९ साल बाद जागी रेलवे!..मुंब्रा हादसे के बाद सेंट्रल रेलवे बढ़ाएगी… १५ डिब्बों वाली लोकल की संख्या

सामना संवाददाता / मुंबई

मुंब्रा में ९ जून को हुए हादसे में चार लोगों की जान चली गई और १० घायल हुए। हादसा दो भीड़भरी १२ डिब्बों की लोकल ट्रेनों के आमने-सामने एक मोड़ पर गुजरने के दौरान हुआ। यह घटना मुंबई लोकल में बढ़ती भीड़ और सेंट्रल रेलवे की धीमी तैयारियों की पोल खोलती है। इस दर्दनाक हादसे के बाद अब सेंट्रल रेलवे ने १५ डिब्बों वाली ट्रेनों की संख्या बढ़ाने की दिशा में कदम तेज करने का फैसला किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, सेंट्रल रेलवे का दीर्घकालिक लक्ष्य है कि सभी फास्ट लोकल सेवाएं १५ डिब्बों की हों। इसके लिए कई जरूरी कार्य किए जा रहे हैं, जैसे प्लेटफॉर्म की लंबाई बढ़ाना, नई रेल लाइनों का निर्माण और १२ डिब्बों की ट्रेनों में अतिरिक्त डिब्बे जोड़ना।
लोकल को मुंबई की लाइफलाइन कहा जाता है, लेकिन इससे सफर करना लाखों यात्रियों के लिए हर दिन एक संघर्ष बन चुका है। २०१५ में जब पहली बार ट्रेनों की भीड़भाड़ के खौफनाक वीडियो वायरल हुए थे, जिनमें यात्री दरवाजों से लटके हुए थे और कई गिरते दिखे। उसके बाद रेलवे बोर्ड ने वेस्टर्न और सेंट्रल रेलवे दोनों को निर्देश दिया था कि भीड़ कम करने के लिए तत्काल एक्शन प्लान तैयार करें।
वेस्टर्न रेलवे ने दिखाई तत्परता
सेंट्रल रेलवे की अपेक्षा वेस्टर्न रेलवे ने इस दिशा में तेजी से काम करते हुए अब तक २१० से ज्यादा १५ डिब्बों की लोकल ट्रेनें अपनी तेज और धीमी लाइनों पर शुरू कर दी हैं। इससे वहां भीड़ कुछ हद तक नियंत्रित हुई है।
सेंट्रल रेलवे क्यों पिछड़ा?
दूसरी ओर सेंट्रल रेलवे अब तक सिर्फ २२ ट्रेनें ही १५ डिब्बों की चला पाई है और वो भी केवल सीएसएमटी से कल्याण के तेज मार्ग पर, जबकि ठाणे, डोंबिवली, कल्याण और अंबरनाथ जैसे इलाकों में यात्री भार कहीं अधिक है।
प्रशासनिक सुस्ती पर सवाल
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि प्लेटफॉर्म बढ़ाने, ट्रैक बदलने में समय लगने और ट्रेन की गति कम होने जैसे तकनीकी कारण इसमें बाधा बन रहे हैं। जब वेस्टर्न रेलवे ने इन्हीं चुनौतियों के बीच समाधान निकाला तो सेंट्रल रेलवे ने क्यों नहीं? अगर ९ साल में भी यात्री सुरक्षा को लेकर कोई ठोस सुधार नहीं हुआ तो यह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है।

ठेकेदारों का अल्टीमेटम…सरकार पर ९० हजार करोड़ रुपए का बकाया!.. समय पर भुगतान नहीं हुआ तो जाएंगे कोर्ट

सामना संवाददाता / मुंबई

महाराष्ट्र में सरकारी परियोजनाओं पर काम कर चुके ठेकेदारों ने राज्य सरकार को कानूनी नोटिस भेजा है। उनका कहना है कि उन्हें ९०,००० करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है। अगर १५ दिनों के भीतर उन्हें भुगतान की स्पष्ट और समयबद्ध योजना नहीं दी गई, तो वे अदालत का रुख करेंगे।
ठेकेदारों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) के अनुसार, बीते एक साल से वे सरकार से बकाया रकम की मांग कर रहे हैं। इन ठेकेदारों ने राज्य में सड़कों, पुलों, सिंचाई परियोजनाओं और सरकारी इमारतों के निर्माण व मरम्मत जैसे अहम काम किए हैं। सबसे ज्यादा बकाया लोक निर्माण विभाग पर है, जिसकी राशि लगभग ४६,००० करोड़ रुपए है। इसके अलावा जल जीवन मिशन पर १८,००० करोड़ रुपए, ग्रामीण विकास विभाग पर ८,६०० करोड़ रुपए, जल संसाधन विभाग पर १९,७०० करोड़ रुपए और नगर विकास विभाग पर १,७०० करोड़ रुपए बाकी हैं। ठेकेदारों का कहना है कि उन्होंने बैंक से ऋण लेकर ये काम पूरे किए और अब उन पर ब्याज का बोझ बढ़ता जा रहा है। बिना भुगतान के आगे काम करना बेहद कठिन हो गया है।
संगठन ने उठाए सवाल
संगठन ने राज्य सरकार की सामाजिक योजनाओं पर होने वाले भारी खर्च को लेकर भी सवाल उठाया है। खासकर, ‘लाडली बहन योजना’ के तहत हर महीने ३,७०० करोड़ रुपए की राशि लगभग २.४६ करोड़ महिलाओं को १,५०० रुपए प्रतिमाह देने में खर्च हो रही है। १० जून को ठेकेदारों ने मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्रियों, मुख्य सचिव और विभिन्न विभागों के सचिवों को कानूनी नोटिस भेजा। फिलहाल, सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। ठेकेदारों ने साफ कहा है कि यदि भुगतान की योजना जल्द नहीं बनी तो वे हाई कोर्ट में याचिका दायर करेंगे।

एक पद, दो दावेदार!.. जिला स्वास्थ्य अधिकारियों में बढ़ा विवाद

सामना संवाददाता / मुंबई

राजनीति में कुर्सी और पद को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब अधिकारियों को लेकर यह स्थिति बनती है तो चर्चा और रंगीन हो जाती है। रायगड जिला परिषद के स्वास्थ्य विभाग में इस समय यही देखने को मिल रहा है। दो अधिकारियों के जिला स्वास्थ्य अधिकारी पद पर दावा जताने से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।
डॉ. मनीषा विखे रायगड जिला परिषद में जिला स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर कार्यरत थीं। प्रशासनिक कारणों से स्वास्थ्य विभाग ने उनका तबादला कर दिया। उन्हें ठाणे जिला क्षय रोग अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया। वहीं विखे के तबादले से रिक्त हुए जिला स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर स्वास्थ्य विभाग ने डॉ. दयानंद सूर्यवंशी को नियुक्त किया था। इसके अनुसार, उन्होंने मंगलवार को अपने पद का कार्यभार संभाल लिया। बुधवार को उन्होंने प्रशासनिक कामकाज की समीक्षा करने के बाद काम भी शुरू कर दिया।
गुरुवार की सुबह डॉ. मनीषा विखे जिला परिषद के स्वास्थ्य विभाग में वापस लौट आर्इं और स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर पुन: अपना दावा पेश किया। प्रशासनिक तबादले के खिलाफ डॉ. विखे ने महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एमएटी) में अपील दायर की थी। विखे ने दावा किया कि एमएटी ने तबादले पर रोक लगा दी है। उन्होंने कहा कि वे अलीबाग स्थित जिला स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय में वापस आकर फिर से ज्वाइन कर रही हैं। इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि एक पद और एक कुर्सी पर दो अधिकारी काम करेंगे।
डॉ. विखे को दोबारा प्रभार देने से इनकार
इस बीच तबादले के बाद डॉ. विखे को उनके पद से मुक्त कर दिया गया और सरकारी आदेश के अनुसार, उनकी जगह डॉ. सूर्यवंशी को नियुक्त किया गया इसलिए जिला परिषद प्रशासन ने डॉ. विखे को फिर से प्रभार देने से इनकार कर दिया है। जब तक सरकारी आदेश जारी नहीं होता, तब तक डॉ. दयानंद सूर्यवंशी ही रायगड जिला परिषद के जिला स्वास्थ्य अधिकारी का काम देखेंगे, ऐसा मुख्य कार्यकारी अधिकारी नेहा भोसले ने बताया।

फ्लाइंग जोन में रहनेवाले मुंबईकर दहशत में!… हवाई जहाज के हर टेक ऑफ पर बढ़ जाती हैं धड़कनें

द्रुप्ति झा / मुंबई

अमदाबाद में हुए विमान हादसे ने कई सवाल खड़े किए हैं। यह हादसा ऐसी जगह हुआ, जहां रिहाइशी इमारत थी। ऐसे में मुंबई एयरपोर्ट के पास बसी बस्तियों पर भी सवाल उठने लगे हैं। एयरपोर्ट के पास कई इमारतें और चॉल हैं, जिन पर खतरा मंडरा रहा है। कई चॉल तो एयरपोर्ट के एकदम करीब हैं। अगर ऐसा हादसा मुंबई में होता है तो बड़ा नुकसान हो सकता है। कई बार यहां कुत्ते एयरपोर्ट पर पहुंच जाते हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में ड्रोन भी उड़ते देखे गए हैं, जबकि यह प्रतिबंधित इलाका है।
बता दें कि यहां वर्षों पुरानी चॉल हैं, जहां हजारों लोग रहते हैं। इस पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं कि एयरपोर्ट एरिया से चॉल को हटाया जाए। चाल के साथ ही यहां कई दुकानें भी हैं, ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर लोगों ने अतिक्रमण किया हुआ है। बीच-बीच में प्रशासन यहां कार्रवाई भी करता है, लेकिन इस अतिक्रमण को पूरी तरह से हटाया नहीं जा सका है।
तस्वीर में साफ देखा जा सकता है कि एयरपोर्ट के आसपास किस तरह से बस्तियां बन चुकी हैं। अमदाबाद में हुए हादसे के बाद एयरपोर्ट अथॉरिटी और सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए। एयरपोर्ट के पास अतिक्रमण होने से कई तरह के खतरे हो सकते हैं।

सरकार ने किया सार्वजनिक… सुरक्षा विधेयक को कमजोर!..विधायक जितेंद्र आव्हाड ने लगाया आरोप…१२ हजार से अधिक आपत्तियां हुईं दर्ज

सामना संवाददाता / मुंबई

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, २०२४ पर विचार-विमर्श करने के लिए गठित विशेष पैनल ने कुछ प्रावधानों को कमजोर करने का पैâसला किया है। विधेयक के उद्देश्य और इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन करने का निर्णय एक संयुक्त चयन समिति द्वारा लिया गया था, जब नागरिक समाज समूहों और सामाजिक संगठनों द्वारा मसौदा कानून पर १२,३०० से अधिक आपत्तियां उठाई गई थीं, जिसका उद्देश्य `शहरी नक्सल’ गतिविधियों पर अंकुश लगाना है।
नक्सल या वामपंथी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए राज्य को व्यापक अधिकार देने वाले इस विधेयक का नागरिक समाज द्वारा दमनकारी और जनविरोधी के रूप में विरोध किया गया है। इसके विरोधियों का दावा है कि राज्य द्वारा इसका दुरुपयोग असहमति को दबाने और सरकार की आलोचना करने वाली संस्थाओं को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है, ऐसी गतिविधियां जो नक्सलवाद के दायरे से बाहर हैं। २६ सदस्यीय समिति, जिसमें सभी राजनीतिक दलों के विधायक शामिल हैं।
समिति ने विधेयक के उद्देश्य को `व्यक्तियों और संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम के लिए’ से संशोधित कर `वामपंथी और कट्टरपंथी संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों’ में बदल दिया है। एक अधिकारी ने कहा, `पहले के मसौदे में सरकार या संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ खड़े होने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मनमानी कार्रवाई की अनुमति दी गई थी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चंद्र पवार) पार्टी के विधायक और संयुक्त चयन समिति के सदस्य, जितेंद्र आव्हाड ने कहा, `शुरू में हमने इस अधिनियम का विरोध किया था क्योंकि यह जनविरोधी प्रतीत होता था, लेकिन अब इसे कमजोर कर दिया गया है। नए प्रावधान वास्तविक नक्सली और माओवादी गतिविधियों के खिलाफ हैं।’ विधायक शशिकांत शिंदे ने कहा, `जेएससी के अध्यक्ष ने एक प्रस्तुति दी थी जिसमें दिखाया गया था कि अतिरिक्त कानून लाना क्यों जरूरी था। हमें आश्वासन दिया गया था कि मसौदे में `वामपंथी उग्रवादी और कट्टरपंथी’ शब्द केवल नक्सलवाद से जुड़े संगठनों द्वारा की जाने वाली गैरकानूनी गतिविधियों से संबंधित हैं।

बोइंग के कर्मचारी भी नहीं करना चाहते बोइंग में बोर्डिंग!..अमदाबाद क्रैश के बाद कंपनी से और उठा भरोसा

सामना संवाददाता / अमदाबाद

आजकल हवाई यात्रा सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन हाल के दिनों में बोइंग विमानों को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। खासकर, बोइंग ७३७ मैक्स जैसे मॉडलों में तकनीकी खामियों की शिकायतें सामने आई हैं, जिसके कारण इसके अपने कर्मचारी भी इन विमानों में यात्रा करने से कतराते हैं। भारत में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन ने भी एयर इंडिया पर सख्त कार्रवाई की है, क्योंकि इसकी उड़ानों में सुरक्षा और अनुपालन में गंभीर चूक पाई गईं।
हाल ही में खबरें आई हैं कि बोइंग के कई कर्मचारी, जो इन विमानों के पुर्जे बनाते हैं वो खुद इनमें यात्रा करने से बचते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन विमानों के फ्यूजलेज (विमान का मुख्य ढांचा) में गंभीर खामियां पाई गई हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, बोइंग ७३७ मैक्स ९ के फ्यूजलेज में दरारें और कमजोर जोड़ पाए गए, जो उड़ानों के बाद विमान को तोड़ सकते हैं। २०२४ में अलास्का एयरलाइंस के एक विमान में मिड-एयर फ्यूजलेज ब्लोआउट की घटना ने इस खतरे को उजागर किया, जिसमें सौभाग्य से कोई बड़ी हानि नहीं हुई। भारत में डीजीसीए ने एयर इंडिया की सुरक्षा और अनुपालन में लगातार चूक के लिए कई बार जुर्माना लगाया है, खासकर तब जब यह बोइंग विमानों का इस्तेमाल कर रही थी। १२ जून २०२५ को अमदाबाद में हुए एयर इंडिया विमान हादसे ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया। इस हादसे में २४२ यात्रियों में से केवल एक, ३८ वर्षीय रमेश विश्वासकुमार जिन्होंने इमरजेंसी एग्जिट से निकलकर अपनी जान बचाई। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो भविष्य में और हादसे हो सकते हैं।
बोइंग की समस्याएं केवल भारत तक सीमित नहीं हैं। अमेरिका में भी इसके खिलाफ मुकदमे और जांच चल रही है, खासकर फ्यूजलेज और डोर प्लग सिस्टम की खामियों को लेकर। भारत में डीजीसीए की सख्ती ने यह संदेश दिया है कि सुरक्षा से समझौता बर्दाश्त नहीं होगा। एयर इंडिया को चाहिए कि वह अपने रखरखाव और पायलट ट्रेनिंग पर ध्यान दें, ताकि यात्रियों का भरोसा वापस जीता जा सके।

ठाणे में बिना शौचालय के ६०२ आंगनवाड़ी!

-अभिभावक-बच्चे हैं परेशान

-प्रशासन कर रहा है नजरअंदाज

सामना संवाददाता / मुंबई

जिला प्रशासन की एक रिपोर्ट के अनुसार, ठाणे जिले में वर्तमान में कार्यरत कुल ३,५३८ में से ६०२ आंगनवाड़ी में शौचालय नहीं हैं। इस बुनियादी ढांचे की कमी के कारण छोटे बच्चों एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बेहाल हैं। आलम यह है कि यहां के बच्चों व कर्मचारियों को शौच के लिए खुले में जाना पड़ता है, इसके बावजूद प्रशासन इस मूलभूत कमी को नजरअंदाज कर रहा है।
बता दें कि केंद्रीय और राज्य महिला एवं बाल विकास विभाग एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में छह साल से कम उम्र के बच्चों के पोषण और उत्तम स्वास्थ्य के लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। इन सभी योजनाओं को एक ही स्थान से लागू करने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आंगनवाड़ी स्थापित की गई हैं।
खुले में जाना पड़ता है शौच
बच्चों के विकास में आंगनवाड़ी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन आंगनवाड़ियों में ३ से ६ साल की उम्र के बच्चे आते हैं। बच्चों को यहां पौष्टिक भोजन, प्राथमिक शिक्षा और सामाजिक लाभ प्रदान किए जाते हैं। हालांकि, शौचालयों की कमी के कारण बच्चों को पेशाब या शौच के लिए खुले में या आस-पास की झाड़ियों में जाना पड़ता है। मानसून में कीचड़, गर्मियों में गर्मी और कई बार खतरनाक परिस्थितियों में जाने के कारण उनका स्वास्थ्य खतरे में रहता है। बच्चों को लगातार त्वचा रोग, कृमि संक्रमण, पेट की बीमारियों जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है। इससे लड़कियां खासतौर पर प्रभावित होती हैं इसलिए कई माता-पिता अपने बच्चों को स्वच्छता और सुरक्षा दोनों की कमी के कारण आंगनवाड़ी भेजने से कतराते हैं।
बच्चों सहित कर्मचारी रहते हैं परेशान
शौचालयों की कमी के कारण न केवल बच्चे, बल्कि आंगनवाड़ी में काम करने वाली महिला कार्यकर्ता और सहायिकाओं को भी हर दिन मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता है। उन्हें शौच के लिए आंगनवाड़ी से दूर जाना पड़ता है, जो महिला कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षित नहीं है। कुछ जगहों पर स्कूलों या अन्य सरकारी भवनों में शौचालयों का उपयोग किया जाता है, लेकिन वह सुविधा भी हर जगह उपलब्ध नहीं है। नतीजतन, ये महिलाएं अपने स्वास्थ्य से समझौता करके अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं।

नौकरी की राह में रोड़ा एआई से डरे ग्रेजुएट्स!.. तकनीकी क्रांति में करियर की चुनौती

सामना संवाददाता / मुंबई

तकनीक की दुनिया में कदम रखते ही आज के ग्रेजुएट्स के मन में एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हमारी नौकरियों के रास्ते में रुकावट बनेगा? एक ताजा सर्वे से पता चला है कि ७० फीसदी से ज्यादा नए ग्रेजुएट्स को लगता है कि एआई और ऑटोमेशन टूल्स के बढ़ते इस्तेमाल के कारण उन्हें मनपसंद नौकरी पाना मुश्किल हो सकता है।
दिलचस्प बात यह है कि ९२ फीसदी छात्र मानते हैं कि यदि वे एआई और ऑटोमेशन में दक्षता हासिल कर लें तो उनका करियर नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है। यह सर्वे दुनियाभर के ९,००० से ज्यादा ग्रेजुएट्स पर आधारित है, जिसमें भारत के भी १,२५० छात्र शामिल थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि एआई से जुड़े करियर में रुचि तेजी से बढ़ रही है। २०२४ में जहां ५९ फीसदी छात्रों ने एआई करियर को प्राथमिकता दी थी, वहीं २०२५ में यह संख्या ६३ फीसदी हो गई है।
छात्रों का मानना है कि आने वाले समय में सिर्फ डिग्री से काम नहीं चलेगा, बल्कि तकनीकी कौशल (एआई, ब्लॉकचेन, जनरेटिव टेक्नोलॉजी) और सॉफ्ट स्किल्स का मेल ही उन्हें आगे बढ़ाएगा। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि फाइनेंस सेक्टर लगातार तीसरे साल छात्रों की सबसे पसंदीदा इंडस्ट्री बना हुआ है, जहां ३८ फीसदी छात्रों को सबसे ज्यादा भरोसा है। इसके बाद आईटी सेक्टर (३२ फीसदी) और एजुकेशन सेक्टर (२१ फीसदी) हैं।
दिलचस्प बात यह है कि ४० फीसदी छात्र ग्रेजुएशन के तुरंत बाद नौकरी शुरू करना चाहते हैं यानी एआई का डर है, लेकिन तैयारियां भी पूरी हैं। आने वाला दौर तकनीक और टैलेंट दोनों का होगा जो सीखेगा, वही टिकेगा।

मविआ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना रंग लाई…कमाठीपुरा का होगा पुनर्विकास!

-म्हाडा ने जारी किया टेंडर

-८ हजार निवासियों में जगी उम्मीद

सामना संवाददाता / मुंबई

दक्षिण मुंबई के प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व वाले कमाठीपुरा क्षेत्र का म्हाडा के मुंबई इमारत मरम्मत और पुनर्निर्माण बोर्ड के माध्यम से समूह पुनर्विकास किया जाएगा। इसके लिए निर्माण और विकास एजेंसी नियुक्त करने हेतु म्हाडा ने टेंडर जारी किया है। बता दें कि तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार की अत्यंत महत्वाकांक्षी कमाठीपुरा समूह पुनर्विकास परियोजना क्रियान्वित करने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री एवं उप मुख्यमंत्री ने हरी झंडी दे दी है।
दक्षिण मुंबई के कमाठीपुरा क्षेत्र के गली क्रमांक १ से १५ के क्षेत्र में स्थित पुरानी और जर्जर टैक्सप्राप्त और गैर-टैक्सप्राप्त इमारतों और भूखंडों का समूह पुनर्विकास विकास नियंत्रण एवं प्रोत्साहन विनियमावली २०३४, विनियमन ३३ (९) के अंतर्गत म्हाडा पुनर्विकास करने जा रही है। इस परियोजना को सफल बनाने में राज्य की तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार, स्थानीय सांसद अरविंद सावंत, विधायक अमीन पटेल एवं स्थानीय नागरिकों का बड़ा योगदान रहा है।
सलाहकार की हो गई नियुक्ति
कमाठीपुरा क्षेत्र की इमारतों का समूह पुनर्विकास म्हाडा द्वारा विकास नियंत्रण और प्रोत्साहन विनियमावली २०३४, विनियमन ३३ (९) के अंतर्गत १२/०१/२०२३ के शासन निर्णय अनुसार स्वीकृत किया गया। इसके अनुसार परियोजना की रूपरेखा हेतु निविदा मंगाकर मेसर्स माहिमतुरा कंसल्टेंट की नियुक्ति की गई है।
आधुनिक सुविधायुक्त होगी परियोजना
इस परियोजना की रूपरेखा ‘कमाठीपुरा पुनर्वसन परियोजना-अर्बन विलेज’ नाम से तैयार की गई है। इस माध्यम से निवासियों को बड़े और सुरक्षित फ्लैट, योजनाबद्ध आधारभूत सुविधाएं दी जाएंगी, इसमें वाणिज्यिक इमारतें, मनोरंजन के मैदान जैसी सुविधाएं भी शामिल होंगी। इस परियोजना के माध्यम से म्हाडा को निविदाधारकों द्वारा ४४,००० वर्गमीटर क्षेत्र उपलब्ध होगा, जिससे मुंबई के मध्यवर्ती क्षेत्र में म्हाडा को बड़े पैमाने पर आवास उपलब्ध होगा। साथ ही विकासकर्ता को ५,६७,००० वर्गमीटर क्षेत्र उपलब्ध होगा, जिससे लगभग ४,५०० फ्लैट्स मिलेंगे।
९४३ इमारतों का होगा पुनर्विकास
दक्षिण मुंबई के अति महत्वपूर्ण ३४ एकड़ क्षेत्र में बसे कमाठीपुरा क्षेत्र की गली नंबर १ से १५ में लगभग ९४३ टैक्सप्राप्त इमारतें हैं, जिनमें लगभग ६,६२५ आवासीय और १,३७६ अनिवासी इस प्रकार कुल ८,००१ टेनेंट रहते हैं और ८०० भूखंड मालिक हैं। इन इमारतों की उम्र लगभग १०० वर्ष है। साथ ही इस पूरे क्षेत्र के भूखंडों का कुल शुद्ध क्षेत्रफल लगभग ७३,१४४.८४ वर्गमीटर है। इन भूखंडों का आकार छोटा और संकरा होने से समूह पुनर्विकास एक स्थायी समाधान साबित हुआ है। ऐसे में वर्षों से प्रतीक्षारत ८,००१ टेनेंटों को अब आधिकारिक घर प्राप्त होगा।

गोवा के होटल में हैवानियत…बर्थडे के बहाने ३ नाबालिग युवतियों से बलात्कार… दोस्तों ने ही लूटी दोस्तों की अस्मत

गोवा से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक साथ तीन नाबालिग लड़कियों का रेप हुआ है। आरोपियों ने ईद और बर्थडे पार्टी के नाम पर लड़कियों को होटल में बुलाया था और फिर वहीं उनके साथ रेप किया। गोवा पुलिस के मुताबिक, रेप कांड में आरोपी और पीड़ित सभी लोग दोस्त हैं। वहीं घटना की जानकारी मिलने पर पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी है।
पुलिस के मुताबिक, आरोपियों ने एक होटल में ईद और बर्थडे पार्टी करने के लिए रूम बुक किए थे। सभी बर्थडे पार्टी मनाने के लिए होटल पहुंचे थे, तभी मौके का फायदा उठाकर दोस्तों ने अपने ही दोस्तों को हवस का शिकार बना लिया। रेप पीड़ितों की उम्र १५ साल, १३ साल और ११ साल है। पुलिस ने पॉक्सो एक्ट और रेप का मामला दर्ज कर दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के मुताबिक, पीड़ित लड़कियां और आरोपी पहले से ही एक-दूसरे को पहले से जानते थे और दोस्त थे। आरोपियों ने ईद और बर्थडे पार्टी के नाम पर लड़कियों को एक होटल में बुलाया था। इस पार्टी में शामिल होने के लिए तीनों नाबालिग लड़कियों को बुलाया गया, लेकिन यह उत्सव जल्द ही एक भयावह अपराध में बदल गया।