उद्धव ठाकरे की उपस्थिति में सुजाता शिंगाडे की घर वापसी… शिवसेना छोड़कर गई थीं शिंदे गुट में

सामना संवाददाता / मुंबई

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) छोड़कर इस साल जनवरी में शिंदे गुट में शामिल हुर्इं पूर्व महिला विभाग संगठक सुजाता शिंगाडे कल फिर घर वापसी करते हुए अपनी मूल पार्टी शिवसेना में लौट आर्इं। ‘मातोश्री’ निवास पर शिवसेनापक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे की उपस्थिति में उनकी घर वापसी हुई। उद्धव ठाकरे ने इस अवसर पर शिंगाडे का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए कहा कि इस बार और अधिक जोश से काम करें।
मीडिया से बातचीत के दौरान उद्धव ठाकरे ने कहा कि सुजाता शिंगाडे जैसी वरिष्ठ कार्यकर्ता ने शिवसेना क्यों छोड़ी, इस सवाल ने मुझे उस समय झकझोर दिया था, लेकिन पिछले तीन-चार महीनों में उन्होंने शिंदे गुट की दुर्व्यवस्था को नजदीक से देखा। वहां का विचित्र माहौल उन्हें बेचैन कर रहा था। उन्होंने फिर से शिवसेना में आने का जो साहस दिखाया है, उसकी सराहना होनी चाहिए और यह साहस सिर्फ एक शिवसैनिक में ही हो सकता है। जो लोग लोभ और स्वार्थ में शिंदे गुट में गए हैं, उनमें ऐसा साहस नहीं हो सकता। इस अवसर पर शिवसेना नेता और पार्टी सचिव विनायक राउत, शिवसेना विधायक अनिल परब, पूर्व विधायक विलास पोतनीस समेत कई वरिष्ठ नेता उपस्थित थे।
असली शिवसेना मातोश्री में ही, शिंदे गुट में सब दिखावा
सुजाता शिंगाडे ने कहा कि जनवरी में मैंने शिंदे गुट में प्रवेश किया, लेकिन वह मेरी सबसे बड़ी गलती थी। एक मध्यस्थ एजेंट ने मुझे बहकाया। असली शिवसेना तो ‘मातोश्री’ में ही है। आज मैं अपने मायके लौट आई हूं और मुझे बेहद खुशी हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि मैं किसी लोभ या पद के लालच में शिंदे गुट में नहीं गई थी। मैंने शिवसेना के लिए ३५ वर्षों तक काम किया है। मातोश्री ने मुझे कई जिम्मेदारियां दी थीं। पार्टी छोड़ने के बाद मुझे चार महीने तक चैन की नींद नहीं आई। मैं बस यही सोचती रही कि उद्धव ठाकरे और रश्मी ठाकरे से कब मिलूंगी। शिंदे गुट की स्थिति पर उन्होंने कहा कि वहां केवल दिखावा है। इस दौरान शिंगाडे और उनके कार्यकर्ताओं ने उद्धव साहेब आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं जैसे नारे भी लगाए।

घाती गुट का मंत्री घोटालेबाज!

– संजय शिरसाट पर फिर लगा नया आरोप

– नियम को ताक पर रखकर एमआईडीसी में खरीदी छह करोड़ की जमीन

सामना संवाददाता / मुंबई

महायुति सरकार में घाती गुट के सामाजिक न्याय मंत्री की इस समय बुरी ग्रहदशा चल रही है। बीते दिनों बेटे सिद्धांत के नाम पर होटल विट्स खरीद का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि जमीन खरीद से जुड़े एक और मामले का खुलासा हुआ है। आरोप लगाया जा रहा है कि मंत्री शिरसाट ने अवैध तरीके से करोड़ों की जमीन खरीदी है। शेंद्रा एमआईडीसी में नियमों को ताक पर रखते हुए छह करोड़ रुपए की जमीन को अपने बेटे सिद्धांत के नाम पर खरीदा है।
एमआईएम के पूर्व सांसद इम्तियाज जलील के अनुसार, शेंद्रा एमआईडीसी ने २१,२७५ वर्ग मीटर यानी करीब ५ एकड़ २७ गुंठा जमीन ट्रक टर्मिनल के लिए आरक्षित की थी। इस जमीन पर लगभग १०५ करोड़ ८९ लाख रुपए का प्रोजेक्ट प्रस्तावित था। लेकिन संजय शिरसाट ने अपने मंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए इस जमीन का आरक्षण हटवाया और फिर अपने बेटे सिद्धांत और पत्नी के नाम पर यह जमीन मात्र ६ करोड़ ९ लाख रुपए में खरीद ली। कुछ दिन पहले ही शिरसाट के बेटे पर एक विवादित मामला सामने आया था। एक विवाहित महिला ने सिद्धांत शिरसाट पर शारीरिक शोषण, मारपीट और जबरन गर्भपात करवाने का गंभीर आरोप लगाते हुए कानूनी नोटिस भेजा था। इस मामले ने पूरे महाराष्ट्र में हड़कंप मचा दिया था।
हालांकि, संजय शिरसाट ने अपनी पूरी ताकत झोंककर महिला से शिकायत वापस करवाई और मामला शांत कराया गया। इसके बाद शिरसाट का एक और मामला सामने आया। आरोप लगा कि उन्होंने छत्रपति संभाजीनगर रेलवे स्टेशन के पास स्थित ‘व्हिट्स होटल’, जिसकी बाजार कीमत करीब ११० करोड़ रुपए है, उसे मात्र ६४ करोड़ रुपए में खरीदने की कोशिश की।
जांच की उठी थी मांग
विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने इस पूरे सौदे की जांच की मांग की। उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखते हुए कहा कि रेडीरेकनर के हिसाब से होटल की कीमत ११० करोड़ से अधिक है और इसकी बिक्री प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाए।
हटना पड़ा पीछे
इस दबाव के चलते संजय शिरसाट ने विवादित होटल सौदे से पीछे हटने की घोषणा की, जिससे मामला ठंडा पड़ा। लेकिन अब इम्तियाज जलील द्वारा लगाए गए नए जमीन घोटाले के आरोप ने फिर से राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है।

मुंबई में बरकरार है २७९ जगहों पर भूस्खलन का खतरा…चपेट में आ सकती हैं हजारों झोपड़ियां!

-७५ खतरनाक और ४५ अति खतरनाक श्रेणी में

सामना संवाददाता / मुंबई

मानसून के दौरान हर साल मुंबई में खतरनाक इमारतों के साथ-साथ भूस्खलन का मुद्दा सामने आता है। विभिन्न इलाकों में पहाड़ियों की ढलानों पर करीब २७९ ऐसे भूस्खलन पाए गए हैं। विक्रोली, घाटकोपर और मानखुर्द में पहाड़ियों की ढलानों पर सैकड़ों झोपड़ियां भूस्खलन की छाया में हैं।
इस बीच पिछले साल नगरपालिका द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इनमें से ७५ स्थान खतरनाक हैं और ४५ स्थान अतिखतरनाक वाली श्रेणी में हैं। घाटकोपर में असल्फा गांव, एंटॉप हिल, चेंबूर-वाशीनाका, विक्रोली पार्कसाइट, भांडुप, चूनाभट्टी-कुर्ला में विशाल कसाई वाड़ा आदि जगहों पर पहाड़ियों के पास हजारों झोपड़ियां हैं। कुछ मिट्टी से बनी और कुछ कंक्रीट से बनी ये झोपड़ियां कई सालों से एक-दूसरे पर खड़ी हैं।
मनपा के नोटिस की अनदेखी करते हैं निवासी
मानसून का मौसम जब आता है, तब मनपा के अधिकारी झोपड़ियों पर नोटिस चिपका देते हैं कि यहां रहना खतरनाक है और उन्हें तुरंत स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए। हालांकि, कोई वैकल्पिक स्थान न होने के कारण निवासी अपनी जान हथेली पर रखकर यहां रहते हैं। हालांकि, अगर कोई दुर्घटना होती है तो जान-माल का नुकसान होता है।
बैठक में मास नेट लगाने का निर्णय
मानसून के मौसम से पहले भूस्खलन स्थलों पर दीवारें बनाने, रस्सियां लगाने और मिट्टी के कटाव को रोकने जैसे उपाय किए जाते हैं। साथ ही भूस्खलन स्थलों पर सुरक्षात्मक बाड़ों से पानी निकालने वाले छेद अगर मिट्टी या किसी और के कारण अवरुद्ध हो जाते हैं तो उन्हें साफ किया जाता है। भूस्खलन के जोखिम वाले क्षेत्रों में मास नेट लगाने का निर्णय मुंबई उपनगरीय नियोजन समिति की बैठक में लिया गया है। म्हाडा नौ मीटर से कम ऊंची दीवारों वाले क्षेत्रों में मास नेट लगाएगा, जबकि नौ मीटर से अधिक ऊंची दीवारों वाले क्षेत्रों में मास नेट लगाने का काम लोक निर्माण विभाग द्वारा किया जाएगा।

पीयूष ने लिया संन्यास

३६ वर्षीय स्पिनर पीयूष चावला ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास लेने का एलान किया है। टी-२० विश्व कप २००७ और वनडे विश्व कप २०११ विजेता भारतीय टीम का हिस्सा रहे चावला ने भारत की ओर से ३५ अंतरराष्ट्रीय मैच खेले थे, जिनमें उन्होंने ४३ विकेट लिए थे। वह आईपीएल में सर्वाधिक विकेटों के मामले में तीसरे स्थान पर हैं। पीयूष चावला ने शुक्रवार को इंस्टा पोस्ट में लिखा- ‘दो दशक से ज्यादा समय तक मैदान पर रहने के बाद अब समय आ गया है कि मैं इस खूबसूरत खेल को अलविदा कहूं।’ पीयूष चावला २००७ में टी-२० वर्ल्ड कप और २०११ में वनडे वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कोलकाता नाइटराइडर्स की ओर से आईपीएल के २ टाइटल भी जीते हैं। चावला ने भारत के लिए ३ टेस्ट, २५ वनडे और ७ टी-२० इंटरनेशनल मैच खेले हैं। पीयूष ने लिखा- टॉप लेवल पर भारत का प्रतिनिधित्व करने से लेकर २००७ टी-२० वर्ल्ड कप और २०११ वनडे वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का हिस्सा बनने तक, इस अविश्वसनीय यात्रा में हर पल किसी वरदान से
कम नहीं रहा है। ये यादें हमेशा मेरे
दिल में बसी रहेंगी।

आउट ऑफ पवेलियन : बेकहम आखिरकार बन जाएंगे `नाइटहुड’

अमिताभ श्रीवास्तव

जैसे भारत रत्न होता है, वैसे ही कुछ-कुछ ब्रिटिश में `नाइटहुड’ की उपाधि का क्रेज है। यह उपाधि भी लंबे समय तक विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले व्यक्ति को मिलती है, जैसे साहित्यिक क्षेत्र में भारत के रविंद्रनाथ टेगोर को भी दी गर्इं थी। हालांकि, उन्होंने इस उपाधि को लौटा दिया था। बात कहने की यह है कि नाइटहुड उपाधि से इंग्लैंड व्यक्ति को `सर’ के सम्मान से नवाजता है और इसको पाने के लिए लोग हमेशा लालायित रहते हैं। पिछले एक दशक से फुटबाल स्टार रहे डेविड बेकहम देश-विदेश में कई सामाजिक कार्यों में योगदान देते आ रहे हैं और उन्हें लगता है कि वो `नाइटहुड’ के दावेदार हैं। एक बार तो उनका नाम नामित हो गया था, मगर वो एक विवाद में फंस गए तो इस उपाधि से वंचित रह गए। अब अंतत: उन्हें `नाइटहुड’ की उपाधि दी जाएगी। ५० वर्षीय फुटबॉल दिग्गज को अगले सप्ताह किंग्स बर्थडे ऑनर्स सूची में `सर’ का दर्जा दिया जाएगा। उनकी स्पाइस गर्ल पत्नी विक्टोरिया को लेडी बेकहम के नाम से जाना जाएगा। यह खबर बेकहम परिवार के लिए भी खुशी लेकर आएगी, क्योंकि उनके सबसे बड़े बेटे ब्रुकलिन और उनकी पत्नी निकोला पेल्ट्ज के साथ घनघोर मतभेद चल रहे हैं। `गोल्डन बॉल्स’ के नाम से मशहूर बेकहम को लोग भी `नाइटहुड’ की उपाधि देने की मांग करते रहे हैं। चार बच्चों के पिता बेकहम ने इंग्लैंड के लिए ११५ मैच खेले हैं और चैरिटी के लिए दान भी बहुत दिया है। दिलचस्प यह है कि वो राजा चार्ल्स के गहरी दोस्त भी हैं। और ग्रामीण इलाकों से प्यार करने वाले बेकहम, जिन्हें बेक्स कहते हैं किंग्स फाउंडेशन के राजदूत भी हैं।
हंसी-हंसी में क्या कह गई पामर
हंसी-हंसी में उसने मंच पर खड़े होकर जो कह दिया, वो दुनिया को हैरान कर गया। अपने सम्मान भाषण में भला कोई ऐसा कहता है क्या? दरअसल, ब्रिटिश सोप अवॉर्ड चल रहा था, पैट्सी पामर को हास्य अभिनय का पुरस्कार मिला। वो मंच पर आर्इं, माइक संभाला और अपने भाषण में ऐसा कह गर्इं कि सब आश्चर्यचकित हो गए। पामर ने `योनि’ के बारे में अपने विचित्र भाषण से ब्रिटिश सोप अवॉर्ड्स की मेजबान जेन मैकडोनाल्ड सहित सबको आश्चर्यचकित कर दिया। बीबीसी धारावाहिक में मुखर बियांका बुचर की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री को उनकी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनय का पुरस्कार दिया गया था। वो चमकीले नीले रंग के सूट में अपना पुरस्कार लेने के लिए मंच पर आर्इं। लेकिन टीवी की इस पसंदीदा अभिनेत्री ने अपने चुटीले भाषण से प्रशंसकों और दर्शकों को हैरान कर दिया। पैट्सी ने कहा, `सुनो, मैंने कोई भाषण तैयार नहीं किया है, क्योंकि मुझे लगा था कि जैक जीत जाएगा।’ पैट्सी ने आगे कहा कि मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी और मैं बहुत खुश हूं कि मैंने ऐसा किया, क्योंकि मैं अपने ४०वें जन्मदिन तक रुकी और यहीं पर हमने वास्तव में एक महिला की योनि का जश्न मनाया। मुझे लगता है कि योनि हमेशा से ही मजेदार रही है। इसके बाद स्टार जोर से हंसने लगीं, जबकि सिंडी बील का किरदार निभा रहीं मिशेल कोलिंस भी शर्मिंदा दिखीं। इयान बील अभिनेता एडम वूडियट भी अपने सह-कलाकार की टिप्पणी से अचंभित रह गए, जबकि मेजबान जेन मैकडोनाल्ड स्तब्ध रह गर्इं। यह संदर्भ स्पष्ट रूप से सोनिया फाउलर द्वारा ४०वीं वर्षगांठ के लाइव एपिसोड के दौरान पब में बच्चे को जन्म देने से संबंधित था।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)

ब्रजभाषा व्यंग्य : लहरिया रोड

नवीन सी. चतुर्वेदी

सच तो ये ही है इनायत कर रहे हैं आदमी
चोट खाकर भी शराफत कर रहे हैं आदमी
बत्तो अपनी सरकार और वाके मंत्री सच्चऊं स्मार्ट हैं। जमानों है हू स्मार्ट’न कौ। स्मार्ट होनों ही चैंयें। नई परिभाषा के अनुसार, जो स्मार्ट है वौ अगड़ा और जो स्मार्ट नांय नें वौ पिछड़ा कहलावै।
घुटरू पहेली मत बुझाय। खुल कें बोल। काहु कौ डर है का? सच्ची बात कहवे में डर वैâसौ?
नांय बत्तो डर वैâसौ? अपुन ब्रजवासी तौ कृष्ण कों हू ‘द्वै बाप’न वारौ’ कह चुके हैं।
घुटरू ब्रजवासी छोड़, अवध और मिथिला वारे हू कम नांय नें। ‘एक भाई काला और एक भाई गोरा बता दे बबुआ’ के माध्यम सों राम कों हू लपेट चुके हैं। मगर एक बात है घुटरू, वा जमाने में लोग आलोचना सुन लेते। अबकी तरें नांय कि बोलवे वारे की बोलती ही बंद कर दीनी जाय।
बत्तो तेरी बात है तौ सत्य, किन्तु आंशिक। पहलें लोग’न की टीका-टिप्पणी पूर्वाग्रह सों ग्रस्त नांय होतीं। चित्त में तुच्छ और क्षणिक स्वार्थ नांय होतो। मुख्य उद्देश्य या तौ जन-जागरण होतो या जन-मन-रंजन। अपवाद छोड़ देंय तौ माहौल खुसनुमा रहतो।
खैर छोड़, मुद्दा की बात पै आ। सरकार और मंत्री’न की स्मार्टनैस के बारे में तू का कहनों चाह रह्यौ है?
विशेष तौ कछू नांय बस एक निरीक्षण है, जो तोसों बतरानों चाह रह्यौ हुतो। एक जमाने में डामर के रोड बनों करते। हर साल टूटते हर साल बनते। पब्लिक भलें ही परेसान होती परंतु अनेक लोग’न के पेट पालते वे डामर वारे रोड। फिर खर्चा बचायवे के लिएं महंगे सीमेंटेड रोड बनवे लगे।
घुटरू तू मुद्दा की बात पै आय रह्यौ है कि मैं जाओं?
बत्तो सरकार लोग’न सों कह-कह कें हार गई कि गाड़ी की स्पीड अस्सी सों नीचें रखौ मगर लोग मानें ही नांय नें। या मारें सरकार नें सीमेंटेड रोड जो पहलें समतल होते अब विनें हु अ-समतल बनवायवौ आरंभ कर दियौ है। मतलब लहरिया वारे रोड। यहां स्पीड बढ़ी वहां गाड़ी उछरी। अब दौड़ाऔ गाड़ी। अंजर-पंजर तौ ढीले होमंगे ही मुसाफिर’न के मूड फूटंगे सो अलग। झक मार कें अस्सी छोड़ साठ के नीचें गाड़ी चलानी परें अब। है नांय अपनी सरकार और वाके मंत्री स्मार्ट!
घुटरू मगर मैंनें तौ सुनी कि रोड पै चलती कार में कॉफी पियंगे और कॉफी छलक गई तौ ठेकेदार ते पैसा वसूल किए जामंगे।
हां बत्तो सुनी तो मैं नें हू हुती। मगर बोलै कौन?
हुजूरे-वालिया हमरी जुबान मत सिलिए
हमारी खामुशी नुकसानों तक पहुंचती है

निवेश गुरु : रिस्क आपके पोर्टफोलियो में है बाजार में नहीं

भरतकुमार सोलंकी
मुंबई

अक्सर जब शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आता है तो सबसे पहली प्रतिक्रिया होती है कि ‘बाजार बहुत रिस्की हो गया है’, ‘अब पैसा निकाल लेना चाहिए’, ‘शेयर बाजार तो जुआ है’। लेकिन क्या आपने कभी ठहरकर यह सोचा है कि बाजार को दोष देना कितना आसान है? असल में बाजार रिस्की नहीं होता, रिस्क उस पोर्टफोलियो में छिपा होता है, जिसे आपने खुद तैयार किया है। बिना योजना, बिना समझ और बिना उद्देश्य के। दरअसल, बाजार तो एक मंच है, जहां कंपनियों का प्रदर्शन, आर्थिक नीतियां और वैश्विक घटनाएं सामने आती हैं। लेकिन आप किस कंपनी या फंड में पैसा लगा रहे हैं, कब तक लगा रहे हैं, क्यों लगा रहे हैं, ये सब निर्णय आपका है। जब कोई निवेशक केवल एक सेक्टर या एक शेयर में सारा पैसा लगा देता हैं तो वह बाजार में नहीं, अपने पोर्टफोलियो में रिस्क क्रिएट करता है।
जरा सोचिए, अगर आपने टेक्नोलॉजी सेक्टर के उफान पर २०२१ में भारी निवेश कर दिया और उसके बाद आई गिरावट में घबरा गए तो दोष बाजार को क्यों? लेकिन वहीं अगर किसी ने अपने पैसे को अलग-अलग सेक्टरों में, म्यूचुअल फंड्स के जरिए एसआईपी के माध्यम से समय की कसौटी पर निवेश किया तो वो वही उतार-चढ़ाव को एक अवसर की तरह देखता है। क्योंकि उसका पोर्टफोलियो संतुलित और उद्देश्यपूर्ण है। असल में रिस्क का मतलब सिर्फ पैसा डूबना नहीं होता, रिस्क का असली मतलब है, अपने तय लक्ष्यों तक न पहुंच पाना।
रिस्क से बचने का तरीका बहुत जटिल नहीं है। अगर आप अपने निवेश को लक्ष्य आधारित करें-जैसे बच्चों की शिक्षा, रिटायरमेंट या घर खरीदना और उस हिसाब से एक डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाएं तो बाजार की हलचल आपको विचलित नहीं करेगी। एसआईपी यानी सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान और एसेट एलोकेशन यानी संपत्ति का संतुलन-ये दो ऐसे औजार हैं, जो लंबे समय में किसी भी निवेशक को भावनात्मक पैâसलों से बचाते हैं। सबसे अहम बात-जिस तरह डॉक्टर के बिना इलाज करना जोखिम है, उसी तरह एक प्रशिक्षित वित्तीय सलाहकार के बिना निवेश करना भी रिस्क से भरा है।
बाजार को दोष देना आसान है, लेकिन आईने में झांकना और अपनी निवेश रणनीति को सुधारना थोड़ी मेहनत मांगता है। अगली बार जब बाजार गिरे तो डरने की बजाय खुद से सवाल करें कि कहीं रिस्क बाजार में नहीं, मेरे पैâसलों में तो नहीं? निवेश एक यात्रा है और अगर सही सोच, धैर्य और समझ के साथ की जाए तो ये यात्रा हमें वित्तीय आजादी की मंजिल तक जरूर पहुंचाती है।
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)

रौबदार रुबीना

इस तस्वीर को देखकर तो ये कहना गलत नहीं होगा कि रौब हो तो रुबीना जैसा। वाकई इस फोटो में रुबीना दिलैक जिस ठाट के साथ बैठी हैं, बड़ी प्यारी लग रही हैं। इन्हें देखकर तो बस यही गीत याद आता है, कितना सोणा तुझे रब ने बनाया…!

मुस्लिम जगत : ईद उलअजहा विशेष : पर्दा नहीं है खुदा से! हज की वो बातें जो सब नहीं जानते

सूफी खान

आज ईद उलअजहा है। आम भाषा में भारतीय से बकरा ईद कहते हैं। दरअसल, कुर्बानी या सेक्रिफाइस का ये दिन हज के नियमों का एक हिस्सा है और ये इस्लाम से भी ढाई हजार साल पहले से जारी है। बाद में हज को इस्लाम के पांच स्तंभों में भी जगह मिली। इस्लाम पांच नियमों पर आधारित है शहादा, नमाज, जकात, रोजा और हज। हज के लिए कहा गया कि वो मुस्लिम जो शारीरिक और आर्थिक रूप से मजबूत है, उससे उम्मीद की जाती है कि वो अपने जीवन में कम से कम एक बार हज जरूर करें। इस्लामिक वैâलेंडर के १२ वें महीने जिलहिज्जा की ८ वीं तारीख से लेकर १२ वीं तारीख तक हज के अरकान पूरे किए जाते हैं।
ईद उलअजहा पर आज हज के फाइनल अरकान या नियम पूरे किए जा रहें हैं। हज का जिक्र इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद साहब से भी पहले से है यानी उनसे भी करीब ढाई हजार साल पहले पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के जमाने से मिलता है। काबा का निर्माण पैगंबर इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने किया था। हज के दौरान की जाने वाली रस्म कुर्बानी उस घटना की याद दिलाती है, जब हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे इस्माइल की लगभग कुर्बानी दे दी थी। लेकिन कहा जाता है कि उसी दौरान आसमानी हस्तक्षेप हुआ और अल्लाह ने उनकी जगह एक मेंढे को रख दिया। ये इब्राहिम की परीक्षा थी। इब्राहिम, जिन्हें ईसाई धर्म और यहूदी धर्म में अब्राहम कहा जाता है। इन तीनों धर्मों में इब्राहिम या अब्राहम की बड़ी हैसियत है। भले ही दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में वहां के कल्चर के हिसाब से मुस्लिम महिलाएं पर्दा करें या न करें मस्जिदों में जाएं न जाएं लेकिन हज के दौरान महिला और पुरुषों के दर्मियान पूरी समानता पर जोर दिया गया है। मर्द और औरतें साथ में हज की रस्मों को अदा करते हैं।

उड़ता तीर : अभिव्यक्ति की आजादी को सीमित करने की कोशिश!

विजय कपूर

बुनियादी शर्त
‘मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं, लेकिन आपको जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है उसे कायम रखने के लिए मैं अपने खून की अंतिम बूंद तक संघर्ष करता रहूंगा।’ यह दार्शनिक बर्टेंड रसल के शब्द हैं, जो कह रहे हैं कि लोकतंत्र व प्रगति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बुनियादी शर्त है। विचार शब्दों के माध्यम से आसानी से व्यक्त किए जा सकते हैं, लेकिन कभी-कभार कला के जरिए अधिक प्रभावी अंदाज से व्यक्त किए जाते हैं, जैसा कि इंग्लैंड स्थित स्ट्रीट आर्टिस्ट बैंकसी अक्सर किया करते हैं। भारत का संविधान उचित पाबंदियों के साथ सभी नागरिकों को अपने विचार व राय स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार देता है। इसमें न सिर्फ मौखिक शब्द शामिल हैं, बल्कि लेख, चित्र, चलचित्र, बैनर आदि के माध्यम से भाषण भी शामिल हैं। बोलने के अधिकार में न बोलने का अधिकार भी शामिल है। इस अधिकार में मुख्य शब्द ‘उचित’ है। बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि हाल ही में दो हाई कोर्ट्स के जो अवलोकन आए हैं, वे इस शब्द को सीमित करते हैं।
पहली नजर में सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर शर्मिष्ठा पनोली पर कोलकाता हाई कोर्ट की टिप्पणी और कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा एक्टर कमल हासन को फटकारना निर्विवाद प्रतीत होते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पनोली ने एक समुदाय विशेष के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी की और पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया, जो कि उन्हें नहीं करना चाहिए था। बाद में उन्होंने अपनी पोस्ट्स को डिलीट कर दिया। कोलकाता हाई कोर्ट ने उनसे कहा, ‘देखो, हमें बोलने की आजादी है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप दूसरों की भावनाओं को आहत करें।’ कमल हासन ने दावा किया था कि कन्नड़ तमिल से निकली हुई उसकी एक शाखा है यानी कन्नड़ अलग व स्वतंत्र भाषा नहीं है। इस पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, ‘आप कमल हासन या जो कोई भी हों, लेकिन आप अवाम की भावनाओं को आहत नहीं कर सकते।’
दूसरे शब्दों में दोनों अदालतों ने कहा है कि आप तोल-मोलकर बोलें और इस बात का ख्याल रखें कि आपके शब्दों से अन्यों को तकलीफ न पहुंचे। अगर यह नजीर बन जाती है तो इस देश में सभी बातचीत, चर्चा व बहस का आनंदमय होना आवश्यक हो जाएगा। वक्ताओं, लेखकों व कलाकारों को सावधान व सतर्क रहना होगा कि वह कहीं श्रोताओं को नाराज न कर दें। फिर भी भावनाओं को आहत करनेवाली तलवार उनके सिरों पर लटकी रहेगी। खामोश रहना है सुरक्षा की गारंटी बन जाएगी। यह सही है कि आपकी आजादी वहां खत्म हो जाती है, जहां मेरी नाक शुरू होती है, लेकिन बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहुत मुश्किल से हासिल किया गया आधुनिक अधिकार है।
संयम का परिचय
इतालवी दार्शनिक जियोदार्नो ब्रूनो को जिंदा जला दिया गया था। इस विचार का प्रसार करने के लिए कि ब्रह्मांड अनंत है, क्योंकि इससे चर्च आहत हो गया था। गैलीलियो को अपने जीवन के अंतिम वर्ष अपने ही घर में नजरबंदी में गुजारने पड़े थे, क्योंकि उनका नजरिया था कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर काटती है। एक व्यक्ति का विश्वास दूसरे व्यक्ति के लिए ईशनिंदा हो सकती है। यही वजह है कि दूसरों की ‘भावनाओं’, रायों व एहसासों को अच्छे या खराब वक्तव्य का पैमाना बनाना मुक्त अभिव्यक्ति को नष्ट करने का सबसे आसान व ठोस तरीका है।
भावनाओं को आहत करना फिसलन भरी ढलान है, जिसका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के किसी भी प्रयास पर चिंताजनक प्रभाव पड़ता है। अगर संविधान का अनुच्छेद १९(१) नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को सुरक्षित रखता है तो यह तथ्य भी काबिले-गौर है कि अनुच्छेद १९(२) में भावनाओं को आहत करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के उचित व तार्किक कारणों में शामिल नहीं है। भावनाओं को आहत करना इस आधार पर विषयात्मक है कि जो बात एक व्यक्ति के लिए मनोरंजन या सूचना या वैध आस्था है, वह दूसरे व्यक्ति के लिए बहुत परेशान करने वाली या झूठ या ईशनिंदा हो सकती है। इस प्रकार के विषयात्मक पक्षपात के चलते राज्य और उसके अंगों जैसे पुलिस व अदालत के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मामलों को तय करना आसान नहीं है। ऐसे में सिर्फ उसी अभिव्यक्ति को कानून के दायरे में लाया जा सकता है, जो जन अव्यवस्था व हिंसा का कारण बनी हो। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के जो कानून हैं, वे आवश्यक रूप से राज्य से अपेक्षा रखते हैं कि ऐसे मामलों में संयम का परिचय दिया जाए।
सेंसरशिप यानी अपराध!
साथ ही यह भी जरूरी है कि अदालतें अपने पैâसलों में सुसंगत रहें। देखने में आया है कि दो लगभग एक से ही मामलों में एक ही अदालत ने अलग-अलग नजरिया अपनाया, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को सुरक्षित रखने की आशा को कोई विशेष मदद नहीं मिलती है। मसलन, टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी व अमिश देवगन और वेब सीरीज ‘तांडव’ की कास्ट व क्रू के मामले लगभग समान स्थितियों में थे कि उनके विरुद्ध अनेक राज्यों में एफआईआर दर्ज कराई गर्इं थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पहले वालों को राहत प्रदान कर दी थी और दूसरे को राहत देने से इनकार कर दिया था। ‘तांडव’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संपूर्ण नहीं है और वह दूसरों के अधिकारों को आहत करने की कीमत पर नहीं दिया जा सकता। गौरतलब है कि अतीत में सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को यह कहते हुए सुरक्षित रखा है कि अगर किसी चीज से आपकी भावनाएं आहत होती हैं तो आप स्वयं उससे दूर रहें। इसी शानदार दृष्टिकोण को बरकरार रखने की आवश्यकता है। अगर आपको अर्नब गोस्वामी की उग्र-आक्रामक नौटंकी अच्छी नहीं लगती तो आप न देखें, लेकिन उन्हें देखने दें जो देखना चाहते हैं। हाल ही में सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के मामले में पैâसला देते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने यही नजरिया अपनाया था। अदालत ने कहा था कि शब्दों के प्रभावों का ‘मूल्यांकन उन लोगों के मानकों के आधार पर नहीं किया जा सकता, जिन्हें हमेशा असुरक्षा का बोध रहता है या जो लोग आलोचना को हमेशा अपनी पॉवर या पोजीशन के लिए खतरा महसूस करते हैं’ और ‘अगर बड़ी संख्या में लोग दूसरे के द्वारा व्यक्त विचारों को पसंद नहीं करते तो भी व्यक्ति के विचार व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान करना व उसकी सुरक्षा करना जरूरी है।’
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)