपा के भीतर नेतृत्व को लेकर चल रहे मौन संघर्ष को उजागर करती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमित शाह ने जानबूझकर यह शब्द इस्तेमाल किया होगा, जिससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी 2027 के विधानसभा चुनावों में केशव मौर्य को प्रमुख भूमिका में ला सकती है।
कुछ लोग इसे योगी के प्रभुत्व को चुनौती देने वाला कदम मान रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि भाजपा उत्तर प्रदेश में एक नया नेतृत्व विकसित करना चाहती है। केशव मौर्य पिछड़ी जातियों में अपनी पकड़ रखते हैं, जो भाजपा के लिए महत्वपूर्ण वोट बैंक है। ऐसे में, अगर पार्टी योगी के बजाय मौर्य को आगे करती है, तो यह सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखकर लिया गया रणनीतिक निर्णय हो सकता है।
इस घटना के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य के बीच तनाव बढ़ता है या फिर पार्टी इसे सामंजस्यपूर्ण तरीके से संभालती है। साथ ही यह भी स्पष्ट होगा कि क्या भाजपा वास्तव में 2027 में मौर्य को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाने की तैयारी कर रही है।