मोदी को प्रधानमंत्री बने ११ साल हो गए हैं, इस बात को लेकर उनके भक्तों में खुशी का माहौल होना चाहिए। यह भक्त मंडली ही मोदी की असली ताकत है। पिछले ११ सालों में मौका मिलने के बावजूद मोदी देश के लिए कुछ खास नहीं कर पाए हैं। ११ वर्षों का उनका यह काल यानी बर्बाद कालखंड है। पहलगाम हमले के बाद पूरे देश में यह भावना और प्रबल हो गई है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का सही नतीजा क्या निकला? मोदी के भक्त भी नहीं बता पाएंगे। ऐसा लग रहा था कि ११ वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी भारत के दुश्मनों को कुचल देंगे और पाकिस्तान को हमेशा के लिए जमीन में गाड़ देंगे। हकीकत में चीन की मदद से पाकिस्तान और ज्यादा मुंहजोरी करने लगा है। कश्मीर घाटी में पाकिस्तान के हमलों की संख्या बढ़ती गई और पहलगाम पर हमला क्रूर और अमानवीय था। भारत ने पाकिस्तान पर हमला कर जवाबी हमला करना शुरू कर दिया। जब सेना पूरे जोश में थी, तब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप महाशय ने भारतीय सेना का मनोबल तोड़ दिया। ट्रंप महाशय ने मोदी को धमकाकर युद्ध रोकने कहा और भारत के प्रधानमंत्री ने युद्ध रोककर शरणागति स्वीकार ली। यह कोई कूटनीति नहीं है। फिर भी अगर विश्व भ्रमण से लौटे सांसदों को मोदी की कूटनीति दिख रही है और वे यह घोषित कर दें कि मोदी के समर्पण (सरेंडर) को कूटनीति ठहराकर इस कूटनीति को भारी प्रतिक्रिया मिली है तो यह देशभक्ति नहीं हो सकती। यह अच्छी तस्वीर है कि पहलगाम हमले और उसके बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के मौके पर पूरा देश और सभी राजनीतिक दल प्रधानमंत्री मोदी के पीछे एकजुट हो गए, लेकिन हमेशा की तरह मोदी का रवैया ‘मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं’ वाला ही रहा। मोदी ने कांग्रेस और अन्य
विपक्षी दलों के नाम पर
स्यापा शुरू कर दिया। क्या भारत-पाकिस्तान युद्ध में राष्ट्रपति ट्रंप ने हस्तक्षेप किया? क्या राष्ट्रपति ट्रंप के हस्तक्षेप के बाद ‘नरेंदर’ मोदी झुक गए? जो प्रधानमंत्री इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर न दे, वह दुनिया का महान या कूटनीतिज्ञ कैसे हो सकता है? अब एक नया संकट सामने आ गया है। अमेरिका ने यह पहले ही स्वीकार किया है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है। अलकायदा का लादेन पाकिस्तान में पनाह लिए हुए था और अमेरिकी कमांडो ने पाकिस्तान में घुसकर लादेन को मारकर पाताल में गाड़ दिया। लादेन को पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का संरक्षण प्राप्त था। हालांकि, इसके बावजूद चौंकानेवाली खबर सामने आई है कि उसी पाकिस्तानी सेनाप्रमुख को अमेरिका ने अपने ‘आर्मी डे’ के मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया है। जहां भारत आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को विश्व में अलग-थलग करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहा है, वहीं पाकिस्तान के सेनाप्रमुख सैयद असीम मुनीर का अमेरिका के ‘आर्मी डे’ को मुख्य अतिथि के रूप में स्वीकार करना भारत की विदेश नीति और कूटनीति की विफलता का संकेत है। एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी दुनियाभर में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजकर पाकिस्तान के आतंकी चेहरे को बेनकाब करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका पाकिस्तानी सेनाप्रमुख के लिए गलीचे बिछा रहा है। भारत के प्रति अमेरिका की भावनाएं क्या हैं और भारत ने मुनीर मामले में अभी तक अपनी नाराजगी क्यों नहीं जताई? अमेरिकी सेना के जनरल माइकल कुरीला ने एक ऐसा बयान दिया है, जो भारत के रुख से उलट है। ‘पाकिस्तान
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में
सक्रिय है’ जनरल माइकल कुरीला का यह सर्टिफिकेट देना, थोड़ा ज्यादती हो गई है। कुरीला यहीं नहीं रुके। हम पाकिस्तान के साथ संबंध बनाए रखेंगे, ‘अमेरिकी सेनाप्रमुख ने यह भी कहा और उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी या भारत उनके इस बयान को क्या समझेंगे। पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर लगातार भारत विरोधी जहर उगलता रहा है। जनरल मुनीर का मानना है कि भारत पर हमला करनेवाले आतंकवादी स्वतंत्रता सेनानी हैं और अमेरिका इसी मुनीर को सम्मान देने जा रहा है और उससे आतंकवाद पर चर्चा करने जा रहा है। २६ हिंदू महिलाओं के सिंदूर को उजाड़ने में मदद करनेवाला यह मुनीर अमेरिका का आधिकारिक अतिथि बनता है। प्रधानमंत्री मोदी इस पर चुप रहते हैं और भारतीय राजनेता इस चुप्पी के लिए मोदी को दुनिया का सबसे अच्छा ‘नीति निर्माता’ और ‘दूरदर्शी’ बताकर भारतीय सैनिकों की बहादुरी का अपमान करते हैं। पाकिस्तान का जनरल मुनीर हिंदुओं के नाम पर गालियां देता है। वही मुनीर अमेरिका का सम्मानित अतिथि बन जाता है। क्या इस बात से भाजपा के हिंदुत्व समर्थकों को चिढ़ और गुस्सा नहीं होना चाहिए? या इन अंधभक्तों ने अब ट्रंप की आरती भी शुरू कर दी है? जनरल मुनीर को बुलाकर अमेरिका ने भारत के जख्मों पर नमक छिड़का है। आतंकवाद के मुद्दे पर भारत-पाकिस्तान से लंबे समय से लड़ रहा है। मुनीर का गौरव आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश है। मोदी के काल में यह सब हो रहा है। अगर कोई कहता है कि ११ साल का कालखंड बर्बाद हो गए तो इसमें गलत क्या है?
संपादकीय : एक बर्बाद कालखंड
क्या फ्यूल कॉन्टैमिनेशन या ब्लॉकेज के चलते खराब हुए इंजन?..एयर इंडिया के प्लेन क्रैश पर एक्सपर्ट ने उठाए सवाल…अब तक नहीं मिले जवाब
सामना संवाददाता / अमदाबाद
अमदाबाद के सरदार वल्लभ भाई पटेल इंटरनेशनल एयरपोर्ट से टेकऑफ के कुछ ही मिनट बाद एयर इंडिया का ओआई-१७१ विमान गुरुवार को दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस विमान हादसे के २ शॉर्ट वीडियो सामने आए हैं। जिन लोगों ने कॉमर्शियल विमान उड़ाए हैं, वो इसे लेकर ये ५ सवाल पूछ रहे हैं। इन सवालों में ‘क्या फ्यूल कॉन्टैमिनेशन या ब्लॉकेज के चलते खराब हुए इंजन?’ के अलावा ४ अन्य सवाल भी खड़े किए हैं।
एयर इंडिया के बोइंग ७८७-८ ड्रीमलाइनर विमान के हादसे की विस्तृत जांच रिपोर्ट अगले कुछ दिनों में रिलीज होने की उम्मीद है। फाइनल रिपोर्ट सामने आने के बाद ही विमान दुर्घटना के संभावित कारणों और सहायक तथ्यों का विस्तृत विश्लेषण हो पाएगा। हालांकि, विमानन पेशेवरों का कहना है कि जो २ शॉर्ट वीडियो सामने आने हैं, उनसे भी काफी कुछ पता लग सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक एयर सेफ्टी एक्सपर्ट अमित सिंह ने कहा कि उड़ान भरने के ५ सेकंड के भीतर, पायलट आमतौर पर लैंडिंग गैयर उठा लेते हैं। जैसे ही चढ़ाई की सकारात्मक दर प्राप्त होती है, लैंडिंग गियर वापस ले लिए जाते हैं। लैंडिंग गियर कम होने से ड्रैग और र्इंधन की खपत बढ़ जाती है और विमान की स्पीड कम होने लगती है। लैंडिंग गियर को वापस खींचने से वायु गतिकीय संतुलन बना रहता है और विमान को ऊपर हवा में चढ़ाने में मदद मिलती है, लेकिन वायरल वीडियो क्लिप के मुताबिक, विमान के जमीन से ४०० फीट से अधिक ऊपर चढ़ने के बाद भी लैंडिंग गियर वापस नहीं लिए गए थे।
फडणवीस सरकार ने किया अल्पसंख्यकों के साथ छल!..आधे से भी कम मिलेगा फंड…रु. १३८ करोड़ से घटकर…रु. ६० करोड़ हुआ छात्रवृत्ति का बजट
सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य की महायुति सरकार `सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के साथ दोबारा सत्ता में आई, लेकिन अब वह धीरे-धीरे अपने इस वादे को भूलते जा रही है। सरकार अल्पसंख्यकों को अपने साथ लेकर चलने की बजाय उनके तिरस्कार में जुट गई है। जी हां, सरकार ने अल्पसंख्यक विभाग के छात्रों के लिए निर्धारित फंड में कटौती करके यह साबित कर दिया है कि उसे अल्पसंख्यकों के प्रति कोई खास लगाव नहीं है। यह फैसला सरकार ने ठीक मनपा और स्थानीय निकाय चुनावों के पहले लिया है, ऐसे में सरकार का यह पैâसला राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है।
बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने अल्पसंख्यक समाज के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और वजीफा प्रदान करने हेतु १३७.४८ करोड़ रुपए की निधि प्रस्तावित की थी। लेकिन धीरे-धीरे सरकार ने अपने मंसूबे को जाहिर करते हुए अल्पसंख्यकों का हक मारने की शुरुआत कर दी है। सरकार ने अल्पसंख्यक छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और वजीफा का फंड घटाकर अब ६० करोड़ कर दिया है, जिससे माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक समाज के साथ चुनावों से पहले सरकार ने छल किया है।
बजट के समय ही महाराष्ट्र सरकार शिक्षा के लिए आवंटित बजट में २० प्रतिशत तक की बढ़ोतरी, उच्च शिक्षा, वर्तमान शैक्षिक मानकों और विशेषकर मुस्लिम एवं अल्पसंख्यक छात्रों के उत्थान के लिए अधिक निधि देने की मांग की गई थी। एक शिक्षक का कहना है कि अल्पसंख्यक छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति बहाल की जानी चाहिए और डिग्री तक अधिक से अधिक छात्रवृत्तियां शुरू करने की मांग हुई थी। लेकिन सरकार ने यह निर्णय लेकर अल्पसंख्यक समाज के विकास के आस पर पानी फेर दिया है। अल्पसंख्यक छात्रों के लिए निर्धारित फंड में कटौती की गई है।
कडू को कुछ हुआ तो जल उठेगा महाराष्ट्र!… आक्रामक हुए कार्यकर्ता… संभाजीराजे ने सरकार को चेताया
सामना संवाददाता / मुंबई
सरकार के गैर-जिम्मेदाराना कामकाज को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे ‘प्रहार जनशक्ति पार्टी’ के संस्थापक अध्यक्ष और पूर्व मंत्री बच्चू कडू की हालत बिगड़ने लगी है, जिसके बाद प्रहार के कार्यकर्ता पूरे महाराष्ट्र में आक्रामक हो गए हैं और अमरावती में आंदोलन ने जोर पकड़ लिया है। अमरावती में कार्यकर्ताओं ने तहसीलदार को कार्यालय में बंद कर दिया और प्रशासन पर दबाव बनाते हुए सरकार को चेतावनी दी है कि अगर समाधान नहीं मिला तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा।
उधर, बच्चू कडू ने भी चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गई तो उनकी अर्थी उठेगी। संभाजी राजे ने भी इसी मामले में सरकार को हड़काया है। उन्होंने कहा कि यदि बच्चू कडू को कुछ हुआ तो पूरा महाराष्ट्र जल उठेगा।
किसानों की पूर्ण कर्जमाफी और दिव्यांगों को छह हजार रुपए मासिक मानधन देने की मांग को लेकर बच्चू कडू ने मोझरी में ६ दिनों से आमरण अनशन शुरू किया है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई हल न निकलने के कारण प्रहार के कार्यकर्ता अब और अधिक आक्रामक हो गए हैं।
अमरावती के तहसील कार्यालय में प्रहार के कार्यकर्ताओं ने आंदोलन किया। तहसीलदार विजय लोखंडे को उनके केबिन में बंद कर दिया गया। प्रहार के करीब १५ से २० कार्यकर्ता दोपहर को अचानक तहसीलदार के कार्यालय में घुस गए और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। कार्यकर्ता इतने उग्र हुए कि न कोई अंदर जा पा रहा था और न ही कोई बाहर आ पा रहा था। बाद में पुलिस सुरक्षा के बीच तहसीलदार को बाहर सुरक्षित निकाला गया।
प्रहार के कार्यकर्ताओं ने बच्चू कडू के समर्थन में राज्यभर में आंदोलन शुरू किया है। कहीं रास्ता रोको आंदोलन किया गया तो कहीं पानी की टंकी पर चढ़कर प्रदर्शन किया गया। कुछ कार्यकर्ताओं ने जल समाधि का आंदोलन किया। एक कार्यकर्ता ने जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या का प्रयास भी किया।
शरद पवार गुट का इशारा… चाचा-भतीजा होंगे एक!.. कहा, भाजपा से बैर, बाकी सब चलेंगे
सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में जल्द ही महानगरपालिका, जिला परिषद, पंचायत समिति और नगरपालिका के चुनाव होने वाले हैं। इन चुनावों के लिए प्रभाग रचना से संबंधित आदेश जारी किए गए हैं। इस पृष्ठभूमि में राजनीतिक दलों ने भी अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। ऐसे में एनसीपी चाचा-भतीजा के एक होने के साफ संकेत मिल रहे हैं। आगामी चुनाव में दोनों पवार एक साथ आ सकते हैं। इसके लिए बड़े पवार अर्थात चाचा शरद पवार को कोई परहेज नहीं है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि आगामी स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनाव में भाजपा को छोड़कर किसी भी दल के साथ राष्ट्रवादी शरदचंद्र पवार गुट गठबंधन कर सकता है, ऐसी जानकारी पार्टी के वरिष्ठ सूत्रों ने दी है।
इसका मतलब यह है कि गठबंधन के लिए अजीत पवार का गुट भी एक विकल्प के तौर पर शरद पवार गुट के लिए खुला रहेगा। गठबंधन से संबंधित निर्णय लेने के अधिकार स्थानीय स्तर के नेताओं को सौंपे जाएंगे, ऐसा भी सूत्रों ने बताया है। बता दें कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में २ जुलाई २०२२ को विभाजन हुआ था, जब अजीत पवार मंत्रिमंडल में शामिल हो गए थे। वर्तमान में अजीत पवार का गुट भाजपा के साथ गठबंधन में है।
सीएम की चाल से शिंदे को हाई टेंशन…ब्लड प्रेशर बढ़ा!… भाजपा तलाश रही है शिंदे गुट का विकल्प
रामदिनेश यादव / मुंबई
पिछले कुछ दिनों से महायुति में भाजपा और शिंदे गुट के बीच तनातनी चल रही है। शिंदे भाजपा के लिए धीरे-धीरे सर दर्द बन रहे हैं। ऐसा दवा भाजपा के कुछ नेताओं की ओर से किया जा रहा है। इसी के चलते भाजपा अब राजनीति में शिंदे का विकल्प तलाश रही है। शायद यही वजह है कि दो दिन पहले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे की ताज लैंड्स एंड होटल में मुलाकात हुई। स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं (स्थानीय निकाय चुनाव) की पृष्ठभूमि में हुई इस अचानक मुलाकात को लेकर राजनीतिक हलकों में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। दोनों नेताओं ने इस मुलाकात का मकसद स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन इस बैठक से उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का टेंशन हाई हो गया है। फडणवीस की इस चाल ने शिंदे को परेशानी में डाल दिया है। शिंदे गुट से फडणवीस का मोहभंग उनके लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है। ऐसी आशंका शिंदे को सता रही है।
फडणवीस ने मनसे अध्यक्ष के साथ बैठक न तो मंत्रालय में, न वर्षा बंगले में की। एक होटल में हुई यह बैठक बहुत मायने रखती है। इतना ही नहीं, लंबे समय तक चली एकांत की बैठक को लेकर अब राजनीतिक गलियारों में अलग-अलग चर्चाएं तेज हो गई हैं। भाजपा पर पिछले कुछ दिनों से शिंदे गुट भारी दबाव बना रहा है। आगामी मनपा और नगर निकाय सहित अन्य चुनावों को देखते हुए शिंदे गुट भाजपा से सीट शेयरिंग में बड़ी हिस्सेदारी चाहता है। शिंदे गुट कुछ मनपा में भाजपा में अलग होकर लड़ने का दम भर रहा है। ऐसे में भाजपा की मुसीबत बढ़ रही है। शिंदे गुट को पीछे धकेलने के लिए भाजपा अब उसका विकल्प तलाश कर रही है। फडणवीस की यह चाल शिंदे गुट को भारी पड़ सकती है।
बता दें कि मुख्यमंत्री फडणवीस ने शिंदे गुट पर सरकार बनाने के साथ ही धीरे-धीरे शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। शिंदे सरकार के समय की कई योजनाओं पर उन्होंने रोक लगा दी है। एकनाथ शिंदे के पसंदीदा अधिकारियों का तबादला भी लगातार किया। दूसरी ओर, शिंदे गुट के मंत्रियों को उप मुख्यमंत्री अजीत पवार की ओर से निधि देने में भी कंजूसी की गई। उससे मंत्री और विधायक नाराज हैं और एकनाथ शिंदे चिंता में हैं। लेकिन अब जब मनपा चुनाव आने वाला है तो भाजपा को झटका देने के लिए शिंदे गुट ए़ड़ी-चोड़ी का जोर लगा रहा है। शिंदे गुट के लिए भाजपा को दबाने का यह सही वक्त भी है। लेकिन फडणवीस की चाल शिंदे को फिर से जमीन पर ला सकती है।
५ महीनों में सड़क दुर्घटनाओं में १२७ लोगों की मौत!
-२७ जगहों पर है ब्लैक स्पॉट
-न्हावासेवा, पनवेल व उरण में जाती हैं सबसे ज्यादा जानें
सामना संवाददाता / मुंबई
नई मुंबई में सड़क दुर्घटनाओं का सिलसिला थम नहीं रहा है। यहां इस साल की शुरुआत से अब तक पांच महीनों में ३३१ दुर्घटनाओं में १२७ लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि पिछले साल नई मुंबई में दुर्घटनाओं में २८७ लोगों की मौत हुई थी। ऐसे में कहा जा रहा है कि भले ही साल खत्म होने में अभी साढ़े छह महीने बाकी हैं, लेकिन नई मुंबई ट्रैफिक पुलिस को दुर्घटनाओं की संख्या कम करने पर विशेष ध्यान देना होगा। गौतलब हो कि नई मुंबई में दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा जानें उरण, न्हावाशेवा, पनवेल में जाती हैं।
नई मुंबई को पुणे, कोकण, विभिन्न औद्योगिक एस्टेट और जेएनपीए बंदरगाह से जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे और अन्य राष्ट्रीय राजमार्गों के नेटवर्क ने नई मुंबई में यातायात को तेजी से बढ़ाया है। अगस्त से नई मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से शुरू होने वाले यातायात से शहर के विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों और शहर के भीतर यातायात पर दबाव बढ़ेगा। शहर में यातायात को नियंत्रित करने के लिए १६ अलग-अलग ट्रैफिक पुलिस स्टेशन बनाए गए हैं।
एक्शन में ट्रैफिक पुलिस
उरण, न्हावाशेवा जेएनपीए राजमार्ग पर दुर्घटनाओं का मुख्य कारण सड़क पर वाहन पार्क करना है इसलिए पुलिस ने सड़क किनारे वाहन पार्क करने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। पुलिस ने दिशा संकेत और सूचना बोर्ड लगाने पर जोर दिया है। रात ९ बजे के बाद अलग से गश्त के लिए एक टीम नियुक्त की गई है। यह मोबाइल टीम सड़क पर अवैध रूप से पार्क किए गए वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करती है।
मदद के लिए तैनात टीम
जिन स्थानों पर वाहन फ्लाईओवर के डिवाइडर से टकरा रहे थे, वहां ब्लिंकर और रिफ्लेक्टर लगाए गए हैं। जिन सड़कों पर रात में बिजली नहीं थी, वहां स्ट्रीट लाइटें लगाई गई हैं। १६ थानों में २० गश्ती पुलिसकर्मियों को दोपहिया वाहनों के साथ तैनात किया गया है। इन दोपहिया पुलिसकर्मियों को दुर्घटनाओं में घायलों की मदद के लिए रस्सी और कटर जैसे उपकरण दिए गए हैं। यह टीम हाईवे पर फंसे वाहनों को सड़क के किनारे ले जाने के लिए जिम्मेदार है।
निर्माण स्थल पर नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले बिल्डर के खिलाफ एफआईआर!
-सड़क पर कीचड़ फैलाकर दूसरों को खतरे में डालने का आरोप…मनपा की कार्रवाई
सुरेश गोलानी / मुंबई
निर्माणस्थल पर नियमों की धज्जियां उड़ाने के आरोप में एक मशहूर बिल्डर के खिलाफ मीरा रोड पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया है। मीरा- भायंदर महानगरपालिका में कार्यरत प्रभारी स्वच्छता निरीक्षक दीपक मोहिते की शिकायत पर पुलिस ने कनकिया स्थित निर्माणाधीन सनटेक स्काइ पार्क के विकासक के खिलाफ शहर को विद्रुप करने और दूसरों के जीवन को खतरे में डालने के आरोप में भारतीय न्याय संहिता और महाराष्ट्र संपत्ति विरूपण निवारण अधिनियम, १९९५ की संबंधित धाराओं के तहत गुरुवार को मामला दर्ज कर लिया है।
वकील ने खोली पोल
हालांकि, आश्चर्यजनक बात यह है कि पुलिस ने इस एफआईआर में कंस्ट्रक्शन कंपनी से जुड़े किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति या मालिकों को नामजद नहीं किया है। मनपा की आंखें तब खुलीं, जब एड. कृष्णा गुप्ता ने ई-मेल (फोटो और लोकेशन के साथ) द्वारा अपनी शिकायत में बिल्डर के ओवेरलोडेड डंपरों द्वारा निर्माण सामग्री की आवाजाही के दौरान बड़ी मात्रा में गिरती मिट्टी के चलते बरसात में कीचड़युक्त सड़कों के बारे मे अवगत करवाया। गुप्ता के ई-मेल का संज्ञान लेते हुए सहायक आयुक्त योगेश गुणिजन ने प्रभारी स्वच्छता निरीक्षक को सनटेक बिल्डर के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया।
बिल्डर कर रहे हैं नियमों का उल्लंघन
ज्ञात हो कि पूर्व मनपा आयुक्त संजय काटकर ने वायु प्रदूषण पर काबू पाने हेतु पिछले साल कई दिशा-निर्देशों को पारित किया था, जिसमें निर्माण सामग्री की ढके हुए वाहनों (वैध प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र वाले) में आवाजाही, निर्माणाधीन परियोजनाओं के चारों तरफ ऊंची मेटल शीट की बाउंड्री स्थापित करना और एग्जिट प्वाइंट (कंस्ट्रक्शन साइट से बाहर जाने वाले सभी गेट) पर वाहन के टायर धोने की सुविधा का प्रावधान करने जैसे जरूरी मुद्दों का समावेश था। हालांकि, शहर के ज्यादातर बिल्डर इन नियमों की धज्जियां उड़ाते दिख रहे हैं। परिणामस्वरूप कीचड़ में वाहन फंस रहे हैं और बाइक चालक फिसलकर गिर रहे हैं और चोटिल हो रहे हैं।
धर्मादाय अस्पताल नहीं कर रहे गरीबों का इलाज!..आरक्षित बेड समेत सभी खातों की होगी जांच
सामना संवाददाता / मुंबई
धर्मादाय अस्पतालों को सरकार की ओर से बड़ी मात्रा में फंड और रियायतें मिलती हैं। यह दान गरीब मरीजों को इलाज मुहैया कराने की शर्त पर दिया जाता है। लेकिन इसके बाद भी धर्मादाय अस्पताल गरीबों का इलाज करने में आनाकानी करते हैं। वे आरक्षित बेड आदि की जानकारी को छिपाते हैं। वे सरकारी योजनाओं के जरिए गरीबों का इलाज नहीं करते। ऐसे अस्पतालों अब गाज गिरने वाली है। ऐसे सभी धर्मादाय अस्पतालों में आरक्षित बेड समेत सभी खातों की सरकार सख्ती से जांच की जाएगी। गौरतलब है कि प्रदेश में ४०० से ज्यादा धर्मादाय अस्पताल हैं। सरकार इन अस्पतालों को रियायतें देती है, ताकि गरीब मरीज वहां मामूली दरों पर इलाज करा सकें। प्रावधान है कि धर्मादाय अस्पतालों में दस फीसदी बेड गरीब मरीजों के लिए आरक्षित होने चाहिए। इसका अस्पताल प्रशासन पालन नहीं करता। यह भी सामने आया है कि गरीबों के लिए बने बेड का इस्तेमाल दूसरे मरीजों के लिए कर दिया जाता है और उनसे मोटी फीस वसूली जाती है। साथ ही महात्मा फुले जीवनदायी आरोग्य योजना, आयुष्मान भारत योजना जैसी योजनाओं का लाभ भी इन अस्पतालों को नहीं मिल पाता है। राज्य सरकार ने इस कमी को कानूनी रूप से पूरा करने के लिए कदम उठाए हैं। सरकार ने केंद्र और राज्य सरकार की सभी स्वास्थ्य योजनाओं को धर्मादाय अस्पतालों में भी लागू करने का पैâसला किया है। चूंकि सरकार ने धर्मादाय अस्पतालों को कानून और न्याय विभाग के अधिकार क्षेत्र में ला दिया है इसलिए इन अस्पतालों पर नियंत्रण संभव है। राज्य सरकार ने करोड़ों रुपए की जमीन मामूली दर पर धर्मादाय अस्पतालों को दी है। धर्मादाय अस्पतालों को आयकर में ३० प्रतिशत की छूट दी जाती है। बिजली और पानी के बिल में भी रियायत दी जाती है। इन रियायतों से धर्मादाय अस्पतालों के करोड़ों रुपए बच जाते हैं। इन रियायतों के बदले में धर्मादाय अस्पतालों को इलाज से प्राप्त कुल आय का २ प्रतिशत निधि के रूप में आरक्षित करना होता है।
९ साल बाद जागी रेलवे!..मुंब्रा हादसे के बाद सेंट्रल रेलवे बढ़ाएगी… १५ डिब्बों वाली लोकल की संख्या
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंब्रा में ९ जून को हुए हादसे में चार लोगों की जान चली गई और १० घायल हुए। हादसा दो भीड़भरी १२ डिब्बों की लोकल ट्रेनों के आमने-सामने एक मोड़ पर गुजरने के दौरान हुआ। यह घटना मुंबई लोकल में बढ़ती भीड़ और सेंट्रल रेलवे की धीमी तैयारियों की पोल खोलती है। इस दर्दनाक हादसे के बाद अब सेंट्रल रेलवे ने १५ डिब्बों वाली ट्रेनों की संख्या बढ़ाने की दिशा में कदम तेज करने का फैसला किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, सेंट्रल रेलवे का दीर्घकालिक लक्ष्य है कि सभी फास्ट लोकल सेवाएं १५ डिब्बों की हों। इसके लिए कई जरूरी कार्य किए जा रहे हैं, जैसे प्लेटफॉर्म की लंबाई बढ़ाना, नई रेल लाइनों का निर्माण और १२ डिब्बों की ट्रेनों में अतिरिक्त डिब्बे जोड़ना।
लोकल को मुंबई की लाइफलाइन कहा जाता है, लेकिन इससे सफर करना लाखों यात्रियों के लिए हर दिन एक संघर्ष बन चुका है। २०१५ में जब पहली बार ट्रेनों की भीड़भाड़ के खौफनाक वीडियो वायरल हुए थे, जिनमें यात्री दरवाजों से लटके हुए थे और कई गिरते दिखे। उसके बाद रेलवे बोर्ड ने वेस्टर्न और सेंट्रल रेलवे दोनों को निर्देश दिया था कि भीड़ कम करने के लिए तत्काल एक्शन प्लान तैयार करें।
वेस्टर्न रेलवे ने दिखाई तत्परता
सेंट्रल रेलवे की अपेक्षा वेस्टर्न रेलवे ने इस दिशा में तेजी से काम करते हुए अब तक २१० से ज्यादा १५ डिब्बों की लोकल ट्रेनें अपनी तेज और धीमी लाइनों पर शुरू कर दी हैं। इससे वहां भीड़ कुछ हद तक नियंत्रित हुई है।
सेंट्रल रेलवे क्यों पिछड़ा?
दूसरी ओर सेंट्रल रेलवे अब तक सिर्फ २२ ट्रेनें ही १५ डिब्बों की चला पाई है और वो भी केवल सीएसएमटी से कल्याण के तेज मार्ग पर, जबकि ठाणे, डोंबिवली, कल्याण और अंबरनाथ जैसे इलाकों में यात्री भार कहीं अधिक है।
प्रशासनिक सुस्ती पर सवाल
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि प्लेटफॉर्म बढ़ाने, ट्रैक बदलने में समय लगने और ट्रेन की गति कम होने जैसे तकनीकी कारण इसमें बाधा बन रहे हैं। जब वेस्टर्न रेलवे ने इन्हीं चुनौतियों के बीच समाधान निकाला तो सेंट्रल रेलवे ने क्यों नहीं? अगर ९ साल में भी यात्री सुरक्षा को लेकर कोई ठोस सुधार नहीं हुआ तो यह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है।