मुख्यपृष्ठस्तंभकचराघर से नंदन कानन

कचराघर से नंदन कानन

विमल मिश्र
मुंबई

धारावी पुनर्विकास परियोजना में शामिल किए जाने को लेकर अप्रिय विवादों में घिरा माहिम का सुरम्य महाराष्ट्र निसर्ग उद्यान मुंबई का हरियाला फेफड़ा होने के साथ शहर के सबसे विलक्षण स्थानों में से है। गंदगी और बदबू से बजबजाते डंपिंग ग्राउंड से शहर के बीचों-बीच इसके नंदन कानन बनने की कहानी जितनी अद्भुत है, उतनी ही प्रेरक।
कोयल की कूक, मेंढक की टर्र-टर्र और गिलहरियों की सरगोशियों के बीच एक लंबा सा सांप अनायास हमारे कलेजे को कंपाता रास्ता काटकर सामने से गुजर जाता है। माहिम के महाराष्ट्र निसर्ग उद्यान के इस निर्जन में १४,००० से अधिक वृक्ष बीच भरी दोपहरी में भी तपन का अहसास नहीं होने देते। सैकड़ों तरह की औषधि व जड़ी-बूटियों उपजाने वाले वृक्षों को देखते और कछुओं, चमगादड़ों, प्रवासी पंछियों से मिलते हम झील के पास पहुंच जाते हैं, जो देखभाल के अभाव में बिलकुल हरी दिख रही है। ईंट के रास्ते की जगह हमें कई जगह पेवर ब्लॉक का सामना पड़ता है, पेड़ों की टहनियां कटी और राख के साथ जली हालत में मिलती हैं, वर्मी कंपोस्टिंग के गड्ढों में कंक्रीट के निशानों के साथ। शराब की खाली बोतलें तो चौंका ही देती हैं। चौकीदारों के लिए खबरदारी यहां पहली शर्त है। उत्पाती कभी भी आ धमकते हैं। फेंसिंग मजबूत किए जाने के बावजूद नर्सरियों से पौधों का चोरी चला जाना अभी रुका नहीं है।
दो घंटे के इस निपट अकेले वॉक में कुछ मजदूरों और कर्मचारियों को छोड़कर हमें कोई नहीं मिलता। कुछ न कुछ मरम्मत कार्य हमेशा चलता ही रहता है। रक्षक जगदीश वाघेला बताते हैं, ‘बाबू, भौरों का गुंजन और चिड़ियों की चहचहाहट सुनना हो तो सुबह-सुबह आओ।’ एक अन्य रक्षक हमें मचान पर चढ़कर नजदीक की खाड़ी के पक्षियों को दूरबीन से देखने की सलाह थमा जाता है। शांति पथ पर घूमते-घूमते अब हम पार्क की ‘एस्ट्रल गार्डन’ नामक जगह पर चले आए हैं, जो चारों ओर १२ राशियों और २७ नक्षत्रों वाले वृक्षों से घिरा है। इन सबके अपने चिकित्सा गुण हैं। हम भी अपनी राशि चिह्नित वृक्ष के नीचे जा बैठते हैं- उस अतीव शांति की प्रतीति के लिए जो इस स्थान का ‘विशेष गुण’ है।
बीच शहर एक जंगल
एक तरफ धारावी, दूसरी तरफ माहिम की खाड़ी में समाती प्रदूषित मीठी नदी-कूड़े, कबाड़ और तेल की गंदगी से जिसका न सिर्फ जल का प्रवाह सूखता जा रहा था, बल्कि मैंग्रोव्ज नष्ट होते चले जाने से जलचर भी समाप्त होने लगे थे। आज का महाराष्ट्र निसर्ग उद्यान उन दिनों तमाम शहर की गंदगी को समेटे बदबूदार डंपिंग ग्राउंड हुआ करता था। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की अध्यक्ष शांता चटर्जी १९७६ की एक सुबह यहां से गुजर रही थीं कि अचानक यहां उन्हें प्रवासी पंछियों का एक काफिला दिखाई दिया। नेचर पार्क बनाने का विचार इस तरह जन्मा। १९७७ में यहां कचरा फेंकना बंद कर दिया गया। १९८० में विश्वविख्यात पक्षीविद डॉ. सालिम अली और वर्ल्डवाइड लाइफ फंड जैसी संस्थाओं के अनुरोध पर सरकार ने मीठी नदी के दक्षिणी छोर का एक हिस्सा नैसर्गिक संपदा के रूप में सुरक्षित रखने का निर्णय किया। १९९४ में मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण ने काम शुरू किया। झाड़-झंखाड़ साफ किए गए, ताजी मिट्टी की परतें बिछाई गईं और देश के दूसरे हिस्सों से लाकर औषधियों सहित नाना प्रकार के पेड़ लगाए गए। वॉलंटियर्स ने हाथ बंटाया और बांद्रा-सायन लिंक रोड पर धारावी बस डिपो के ठीक सामने ४१ एकड़ भूमि का यह भूखंड लहलहाने लगा। डॉ. सालिम अली यहां पहला वृक्ष १९८२ में लगाकर गए थे। १९९२ में जब पार्क तैयार हुआ तो उद्घाटन के लिए उन्हें ही बुलाया गया। शुरू में यह केवल बच्चों के लिए खुला और दो वर्ष बाद सबके लिए। ‘कचरा फेंकने की ऐसी जगह पर, जहां कुछ मिनट टिकने पर नाक पर रूमाल रख लेने की मजबूरी हो कोई पार्क भी बन सकता है बिलकुल अकल्पनीय बात थी’, एनजीओ स्प्राउट के मुखिया पर्यावरणविद आनंद पेंढारकर बताते हैं।१५ हेक्टेयर में फैला माहिम नेचर पार्क १९९१ के एक सरकारी प्रस्ताव के अनुसार एक संरक्षित वन है, जहां १८६ से अधिक किस्मों के दुर्लभ वृक्ष-गुल्म-पौधे, १४ हजार से ज्यादा पेड़, ५८२ तरह के प्लांट, १५८ प्रकार के पक्षी, ८५ तरह की तितलियां, ३० प्रकार के बिच्छू, ३२ तरह के रैपेटाइल, एक लाख से ज्यादा मछलियां, कई प्रकार के मेंढक व छिपकलियां, ११० प्रकार की औषधीय जड़ी-बूटियां और १४ से ज्यादा ‘मैंग्रोव्ज’ हैं। वन्यजीवन फोटोग्राफरों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है यह पार्क। इसे पर्यटक महत्व का केंद्र बनाने के लिए इन दिनों विविध आयामी योजनाएं अमल के विभिन्न चरणों में हैं। इनका सिलसिला २०१५ में शुरू हुआ, जब एमएमआरडीए ने आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के साथ ग्लोबल डिजाइन चैलेंज आयोजित किया, जिसके साथ पार्क की सुंदरीकरण योजना के लिए सुझाव मांगे गए। इसके तहत यहां एक नई कार्यालयीन इमारत, बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स से जोड़ने के लिए मीठी नदी पर पैदल व साइकिल पुल, मीठी नदी के किनारे डेढ़ किलोमीटर लंबा वॉटर प्रâंड प्रामीनेड, बहुमंजिला पार्किंग लॉट, व्यूइंग गैलरी, बर्ड वॉक, डे केयर सेंटर, कॉफी शॉप, स्वागत केंद्र, कैफे, टॉयलेट ब्लॉक, लाइब्रेरी, बच्चों का प्ले एरिया और कार्यक्रम आयोजित करने की जगह के साथ झोपड़पट्टी वासियों के लिए शौचालय की सुविधा के साथ एक सार्वजनिक उद्यान बनाने पर सहमति बनी। इन सुझावों पर आधा-अधूरा ही अमल हो पाया है। हालिया योजना अब इसे सायन-धारावी से जोड़कर मीठी नदी और मैंग्रोव्ज के ऊपर डेढ़ किलोमीटर लंबा पुल बनाकर नेचर पार्क के नजारे दिखाने की योजना भी है, जिसके लिए एमएमआरडीए ने २७ करोड़ रुपए का बजट आबंटित किया है। बन जाने पर यह भारत का सबसे लंबा संस्पेंशन ब्रिज होगा।
जीवन जाल
सूर्य के आकार की इमारत और कृष्णन खन्ना द्वारा बनाया म्यूरल ‘जीवन जाल’। माहिम नेचर पार्क की हर चीज जीवन के कुछ तत्वों के गिर्द घूमती है। चंदवादार शांति पथ पर कदमताल। पुस्तकालय, दृश्य-श्रव्य और प्रदर्शन कक्ष, ओपन एयर एंपीथिएटर और ‘लाइव डेमांस्ट्रेशन’ केंद्र। बोटानिकल गार्डन सागर उपवन, मछलीघर और भारत का पहला मधुमक्खी पार्क। पर्यावरण शिक्षण, चित्र व निबंध लेखन और निसर्ग खेलकूद जैसी प्रतियोगिताएं व वर्कशॉप। छत उद्यान, वर्मीकल्चर, मधुमक्खी पालन जैसे कार्यक्रम। नेचर पार्क रूफटॉप रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग से हर मॉनसून यहां दो करोड़ लीटर पानी का संचय होता है, जो बागवानी व रख-रखाव के काम आता है। पार्क में कीटनाशक दवाओं का उपयोग नहीं किया जाता। कुदरती खाद का काम वृक्षों के पत्ते और डालियां खुद करती हैं। वर्ष पर्यंत समय-समय पर यहां बीज एकत्रीकरण कार्यक्रम, बर्ड वॉच, किसान बाजार, सालाना गौरेया दिन और साइकिल कट्टा जैसे कार्यक्रम चलते रहते हैं। सालाना इवेंट्स अलग से। कबाड़ बीनने वालों की मदद से ‘बायोमास’ कचरा प्रबंधन और सौर ऊर्जा जैसे उपायों के लिए पार्क डायरेक्टर रहे अविनाश कुबल और नंदकुमार मोघे जैसे पर्यावरण विज्ञानी का ऋणी है। पार्क पक्षी परागन से कीट-पतंगों की बाढ़ को रोकने के साथ गर्मी, प्रदूषण और बारिश की विभीषिका रोकने में भी शहर की मदद कर रहा है। २००५ की भीषण बाढ़ को पचा जानेवाले शहर के चंद स्थानों में से है यह पार्क।
‘स्कूल के बच्चे आए थे, गए’, पौधों की देखवाले करते राजू माली का उत्तर हमारे जिज्ञासा को पूरा नहीं कर पाता जो यह जानना चाहती है कि महानगर के बीचों-बीच होने के बावजूद ऐसा दुर्लभ स्थान पर्यटकों से बिलकुल विहीन कैसे है? आंकड़े गवाह हैं कि माहिम पार्क आनेवालों की तादाद सालाना डेढ़ लाख (शुरुआती लक्ष्य तीन लाख का था) से ज्यादा कभी नहीं बढ़ पाई। इस संख्या में भी ज्यादातर स्कूली बच्चे (रोजाना डेढ़ हजार) हैं या सुबह-शाम घूमने वाले और रिसर्च करनेवाले, जिनके लिए यह किसी प्राकृतिक प्रयोगशाला से कम नहीं है।
पार्क का उद्देश्य है प्राकृतिक तत्वों को संरक्षित रखना और लोगों को उनसे परिचित कराना। यह वनस्पतियों का घर और पक्षियों, कीड़ों, सर्पों, गिलहरियों और छोटे-छोटे वन्यजीवियों का अभयारण्य है। लौटने से पहले यहां की नर्सरी से अपने पनपसंद पौधे पैक कराकर ले जाना न भूलें। पार्क में रहने का सर्वश्रेष्ठ समय है सुबह जब सूरज सिर पर न हो। पक्षियों को देखने आना हो तो अक्टूबर से मार्च सबसे मुफीद वक्त है। पार्क कामकाजी दिनों में सुबह ८.३० बजे से दिन ३.३० बजे तक खुला रहता है। बहरहाल, रीडिवेलपमेंट को लेकर यह पार्क कई वर्षों से विवादों के घेरे में है। सरकार के इस आश्वासन पर कि ‘नैसर्गिक क्षेत्र’ के रूप में पार्क की मौजूदा स्थिति स्थाई रूप से कायम रहेगी और इसके रूप और प्रकृति में किसी भी परिवर्तन की अनुमति नहीं दी जाएगी-पर्यावरणविदों को इस पर बिलकुल भी विश्वास नहीं है। मुंबई हाई कोर्ट का २०२३ का वह निर्णय उनके लिए किसी राहत से कम नहीं है कि जब तक विकास योजना में इसे निसर्ग उद्यान के बतौर आरक्षित है, तब तक इसे किसी दूसरे कार्य के लिए विकसित नहीं किया जा सकता।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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