अनन्या समर्थ ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर किया रोशन

सामना संवाददाता / जौनपुर

शहर के लाइन बाजार थाना क्षेत्र निवासी मृदुला श्रीवास्तव एवं सुदीप कुमार श्रीवास्तव की होनहार बेटी ‘अनन्या समर्थ’ ने एक लंबे संघर्ष व न थकने वाले प्रयास को एक सम्मान जनक मुकाम तक पहुंचाकर खुद की प्रतिभा को साबित करते हुए, अंतरराष्ट्रीय आइकॉनिक बेस्ट नेगेटिव रोल ऑफ इंडियन टेलिविजन अवॉर्ड 2025 के लिए नामित हुई हैं, जो निःसंदेह न सिर्फ माता-पिता, परिवार, रिश्तेदारों व शहर के लिए गर्व का विषय है, बल्कि जौनपुर की आने वाली प्रतिभाओं के लिए प्रेरणा दायी भी है।
बताते चलें कि अनन्या समर्थ मुंबई में रहकर अपने बूते पर बिना किसी गॉडफ़ादर के स्वयं के अभिनय के जूनून को सच साबित करके दिखाया। जौनपुर शहर में पली-बढ़ी अनन्या का बचपन से ही एक एक्टर बनने का सपना था, जो बिल्कुल भी आसान नहीं था, बिना किसी गॉडफादर के, लेकिन जौनपुर शहर की इस बेटी ने आमतौर पर नामुमकिन से दिखने वाले सपने को सचकर दिखाया। अनन्या मुम्बई माया नगरी के तौर-तरीकों से अनजान कभी भी भयभीत नहीं हुईं, उसका सपना बड़ा और संकल्प दृढ़ था सो उन्होंने अपने एक्ट्रेस बनने के सपने को साकार किया।
मिस जौनपुर भी रह चुकी हैं ‘अनन्या समर्थ’
इस खुशी के मौके पर अनन्या ने अपने इस उपलब्धि के लिए अपने माता पिता व परिवार को स्वयं के उत्साहवर्धन व सपोर्ट हेतु धन्यवाद देते हुए स्वयं को भाग्यशाली मानती हैं। साथ ही जौनपुर शहर की नई प्रतिभाओं के लिए कहा कि बड़े सपने देखने और उसे साकार करने में कभी न घबराएं नहीं आगे बढ़े। आपकी सोच व आपका सच्चा संघर्ष आपको कभी भी निराश नही होने देता सफलता अवश्य मिलती है।

जिंदगी का सफर

छूट जाते हैं लोग
प्यार भरा दिल तोड़ जाते हैं
दिल पुकारे उनको
फिर भी लौट के नहीं आते हैं
जिंदगी रुख जाती है
नया मोड़ लेती है
फिर भी बिछड़े हुए
पलकों में छा जाते हैं
भूल नहीं पाते हैं
अश्रु पी जाते हैं
दर्दे दिल समझ नहीं पाता
फिर भी दिल को मनाते हैं
रह जाती हैं निशानियां
बन के सवालियां
बदल जाता है सारा आलम
क्या करें नए मोड़ में
मजे कम आते हैं
फिजा भी खिजां लगती है
ठंडी हवाएं भी शूल लगती हैं
तरस जाता है मन
एक बार पीछे मुड़कर देखें
शायद आवाज दे हमें कोई
पर हार जाते हैं इंतजार करते
जिंदगी का सफ़र सुहाना है
लोगों का आना जाना
इसी में सर्व आनंद है
पीछे रहना आगे बढ़ना
जीवन का यही कारवां है
यही फलसफा पुराना है
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

हम तुम मिल कर!

आओ हम तुम मिल कर
एक नया गीत गाएं
सातों स्वर पुराने, राग पुराने
हम एक सरगम नई बनाएं
आओ हम तुम मिल कर
एक नया गीत गाएं।
समय बदला, वय बदली
भाव बदले, स्वभाव बदले
बदल रहा जग सारा
अरसा बीत गया मिल कर थे गुनगुनाए
आओ हम तुम मिल कर
एक नया गीत गाएं।
आशाएं बदली, सपने बदले
बदल गई कल्पनाएं
लेकिन यादें वहीं पुरानी
हमको बहुत सताएं
बीते समय को कर स्मरण
चलो फिर से दोहराए
आओ हम तुम मिल कर
कुछ नया कर जाएं।
परायों से उम्मीद नहीं थी
अपनों से कुछ पाया नहीं
मर्यादाएं निभाई हमने
डराती रही लक्ष्मण रेखाएं
मिल कर हम दोनों
नया वाद्य यंत्र बजाएं
मिल कर दोनों कोई नया
मधुर-मधुर सा गीत गाएं।
-बेला विरदी

बिहार में सौ प्रतिशत डोमिसाइल नीति लागू कराने हेतु जन आक्रोश चौपाल 22 जून को- कांग्रेस

अनिल मिश्र / पटना

नौकरी दो, पलायन रोको अभियान के तहत कांग्रेस पार्टी द्वारा चलाए जा रहे पदयात्रा, जन आक्रोश चौपाल एवं धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम को और तेज करते हुए गयाजी में 22 जून को आजाद पार्क में विशाल जन आक्रोश चौपाल आयोजित कर बिहार सरकार से सरकारी एवं गैर सरकारी नौकरियों में सौ प्रतिशत डोमिसाइल नीति लागू कराने हेतु आवाज बुलंद करेगी।इस संबंध में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रदेश प्रतिनिधि सह प्रवक्ता प्रो. विजय कुमार मिट्ठू, पूर्व विधायक मोहम्मद खान अली, जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष बाबूलाल प्रसाद सिंह, राम प्रमोद सिंह, दामोदर गोस्वामी, प्रद्युम्न दुबे, विपिन बिहारी सिन्हा, कुंदन कुमार, युवा कांग्रेस अध्यक्ष विशाल कुमार, मोहम्मद शमीम, मुन्ना मांझी, मोहम्मद समद, एन एस यू आई के अध्यक्ष नवनीत कुमार सिंह सौरभ सिंह साधु शरण सिंह, मिथिलेश शर्मा, टिंकू गिरी, शिव शंकर प्रसाद आदि ने कहा कि बिहार राज्य में डोमिसाइल नीति लागू नहीं होने से किसी प्रकार की बहाली में अनारक्षित सीटों पर आधा से ज्यादा दूसरे राज्यों के बेरोजगार नौकरी ले लेते हैं तथा यहां के छात्र, नवजवान नौकरियों से वंचित रह जा रहे हैं, जिससे बिहार के बेरोजगारों में भयानक आक्रोश है।
इन सभी नेताओं ने कहा कि भारतीय युवा कांग्रेस एवं कांग्रेस पार्टी के संयुक्त तत्वावधान में राज्य के सभी नियोजन कार्यालय पर भी धारना, प्रदर्शन कर राज्य के बेरोजगारों के सभी ज्वलंत मुद्दों को उजागर कर उसे निदान कराने हेतु संघर्ष करेगी। इस बीच इन नेताओं ने कहा कि इंडिया गठबंधन के राज्य के बड़े पार्टनर राजद द्वारा भी आगामी विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की सरकार बनने पर सौ प्रतिशत डोमिसाइल नीति लागू करने की घोषणा की गई है।
सभी नेताओ ने एक स्वर से कहा कि देश के लगभग सभी राज्यों में राज्य स्तरीय नौकरियों में सौ प्रतिशत डोमिसाइल नीति लागू है, जिसका अनुपालन बिहार में भी होना नितांत आवश्यक है। इन सभी नेताओं ने 22 जून के कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु गया जिला के सभी प्रखंडों में प्रभारी बनाने का काम किया है, जिसमें मानपूर प्रखंड का अमित कुमार बाबु, चिंटू सिंह लक्की को वजीरगंज, टिंकू गिरी चंदौती, धर्मेंद्र सिंह बेलागंज, बृजेश राय बोधगया, मदन सिंह टनकुप्पा, पंकज कुमार सिंह फतेहपुर, अजय राज खिजरसराय, मोहडा संतोष मिश्रा, बथानी विद्या शर्मा, अतरी बीरेन्द्र सिंह बीरू, टिकरी राम कृष्णा त्रिवेदी, कोंच प्रमोद कुमार, गुरारू मृत्युंजय शर्मा, परैया राज किशोर पांडेय, डोभी अवधेश सिंह, शेरघाटी उमेश सिंह, बाराचटी उमेश पंडित, मोहनपुर मोहन सिंह, गुरुआ रवि शंकर सिंह, इमामगंज अमित सिंह, दुमरिया विप्लव सिंह, बांके बाजर रमेश पांडेय, आमास परशुराम मिश्रा, गया प्रखंड एक सुभाष चंद्र शर्मा, गया प्रखंड दो कुंदन कुमार, गया प्रखंड तीन रामानुज शर्मा आदि को बनाया गया है।
इन सभी नेताओं ने कहा कि 22 जून 2025 को बिहार प्रदेश में नौकरियों में 100 % डोमिसाइल नीति लागू कराने हेतु गया के ऐतिहासिक आजाद पार्क में आयोजित होने वाली विशाल जन आक्रोश चौपाल कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु अभी से लगातार 15 दिनों तक विभिन्न प्रखंडों के पर्यवेक्षक जनजागरण अभियान कार्यक्रम चलाएंगे।

गपशप : धनंजय की `विपश्यना’: पाप पक गया… अब मन की शांति को इगतपुरी चल पड़ा!

राजन पारकर

जब कोई नेता विवादों में घिर जाए, मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़े, चारों ओर से आरोपों की बौछार हो और फिर अचानक ध्यान साधना के लिए इगतपुरी की वादियों में जा बसे, तब समझ लीजिए कि सियासत अब योग-प्राणायाम की गोद में जा चुकी है।
धनंजय मुंडे नाम लो तो प्रकरण सामने आता है। कभी मंत्री, कभी अभियुक्त, कभी रक्षात्मक नेता, अब ‘ध्यानस्थ योगी’ बनकर इगतपुरी के विपश्यना केंद्र में आत्मचिंतन कर रहे हैं। यानी अब तक जो बोले-बोले, अब बाकी सब मौन।
मजा देखिए-चचेरी बहन और कट्टर प्रतिद्वंद्वी पंकजा मुंडे ने भी कह डाला, `धनंजय ने सही विकल्प चुना है।’ सही विकल्प? अब क्या पापों का प्रायश्चित करने के लिए भी जगह फिक्स करनी होगी? मंत्रालय के कॉन्प्रâेंस हॉल को ही मेडिटेशन कक्ष क्यों न बना दिया जाए?
इस ‘विपश्यना ड्रामे’ का सार कुछ यूं है:
`पद गया, प्रतिष्ठा गई, पब्लिक इमेज मिट्टी में मिल गई। अब ‘मन की शांति’ खोजने पहाड़ों में जा रहे हैं। मगर जनता पूछ रही है, ‘पहले जनता की शांति छीन ली, अब खुद ध्यान कर रहे हो?’
इगतपुरी की कुहासेदार वादियों में ध्यान लग रहा है या अगली राजनीतिक चाल की स्क्रिप्ट तैयार हो रही है, ये तो वक्त बताएगा। लेकिन इतना पक्का है कि ये `विपश्यना यात्रा’ एक तरह से छवि सुधारने की ब्रैंड वॉशिंग प्रक्रिया लगती है।
साबुन नया है, लेकिन दाग तो पुराने ही हैं।
अब जनता कह रही है:
`नेता ध्यान कर रहे हैं और जनता संकट में ध्यान मग्न है-कब गैस मिलेगी, कब राशन आएगा!’
तो कहना पड़ेगा
राजनीति में आना आसान है, पर मन की शांति पाना बड़ा कठिन।
`जब राजनीति तप बन जाए और तपस्या सियासत-तब समझो देश को ध्यान की नहीं, जवाबदेही की जरूरत है।’

बिहार विधानसभा चुनाव जीतने की रणनीति बना रही एनडीए

अनिल मिश्र / पटना

आसन्न बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
सीट बंटवारे से लेकर जीतने तक के लिए हर सीट की रणनीति बना रही है। इसके साथ ही एनडीए और विपक्षी गठबंधन के संभावित बागियों की भी पहचान की जा रही है। वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर भी एनडीए का आकलन है कि जितना विपक्ष इसे मुद्दा बनाएगा उतना विपक्ष को नुकसान और एनडीए को सहानुभूति मिलेगी। बिहार विधानसभा चुनाव में ऐसा पहली बार नहीं है, जब सीटों के बंटवारे को लेकर हाई लेवल का मंथन चल रहा हो। लगभग हर चुनाव में ऐसा ही होता आ रहा है। भाजपा और जदयू इससे पहले भी मिलकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। साल 2010 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो उस समय जदयू ने 141 और बीजेपी ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था। वहीं 2015 के चुनाव से पहले नीतीश ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था। उस समय राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ गया था। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड ने बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा । 2020 के चुनाव से पहले एक बार फिर नीतीश ने भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिलाया था, उस समय जनता दल यूनाइटेड ने 115 और बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पिछले चुनावों को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि इस बार भी जदयू ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बिहार प्रदेश में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर चर्चा चल रही है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के फार्मूले के अनुसार ही बिहार में एनडीए का टिकट बंटवारा होगा। इसको लेकर बिहार की राजधानी पटना से लेकर केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान से दिल्ली तक बातचीत शुरू हो चुकी है। गौरतलब हो कि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 17, जदयू ने 16, लोजपा ने 5 और हम और राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने एक-एक सीट पर चुनाव लड़ा था। वहीं इस बार नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को भी चुनावी रणनीति में ध्यान में रखा जा रहा है, जबकि लोक सभा चुनाव में भाजपा ने जदयू से एक सीट ज्यादा पर चुनाव लड़ा था, लेकिन विधानसभा में जेडीयू बीजेपी से एक-दो ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा क्षेत्र में से 102-103 एवं भाजपा 101-102 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। वहीं इसके अलावा बाकी बचीं करीब चालीस सीटें लोक जनशक्ति पार्टी, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को दी जाएगी। इसमें बड़ा हिस्सा लोजपा का होगा, क्योंकि राज्य में उसके पांच सांसद हैं। इस लिहाज से उसे करीब 25-28 सीटें मिल सकती हैं, जबकि हम को 6-7 और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 4-5 सीटें दी जा सकती है। इस विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी बात है कि बिहार में सीटों के बंटवारे में पेंच न फंसे इसलिए सीटों का बंटवारा एकदम आखिर में किया जाएगा। इसके साथ ही लगातार दो बार से हारी जाने वाली सीटों की अदला-बदली भी की जाएगी। यानी कि अगर किसी सीट पर भाजपा पिछले दो चुनावों से लगातार हार रही है तो उस सीट को दूसरे सहयोगी पार्टी को दिया जा सकता है। ताकि वहां जीत की संभावना हो सके। अब आने वाले समय ही बताएगा कि सीट बंटवारे को लेकर भारतीय जनता पार्टी सहित सहयोगी दलों में कोई पेंच फंसता है अथवा निर्विघ्न प्रत्याशियों का चयन कर विधानसभा चुनाव जीतकर फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बिहार में काबिज होने में कामयाब होगी।

उद्धव ठाकरे ने कहा, संदेश नहीं खबर दूंगा…महाराष्ट्र के मन में जो है वही होगा!

-शिवसेना-मनसे युति को लेकर बोले…सहमति बनेगी!..लोगों की बढ़ी उत्सुकता!!

सामना संवाददाता / मुंबई

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और मनसे के संभावित गठबंधन को लेकर महाराष्ट्र के लोगों में जबरदस्त उत्सुकता है। शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे एक साथ आएं, ऐसी भावना महाराष्ट्र की मराठी जनता की है और यही बात दोनों दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा बार-बार कही जा रही है। इसी संदर्भ में कल उद्धव ठाकरे ने मनसे के साथ गठबंधन को लेकर बात की। उन्होंने कहा कि जो महाराष्ट्र के लोगों के मन में है, वही होगा। गठबंधन पर मैं कोई संदेश नहीं दूंगा, मैं सीधे खबर देता हूं।
शिवसेना छोड़कर शिंदे गुट में शामिल हुर्इं सुजाता शिंगाडे कल अपने कार्यकर्ताओं सहित फिर से शिवसेना में लौट आर्इं। ‘मातोश्री’ निवास पर उद्धव ठाकरे ने उनका स्वागत किया। इस अवसर पर मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने मनसे से गठबंधन पर भी टिप्पणी की। पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि शिवसेना और मनसे कब एक साथ आएंगे? क्योंकि इस विषय पर लोगों में खासा उत्साह है और मनसे की तरफ से यह कहा जा रहा है कि शिवसेना की ओर से गठबंधन का प्रस्ताव भेजा जाना चाहिए तो उद्धव ठाकरे ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। उन्होंने कहा कि ठीक है, देखेंगे… जो महाराष्ट्र की जनता के मन में है, वही होगा।
राज ठाकरे ने ली बैठक
शिवसेना और मनसे दोनों के एक साथ आने की चर्चा पिछले कई दिनों से शुरू है। महाराष्ट्र के तमाम लोगों की भावना है कि दोनों एक साथ आएं। इस संदर्भ में मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने पदाधिकारियों के साथ बैठक कर उनका विचार जानने का प्रयास किया। इस दौरान दोनों पक्षों के एक साथ आने के संदर्भ में सकारात्मक विचार पदाधिकारियों की ओर से रखे गए। सबकी यही भावना है कि महाराष्ट्र में ठाकरे ब्रांड टिकना चाहिए।

संपादकीय : व्हाइट हाउस की हार!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने सनकी और अहंकारी स्वभाव के कारण न केवल विश्व राजनीति में बल्कि खुद अमेरिका में भी दिन-ब-दिन अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। वे लाइव शो में आए हुए राष्ट्रपतियों से ताव में आकर लड़ बैठते हैं, हिदुस्थान-पाक युद्ध में युद्धविराम की घोषणा करते हैं और अरबपति उद्यमी एलन मस्क से सार्वजनिक रूप से बहस करते हैं, जिनकी मदद से उन्होंने चुनाव जीता था। ट्रंप के सनकी और अपरिपक्व व्यवहार के कारण, जो एक महाशक्ति के प्रमुख के लिए अशोभनीय है, दुनियाभर में अमेरिका की हंसी हो रही है और अब अमेरिकी लोग भी उनका मजाक उड़ाने लगे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप मनमाने तरीके से फैसले लेते हैं और फिर अमेरिकी अदालतें उनके पैâसलों को या तो रद्द कर देती हैं या स्थगित कर देती हैं। अदालत में बार-बार मुंह की खाने के बावजूद, ‘हम करें सो कायदा’ के तानाशाही रवैये के कारण ट्रंप हर दिन नए फैसले लेते रहते हैं और अदालतें उन्हें विफल कर देती हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ताजा पैâसले के साथ भी यही हुआ। राष्ट्रपति ट्रंप ने बुधवार को एक फरमान जारी कर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले की घोषणा की। हार्वर्ड वास्तव में एक अव्वल दर्जे का वैश्विक विश्वविद्यालय है, लेकिन ट्रंप ने एक विचित्र दावा करते हुए कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों को प्रवेश देना अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होगा,
विदेशी छात्रों का प्रवेश
बंद कर दिया। यह प्रवेश बंदी ६ महीने के लिए लगा दी गई। आदेश में कहा गया था कि विदेश मंत्री मार्को रुबियो यह तय करेंगे कि विश्वविद्यालय में वर्तमान में अध्ययन कर रहे विदेशी छात्रों के वीजा को रद्द किया जाए या नहीं। इससे हार्वर्ड, कैंब्रिज और मैसाचुसेट्स में पढ़नेवाले हजारों विदेशी छात्रों में डर का माहौल पैदा हो गया। हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने अगले दिन राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले के खिलाफ अमेरिकी संघीय अदालत का रुख किया और २४ घंटे के भीतर अदालत ने अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले पर रोक लगा दी। हमारे यहां कितने भी जरूरी मामले हों, वे सालों तक अदालतों में अटके रहते हैं और भले ही असंवैधानिक सरकारें सब कुछ अवैध होने के बावजूद अपना कार्यकाल पूरा कर लें, लेकिन अदालत की तारीखें कभी खत्म नहीं होतीं। लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं होता। हमने ‘व्हाइट हाउस’ की कुछ मांगें नहीं मानी इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप ने बदले की भावना से विदेशी छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अदालत से इस अवैध फैसले को रोकने का अनुरोध किया और अदालत ने तुरंत इसे स्वीकार कर लिया। बुधवार को ट्रंप ने प्रतिबंध आदेश जारी किया और गुरुवार को अदालत ने देश के राष्ट्रपति के इस फैसले को रोक दिया। इसे अमेरिका में प्रगल्भ लोकतंत्र का एक बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है। अदालत ने इसी तरह ट्रंप के पिछले आदेशों को नौकरी में कटौती, जन्म के चलते मिलनेवाली नागरिकता, टैरिफ संबंधित फैसलों और कई अन्य आदेशों पर रोक लगा दी है। हार्वर्ड
अमेरिका का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय
है, जिसकी प्रतिष्ठा विश्वभर में है। शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान की इस मौलिक धरोहर को सहेजने के बजाय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पीछे हाथ धोकर लग गए और अंत में उनकी ही जग हंसाई हुई। इससे पहले ट्रंप ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को दिए जानेवाले १८,००० करोड़ रुपए के फंड को रोककर भी आलोचना झेली थी। हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने उसके खिलाफ भी अदालत में अपील की है। इन सभी मामलों में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साहस की भी सराहना की जानी चाहिए। जिस निर्भीकता के साथ हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने एक विश्व महाशक्ति के प्रमुख के सामने आत्मसमर्पण किए बिना ट्रंप का डटकर मुकाबला किया, उसका उदाहरण विश्व समुदाय को भी अपनाना चाहिए! जब सरकार बेलगाम हो जाए, तानाशाही तरीके से काम करने लगे और बदले की भावना से फैसले लेने लगे, उस समय अदालतों को सक्रिय होकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। इस मामले में अमेरिकी अदालतों की निष्पक्षता और नि:स्पृहता की सराहना की जानी चाहिए। राष्ट्रपति ट्रंप नए ‘तुगलक’ हैं और उनकी तुगलकी फरमानों को अमेरिकी न्याय व्यवस्था हर दिन कूड़े में फेंक रही है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों पर प्रतिबंध लगाने के हालिया फैसले को भी अमेरिकी अदालत ने २४ घंटे के भीतर ही रोक दिया। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी विरुद्ध व्हाइट हाउस की लड़ाई में आखिरकार यूनिवर्सिटी की जीत हुई। तानाशाही की हार हुई। एक यूनिवर्सिटी महाशक्ति के सामने आत्मसमर्पण किए बिना और निखर गई है। अमेरिकी व्यवस्था की यही खूबी स्वीकारने योग्य है!

मोदी के मेक इन इंडिया पर चाइनीज ‘ठप्पा’

– एसबीआई के प्रोजेक्ट में नियम को तोड़ चाइना से माल हुआ आयात

-कोर्ट भी हुआ अचंभित, जांच का दिया आदेश

सामना संवाददाता / मुंबई

भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की खरीद प्रक्रिया की नींव हिलानेवाले और चौंकानेवाले मामले का खुलासा हुआ है। २७५ करोड़ रुपए के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट में बड़ा घोटाला सामने आया है, जो अब एक प्रकार से मोदी के मेक इन इंडिया के सपने को धता बता रहा है। इस डील में टेंडर नियमों की धज्जियां तो उड़ाई ही गर्इं, साथ ही राष्ट्रीय बैंकिंग सुरक्षा पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। एसबीआई के एटीएम में चाइनीज रूटर लगाए गए, जिसे कोर्ट ने भी गंभीर माना है।
दरअसल, भारतीय एडवांटेज एसबी कम्युनिकेशन कंपनी ने एसबीआई के ३,४०० से अधिक एटीएम में अपने स्वदेशी और सुरक्षित सिक्योरवैन एटीएम राउटर सफलतापूर्वक लगा रही थी। यह ‘मेक इन इंडिया’ का एक प्रेरणादायी राउटर था, लेकिन कुछ दिन बाद ही बिना किसी पूर्व सूचना के कंपनी का भुगतान रोक दिया गया और फिर कुछ समय बाद गुप्त रूप से जारी एक वर्क ऑर्डर के तहत यही प्रोजेक्ट एक अन्य प्रतिद्वंद्वी कंपनी को दे दिया गया।
इसमें चिंता की बात यह रही कि इस कंपनी ने धीरे-धीरे भारतीय तकनीक की जगह चीनी निर्मित पीसीबी, जीएसएम मॉड्यूल और ट्रांसफॉर्मर वाले राउटर लगाने शुरू कर दिए। चाइनीज राउटर का जमकर इस्तेमाल हुआ है। भारत की बैंकिंग व्यवस्था के भीतर यह एक रिस्क भरा कदम बताया जा रहा है, जबकि टेंडर में शर्त थी कि मेक इन इंडिया के तहत बने राउटर ही लगाने थे।
एडवांटेजएसबी कंपनी ने कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि जिस कंपनी को यह ठेका बाद में दिया गया है उस पर पहले भी एआई ट्रैफिक प्रोजेक्ट में धोखाधड़ी, सांठ-गांठ और अनैतिक सब-कॉन्ट्रैक्टिंग जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं। मुंबई हाई कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लिया है और धोखाधड़ी, बौद्धिक संपदा की चोरी, साजिश और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया है। लेकिन सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया के सपने को किस प्रकार से सांठ-गांठ के तहत चूना लगाया जा रहा है और इस पर चाइनीज ठप्पा लगाया जा रहा है।

मनपा चुनाव के मद्देनजर फडणवीस की चाणक्य नीति शिंदे गुट को चित करने की कोशिश!

-कल फिर मुंबई में १३ आयातित पुलिस अधिकारियों की हुई पोस्टिंग

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई

महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव को लेकर अब सरगर्मी तेज हो गई है। इस सरगर्मी के बीच सभी की निगाहें सबसे ज्यादा मुंबई और ठाणे मनपा चुनाव पर टिकी हुई है। दोनों जगहों के मनपा चुनाव इस समय राज्य में हॉट विषय बन गए हैं। इन सबके बीच चाणक्य मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस शिंदे गुट की मुंबई में बढ़ती साख को धराशाई करने में जुट हुए हैं। इसके लिए शिंदे को चित करने के लिए भाजपा मुंबई में छोटे भाई की भूमिका निभा रही है। इसी कड़ी में एक सप्ताह पहले ही मुंबई पुलिस आयुक्तालय में उन्हीं के इशारे पर १३ पुलिस उपायुक्तों की शहर में ही उनके मनचाहे स्थानों पर पोस्टिंग की गई थी। इसके साथ ही २२ पुलिस निरीक्षकों का भी तबादला किया जा चुका है। इसी कड़ी में अब कहा जा रहा है कि सीएम फडणवीस ने अपने करीबी १३ पुलिस अधिकारियों को मुंबई के बाहर से आयात कर उनकी पोस्टिंग मुंबई में की है, ताकि घाती गुट को उनकी जगह दिखाई जा सके।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र पुलिस बल में बड़े पैमाने पर अधिकारियों के तबादले किए गए थे। उसके तुरंत बाद राज्य सरकार और गृह विभाग ने कुल २२ पुलिस अधीक्षकों और उपायुक्तों के तबादले के आदेश जारी किए थे। अब यह सिलसिला मुंबई पुलिस तक पहुंचा है। बताया जा रहा है कि भाजपा इस बार किसी भी हालत में मनपा पर कब्जा जमाने की रणनीति बना चुकी है। उसी के तहत परदे के पीछे की हलचल तेज हो गई है। इस बीच पिछले महीने ही वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी देवेन भारती को मुंबई पुलिस आयुक्त नियुक्त किया गया। देवेन भारती को फडणवीस का करीबी माना जाता है और उनके लिए ही ‘विशेष पुलिस आयुक्त’ का नया पद भी बनाया गया था। अब उनके आयुक्त बनने के बाद उस विशेष पद का क्या होगा, यह सवाल भी उठने लगा है। इस बीच कल फिर एक साथ ११ पुलिस अधिकारियों को राज्य के विभिन्न हिस्सों से मुंबई में लाकर उनकी पोस्टिंग की गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि यह फेरबदल शहर की कानून-व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में किया गया है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इस पर अलग ही चर्चाएं हैं।
भीतरखाने जारी है कोल्ड वॉर
दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहो और एक-दूसरे की जड़ काटते रहो वाला फॉर्मूला महायुति सरकार में देखने को मिल रहा है। मजबूरी में एक दूसरे को साथ लेकर चलने वाले शिंदे गुट, अजीत पवार गुट और भाजपा के भीतरखाने कोल्ड वॉर चल रहा है। सबसे अहम बात यह है कि भाजपा महाराष्ट्र के बाद मुंबई के मनपा चुनाव में अपना वर्चस्व जमाना चाहती है और इसके लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस बड़ा खेल खेलने की चाल चल रहे हैं। हालांकि, एकनाथ शिंदे को यह एहसास है कि उन्हें घेरा जा रहा है और उपेक्षा व अनदेखी की जा रही है।
विपक्ष के आरोप
राज्य में पहले घाती सरकार और अब महायुति सरकार के बाद से पुलिस बल में बार-बार हो रहे इन फेरबदल को लेकर विपक्ष ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि यह सब राजनीतिक दबाव और रणनीति का हिस्सा है, ताकि मनपा चुनावों से पहले सत्ता पक्ष को फायदा हो। इस फेरबदल की वजह से न केवल मुंबई, बल्कि राज्य के कई अन्य जिलों में भी प्रशासनिक हलकों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। ये बदलाव आनेवाले मनपा चुनावों के लिहाज से बेहद अहम माने जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र पुलिस बल में बड़े पैमाने पर अधिकारियों के तबादले किए गए थे। उसके तुरंत बाद राज्य सरकार और गृह विभाग ने कुल २२ पुलिस अधीक्षकों और उपायुक्तों के तबादले के आदेश जारी किए थे। अब यह सिलसिला मुंबई पुलिस तक पहुंचा है। बताया जा रहा है कि भाजपा इस बार किसी भी हालत में मनपा पर कब्जा जमाने की रणनीति बना चुकी है। उसी के तहत परदे के पीछे की हलचल तेज हो गई है। इस बीच पिछले महीने ही वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी देवेन भारती को मुंबई पुलिस आयुक्त नियुक्त किया गया। देवेन भारती को फडणवीस का करीबी माना जाता है और उनके लिए ही ‘विशेष पुलिस आयुक्त’ का नया पद भी बनाया गया था। अब उनके आयुक्त बनने के बाद उस विशेष पद का क्या होगा, यह सवाल भी उठने लगा है। इस बीच कल फिर एक साथ ११ पुलिस अधिकारियों को राज्य के विभिन्न हिस्सों से मुंबई में लाकर उनकी पोस्टिंग की गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि यह फेरबदल शहर की कानून-व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में किया गया है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इस पर अलग ही चर्चाएं हैं।
भीतरखाने जारी है कोल्ड वॉर
दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहो और एक-दूसरे की जड़ काटते रहो वाला फॉर्मूला महायुति सरकार में देखने को मिल रहा है। मजबूरी में एक दूसरे को साथ लेकर चलने वाले शिंदे गुट, अजीत पवार गुट और भाजपा के भीतरखाने कोल्ड वॉर चल रहा है। सबसे अहम बात यह है कि भाजपा महाराष्ट्र के बाद मुंबई के मनपा चुनाव में अपना वर्चस्व जमाना चाहती है और इसके लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस बड़ा खेल खेलने की चाल चल रहे हैं। हालांकि, एकनाथ शिंदे को यह एहसास है कि उन्हें घेरा जा रहा है और उपेक्षा व अनदेखी की जा रही है।