उमेश गुप्ता / वाराणसी
जगत के पालनहार भगवान जगन्नाथ भी बीमार पड़ते है, जी हां सुनने में ये आपको भले ही अजीब लगे, लेकिन ऐसा होता है धर्म नगरी काशी में। दरअसल, जेष्ठ की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ के जलाभिषेक की परम्परा है और लोगों के प्यार में भगवान इतना स्नान कर लेते हैं कि पूरे 15 दिन तक बीमार पड़ जाते हैं। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है।
भक्तों के समतुल्य खुद को दर्शाने के उदेश्य से भगवान जगन्नाथ अपनी लीला के तहत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन अर्ध रात्रि के बाद बीमार पड़ जाते हैं। दरअसल, पिछले तीन सौ वर्षों से अधिक वाराणसी के लोग इस परम्परा का निर्वहन करते चले आ रहे हैं।
पूरे दिन स्नान करने के बाद भगवान ज़ब बीमार पड़ जाते हैं तो उन्हें काढ़े का भोग लगाया जाता है और प्रसाद स्वरूप यही काढ़ा भक्तों को दिया जाता है। लोगों का ऐसा विश्वास है कि इस काढ़े के सेवन से इंसान के शारीरिक ही नहीं, मानसिक कष्ट भी दूर हो जाते हैं। इस प्रसाद को पाने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगती है।
जगन्नाथ मन्दिर के पुजारी के ने बताया कि वैसे तो काशी भगवान शिव की नगरी है, मगर यहां भगवान जगन्नाथ की भक्ति में पूरा काशी कई दिनों तक डूबा रहता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिनों से बीमार पड़े भगवान जगन्नाथ 15 दिनों बाद स्वस्थ होते हैं। पूरे पंद्रह दिनों तक भगवान को काढ़े का भोग लगाया गया, तब जाकर भगवान ठीक होते हैं। भगवान स्वस्थ्य होकर अपने ससुराल के लिए निकाल जाते हैं। ससुराल भला किसे नहीं भाता, साथ में बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र भी होते हैं।
उन्होंने बताया कि भगवान की इस बीमारी का इंतजार लाखों भक्त हर साल करते हैं और पूरे वर्ष में भक्तों को एक दिन ही मिलता है भगवान के स्पर्श का। जाहिर है भक्तों के लिए ये मौका किसी मुह मांगी मुराद से कम नहीं है। उन्होंने बताया कि भगवान जगन्नाथ को पीला पेड़ा और पीला वस्त्र काफी पसंद है।