उड़ता तीर : अभिव्यक्ति की आजादी को सीमित करने की कोशिश!

विजय कपूर

बुनियादी शर्त
‘मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं, लेकिन आपको जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है उसे कायम रखने के लिए मैं अपने खून की अंतिम बूंद तक संघर्ष करता रहूंगा।’ यह दार्शनिक बर्टेंड रसल के शब्द हैं, जो कह रहे हैं कि लोकतंत्र व प्रगति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बुनियादी शर्त है। विचार शब्दों के माध्यम से आसानी से व्यक्त किए जा सकते हैं, लेकिन कभी-कभार कला के जरिए अधिक प्रभावी अंदाज से व्यक्त किए जाते हैं, जैसा कि इंग्लैंड स्थित स्ट्रीट आर्टिस्ट बैंकसी अक्सर किया करते हैं। भारत का संविधान उचित पाबंदियों के साथ सभी नागरिकों को अपने विचार व राय स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार देता है। इसमें न सिर्फ मौखिक शब्द शामिल हैं, बल्कि लेख, चित्र, चलचित्र, बैनर आदि के माध्यम से भाषण भी शामिल हैं। बोलने के अधिकार में न बोलने का अधिकार भी शामिल है। इस अधिकार में मुख्य शब्द ‘उचित’ है। बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि हाल ही में दो हाई कोर्ट्स के जो अवलोकन आए हैं, वे इस शब्द को सीमित करते हैं।
पहली नजर में सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर शर्मिष्ठा पनोली पर कोलकाता हाई कोर्ट की टिप्पणी और कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा एक्टर कमल हासन को फटकारना निर्विवाद प्रतीत होते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पनोली ने एक समुदाय विशेष के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी की और पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया, जो कि उन्हें नहीं करना चाहिए था। बाद में उन्होंने अपनी पोस्ट्स को डिलीट कर दिया। कोलकाता हाई कोर्ट ने उनसे कहा, ‘देखो, हमें बोलने की आजादी है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप दूसरों की भावनाओं को आहत करें।’ कमल हासन ने दावा किया था कि कन्नड़ तमिल से निकली हुई उसकी एक शाखा है यानी कन्नड़ अलग व स्वतंत्र भाषा नहीं है। इस पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, ‘आप कमल हासन या जो कोई भी हों, लेकिन आप अवाम की भावनाओं को आहत नहीं कर सकते।’
दूसरे शब्दों में दोनों अदालतों ने कहा है कि आप तोल-मोलकर बोलें और इस बात का ख्याल रखें कि आपके शब्दों से अन्यों को तकलीफ न पहुंचे। अगर यह नजीर बन जाती है तो इस देश में सभी बातचीत, चर्चा व बहस का आनंदमय होना आवश्यक हो जाएगा। वक्ताओं, लेखकों व कलाकारों को सावधान व सतर्क रहना होगा कि वह कहीं श्रोताओं को नाराज न कर दें। फिर भी भावनाओं को आहत करनेवाली तलवार उनके सिरों पर लटकी रहेगी। खामोश रहना है सुरक्षा की गारंटी बन जाएगी। यह सही है कि आपकी आजादी वहां खत्म हो जाती है, जहां मेरी नाक शुरू होती है, लेकिन बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहुत मुश्किल से हासिल किया गया आधुनिक अधिकार है।
संयम का परिचय
इतालवी दार्शनिक जियोदार्नो ब्रूनो को जिंदा जला दिया गया था। इस विचार का प्रसार करने के लिए कि ब्रह्मांड अनंत है, क्योंकि इससे चर्च आहत हो गया था। गैलीलियो को अपने जीवन के अंतिम वर्ष अपने ही घर में नजरबंदी में गुजारने पड़े थे, क्योंकि उनका नजरिया था कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर काटती है। एक व्यक्ति का विश्वास दूसरे व्यक्ति के लिए ईशनिंदा हो सकती है। यही वजह है कि दूसरों की ‘भावनाओं’, रायों व एहसासों को अच्छे या खराब वक्तव्य का पैमाना बनाना मुक्त अभिव्यक्ति को नष्ट करने का सबसे आसान व ठोस तरीका है।
भावनाओं को आहत करना फिसलन भरी ढलान है, जिसका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के किसी भी प्रयास पर चिंताजनक प्रभाव पड़ता है। अगर संविधान का अनुच्छेद १९(१) नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को सुरक्षित रखता है तो यह तथ्य भी काबिले-गौर है कि अनुच्छेद १९(२) में भावनाओं को आहत करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के उचित व तार्किक कारणों में शामिल नहीं है। भावनाओं को आहत करना इस आधार पर विषयात्मक है कि जो बात एक व्यक्ति के लिए मनोरंजन या सूचना या वैध आस्था है, वह दूसरे व्यक्ति के लिए बहुत परेशान करने वाली या झूठ या ईशनिंदा हो सकती है। इस प्रकार के विषयात्मक पक्षपात के चलते राज्य और उसके अंगों जैसे पुलिस व अदालत के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मामलों को तय करना आसान नहीं है। ऐसे में सिर्फ उसी अभिव्यक्ति को कानून के दायरे में लाया जा सकता है, जो जन अव्यवस्था व हिंसा का कारण बनी हो। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के जो कानून हैं, वे आवश्यक रूप से राज्य से अपेक्षा रखते हैं कि ऐसे मामलों में संयम का परिचय दिया जाए।
सेंसरशिप यानी अपराध!
साथ ही यह भी जरूरी है कि अदालतें अपने पैâसलों में सुसंगत रहें। देखने में आया है कि दो लगभग एक से ही मामलों में एक ही अदालत ने अलग-अलग नजरिया अपनाया, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को सुरक्षित रखने की आशा को कोई विशेष मदद नहीं मिलती है। मसलन, टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी व अमिश देवगन और वेब सीरीज ‘तांडव’ की कास्ट व क्रू के मामले लगभग समान स्थितियों में थे कि उनके विरुद्ध अनेक राज्यों में एफआईआर दर्ज कराई गर्इं थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पहले वालों को राहत प्रदान कर दी थी और दूसरे को राहत देने से इनकार कर दिया था। ‘तांडव’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संपूर्ण नहीं है और वह दूसरों के अधिकारों को आहत करने की कीमत पर नहीं दिया जा सकता। गौरतलब है कि अतीत में सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को यह कहते हुए सुरक्षित रखा है कि अगर किसी चीज से आपकी भावनाएं आहत होती हैं तो आप स्वयं उससे दूर रहें। इसी शानदार दृष्टिकोण को बरकरार रखने की आवश्यकता है। अगर आपको अर्नब गोस्वामी की उग्र-आक्रामक नौटंकी अच्छी नहीं लगती तो आप न देखें, लेकिन उन्हें देखने दें जो देखना चाहते हैं। हाल ही में सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के मामले में पैâसला देते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने यही नजरिया अपनाया था। अदालत ने कहा था कि शब्दों के प्रभावों का ‘मूल्यांकन उन लोगों के मानकों के आधार पर नहीं किया जा सकता, जिन्हें हमेशा असुरक्षा का बोध रहता है या जो लोग आलोचना को हमेशा अपनी पॉवर या पोजीशन के लिए खतरा महसूस करते हैं’ और ‘अगर बड़ी संख्या में लोग दूसरे के द्वारा व्यक्त विचारों को पसंद नहीं करते तो भी व्यक्ति के विचार व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान करना व उसकी सुरक्षा करना जरूरी है।’
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)

जीवदया ही जीवन : …तो हम भी खत्म हो जाएंगे!

नरेंद्र गुप्ता

आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और प्रदूषण की समस्याओं से जूझ रही है, तब यह समझना अत्यंत आवश्यक हो गया है कि पर्यावरण और जीव-जंतु एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि हम अपने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, तो इसका सबसे पहला और गहरा असर जीव-जंतुओं पर पड़ता है और जब जीव-जंतु संकट में आते हैं, तो अंतत: मानव जीवन भी संकटग्रस्त हो जाता है।
पर्यावरण में हर तत्व वृक्ष, जल, वायु, पशु-पक्षी एक-दूसरे से गहराई से जुड़ा हुआ है। यदि हम वृक्षों की कटाई करेंगे या नदियों को प्रदूषित करेंगे, तो इससे न केवल मानव जीवन प्रभावित होगा, बल्कि पशु-पक्षियों का जीवन भी संकट में पड़ जाएगा। इसीलिए पर्यावरण की रक्षा करना भी जीवदया का ही एक रूप है। पर्यावरण वह प्राकृतिक तंत्र है, जिसमें हम सभी जीवित प्राणी रहते हैं, इसमें पेड़-पौधे, जल, वायु, मिट्टी, सूर्य का प्रकाश और समस्त जीव-जंतु शामिल हैं। जीव-जंतु इस पर्यावरण पर पूरी तरह निर्भर रहते हैं।
भोजन के लिए शाकाहारी जीव पेड़-पौधों पर निर्भर हैं और मांसाहारी जीव अन्य जानवरों पर। आश्रय के लिए जंगल, गुफाएं, झीलें, पहाड़, पेड़ आदि उनके घर होते हैं।
प्रजनन और जीवन-चक्र भी मौसमी और पर्यावरणीय कारकों से जुड़ा होता है। यदि इन तत्वों में से कोई भी नष्ट होता है, तो जीव-जंतुओं का जीवन संकट में पड़ जाता है।
जब मनुष्य प्रकृति का दोहन करता है जैसे पेड़ों की कटाई, प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग, नदियों को प्रदूषित करना, वनों की अंधाधुंध कटाई तो इसका सीधा असर लाखों जीवों पर पड़ता है। बाघ, हाथी, भालू जैसे वन्य जीव अपने प्राकृतिक घर से बेघर हो जाते हैं और मानवीय बस्तियों में आकर मारे जाते हैं। प्लास्टिक खाने से समुद्री जीव मर जाते हैं। कई मछलियों की प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। जैसे केंचुआ मिट्टी को उपजाऊ बनाता है, मधुमक्खियां परागण करती हैं। अगर पर्यावरण और जीव-जंतु नष्ट होंगे, तो हमारा अस्तित्व भी नहीं बचेगा। जीवदया और पर्यावरण संरक्षण दो अलग विषय नहीं हैं। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुंदर, सुरक्षित और संतुलित दुनिया छोड़ना चाहते हैं, तो अभी से जागरूक बनें और दूसरों को भी जागरूक करें। ‘धरती सिर्फ इंसानों की नहीं है, यह सब जीवों की साझी धरोहर है।’

ये हुई न बात

प्रेग्नेंसी के बाद से लगातार ऐश्वर्या राय बच्चन को उनके बढ़े हुए वजन के लिए निशाना बनाया जाता रहा है और ये बात हमारी मिसेस चटर-पटर को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। यूं तो हाल ही में ७८वीं कान फिल्म फेस्टिवल में सिंदूर भरी मांग के साथ भारतीय नारी के रूप में नजर आई ऐश्वर्या ने अपने हुस्न से सबको एक बार फिर अपना दीवाना बना ही दिया है, लेकिन कहते हैं न कुछ लोग मक्खी की तरह होते हैं, जो सारी खूबसूरत जगह को छोड़कर गंदी और बेकार चीजों पर ही बैठते हैं। ठीक उसी तरह कुछ लोगों को ऐश्वर्या की खूबसूरती की जगह उनका मोटापा ही दिखता है। ऐसे में बार-बार खुद पर हो रहे हमलों से ऐश्वर्या ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे ही दिया है। अब ट्रोलर्स को उनकी बात कितनी समझ आई ये तो वही जानें, लेकिन हमारी मिसेस चटर-पटर ऐश्वर्या के इस अंदाज से काफी खुश हैं।

सटायर : मुझे मेरे दामाद से बचाओ

-डाॅ. रवीन्द्र कुमार

शादी से पहले शादी के लिए लड़की देखने-दिखाने का प्रोग्राम चलता है। ऐसे प्रोग्राम सामान्यतः अरेंज शादी में होते है। जहां बड़े-बूढ़े बैठ कर शादी की अन्य औपचारिकताएं डिस्कस करते हैं। क्या मेन्यू? क्या दहेज की डिटेल्स? कितने चाचा, कितनी चाचियां, कितने साले कितनी सालियां उनके लिए क्या-क्या दरकार है आदि आदि। सास को क्या देना है? बाकी रिश्तेदारों को क्या-क्या लेना-देना है?
अमूमन शादी के लिए देखने दिखाने की इस एक्जिबिशन में सयानी मां, दीदी वगैरह एक बात का और ख्याल रखते हैं। ऐसे मौकों पर अन्य लड़कियों को दूर रखा जाता है। खासकर सुंदर शादी के लायक उम्र की लड़कियों को। क्यों कि ऐसा होने पर कुछ नाटकीय भी हो सकता है, जैसे-ये नहीं मुझे वो पसंद है। अतः ऐसे अवसरों पर वुड बी सालियों, कुंवारी सहेलियों को दूर ही रखा जाता है। जब तक कि बात फाइनल ना हो जाए।
अब लड़कियों, चाहे सालियां हों या सहेलियां को दूर रखना समझ आता है कि वो शादी में कोई भांजी न मार दें। या चंचल लड़के का मन फिर न जाए। पर एक बात बताइये ऐसे में मां को कहां ले जाया जाएगा? भाई मां ने तो साथ रहना ही है। अब गोंडा, बस्ती में ऐसा कांड हो जाएगा किसे उम्मीद होगी? किसी कारण से इस शादी की 23 वर्षीय भावी दूल्हे को मना कर दिया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 23 वर्षीय भावी दूल्हे महाराज और 44 वर्षीय सासु मां के बीच मीठी-मीठी बातें चालू हो चुकी थीं। न केवल चालू हो चुकी थीं, बल्कि बहुत दूर तक चली गईं थीं। वो कहते हैं ना दोनों में गाढ़ी छनने लगी थी। अब जब भावी दूल्हे की शादी की मना हो गई तो और निर्बाध रूप से घंटों बातें होने लगीं। क्या कहते हैं ‘स्वीट नथिंग’ का खूब आदान-प्रदान होने लगा। जिसका डर था वही बात हो गई। सास को लेकर भावी दामाद साब फुर्र हो गए या कहिए:
दुनिया वालों से दूर जलने वालों से दूर
भावी सास अपने भावी दामाद को लेकर ये जा वो जा। ससुर साब सोच रहे होंगे बेटी के हाथ तो पीले हो न सके। अपनी पत्नी से और हाथ धोने पड़ गए। आगे से ऐसे अवसरों पर न केवल सालियों, सहेलियों को दूर रखना है बल्कि दुल्हन की मां को भी जहां तक हो सके पर्दे में रखिए। जमाना खराब है।
मां को दिखा नहीं देना जी दिखा नहीं देना
उधर दूल्हे महाराज काॅमेडियन महमूद साहब का आंखें फिल्म का वो गाना अलग गा रहे होंगे:
दीनार नहीं तो डॉलर चलेगा
कमीज़ नहीं तो कमीज का काॅलर चलेगा
डाॅटर नहीं तो डाॅटर का मदर चलेगा

कबाड़ी बाजार उर्फ चोर बाजार

-डाॅ. रवीन्द्र कुमार

दिल्ली में हमारे बचपन में ये बाज़ार एडवर्ड पार्क (अब नेताजी सुभाष चंद बोस पार्क) के पीछे वाली रोड पर हर रविवार को लगता था। यह उस रोड पर लगता था जो दरियागंज से कट के आगे जगत सिनेमा (मछली थियेटर) तक जाती थी। यह बाज़ार सड़क के दोनों ओर फुटपाथ पर लगता था। यह मिक्स बाज़ार होता था, अर्थात उसी में गरम कोट, ओवर कोट बिकते थे तो उसी में किताबें, नाॅवल्स और काॅमिक्स बिका करते थे। इन सबसे बढ़ कर एक और आकर्षण की चीज होती थी। हैड फोन और फिल्म के बच्चों वाले मेनुअल प्रोजेक्टर तथा फिल्मी रील के रोल। मुम्बई का चोर बाज़ार, शुरू  चोर बाज़ार ही कहलाता है। हांलाकि ऐसा कहा जाता है कि वहां से उठने वाले कोलाहल की वजह से अंग्रेज उसे शोर बाज़ार कह संबोधित करते थे जो धीरे धीरे चोर बाज़ार कहलाया जाने लगा।
संडे के संडे अपना प्रोग्राम होता था वहां जाकर विंडो (?) शॉपिंग करना। जो अपनी खरीदने की वस्तुएं होती थीं और जो हम अपनी ‘ग़रीबी रेखा’ के नीचे वाली पॉकेट मनी से एफोर्ड कर सकते थे वो होते थे फेंटम (वेताल) के काॅमिक्स। तब ये काॅमिक्स केवल टाइम्स ऑफ इंडिया ही पब्लिश करता था। उन पर एक सीरियल नंबर अंकित रहता था। हम इस बात पर गर्व करते और सबको बताते फिरते थे कि हमारे पास पूरी सीरीज है सिवाय फलां फलां नंबरों के। इतवार के इतवार उन खोये हुए नंबरों के ‘वेताल’ की तलाश में ऐसे जाते थे जैसे एडवेंचर नॉवल में लोग खजाने की खोज में निकलते। कभी जब कोई काॅमिक्स मिल जाता तो बहुत खुशी से ऑन दि स्पॉट खरीद लेते। एक बार ऐसे ही जब एक काॅमिक्स दिख गया तो उसे उलटते-पुलटते मैंने दुकानदार से कीमत पूछी वो बिना मेरे तरफ देखे, बोला ‘जिन में कवर लगा है अर्थात कवर इनटेक्ट है वो 15 पैसे (ढाई आने) के हैं और बिना कवर वाले दो आने (12 पैसे ) के हैं’। मेरे पास पैसे शायद तब तक दो आने ही बचे थे मैंने दुकानदार को ऑफर दी कि वह चाहे तो कवर उतार ले पर मुझे दो आने में दे दे। उसने मुझे विनोद से देखा और साथ के दुकानदारों को हंसते हुए बताने लगा “देखो ! देखो ! ये लड़का क्या कह रहा है” मेरे समझ में ही नहीं आया कि इसमें दूसरे दूकानदारों को बताने वाली क्या बात हुई। अब यह याद नहीं वो काॅमिक्स फाईनली खरीद पाया या नहीं। इन सब काॅमिक्स को रखने के लिए पिताजी का एक पुराना लैदर बैग जो उन्होने रिटायर कर दिया था उसी में सीरियल से सजा कर रखता था। कोई आता तो उस खजाने को खोलता। या फिर आपस में क्लास के बच्चों के साथ अदला-बदली करते थे।
एक दूसरी दुकानों का ग्रुप जो अपनी ओर खींचता था वह था फिल्मों के काले-काले मिनी प्रोजेक्टर और फिल्मों की रीलों के रोल। शायद प्रोजेक्टर 20 या 25 रुपये का होता था। एक बार पैसे जोड़ कर और हिम्मत बटोर कर प्रोजेक्टर खरीद ही लिया। फिल्म का एक छोटा सा रोल (कप-प्लेट) की प्लेट जितना बड़ा रील का रोल फ्री मिला था। उसी शाम हम भाई बहन कमरे में अंधेरा करके बैठ गए। लगे कभी फोकस ठीक करने, कभी हेंडल चलाने। मगर ना तो कायदे का फोकस ही बन पाया न हेंडल कायदे से चला पाये। फलस्वरूप कुछ भी समझ नहीं लगा। आवाज तो थी ही नहीं। कई सालों बाद जब जॉय मुखर्जी-सायराबानो की शागिर्द देखी तो याद आया कि वो रील इसी फिल्म के एक प्रकरण की थी, जो फिल्म में मुश्किल से 5 मिनट का था, और हम प्रोजेक्टर का हेंडल घुमा घुमा के पसीने में नहा गए थे।
हाँ इलेक्ट्रोनिक की दुकान से हैडफोन ज़रूर खरीदा था। वह एक कान का 5 रुपये का मिलता था जबकि दोनों कानों का दस रुपये का। ले दे कर 5 रुपये वाला खरीद लाये। उसमें मीडियम वेव रेडियो हरदम बजता रहता था। आप ऐसे नहीं सुन सकते थे। उस को कान पर लगा, हाथ से पकड़े रहना होता था। उसमें से एक तार एंटीना का काम करने को छत से लटकाना पड़ता था।
फिर जीवन की दो ट्रेजिडी साथ-साथ हुईं। बाज़ार वहाx से लाल किले के पीछे शिफ्ट हो गया। दूसरे हम थोड़े और बड़े हो गए। वेताल-मेंड्रेक पीछे छूट गए। अब ना वेताल था, न कोई जादूगर। न कोई रील थी ना ही कोई प्रोजेक्टर था। जो बच रह गया वह था ‘अब ज़िंदगी आपकी रील बना रही थी’।
जीवन की वो छोटी छोटी खुशियाँ न जाने कहाँ लुढ़क गईं।

(नोट: कालांतर में बुक बाज़ार दरियागंज मेन रोड के फुटपाथ पर बरसों लगता रहा। बाद में सुप्रीम कोर्ट से हारने के बाद यह बुक बाज़ार अब सिमट के आसफ अली रोड, डिलाइट सिनेमा के अपोजिट लगने लगा है।)

कन्वर्जिंट इंडिया की ओर से पीएमश्री स्कूल की सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी

सामना संवाददाता / मुंबई

कन्वर्जिंट इस सिस्टम इंटिग्रेशन क्षेत्र में सेवा प्रदाता तथा विश्वस्तर पर वरियताप्राप्त कंपनी की ओर से समाज को सक्षम करनें हेतु उनकी वचनबध्दता के अनुसार उनके सिग्नेचर प्रोग्राम रहें स्टेप (सिक्युअर, ट्रान्सफॉर्म, एम्पावर, पार्टनर) अप स्कूल उपक्रम का आयोजन आज नवी मुम्बई स्थित उलवे के पीएमश्री स्कूल में किया गया था।
शैक्षणिक वातावरण और सुरक्षा में बढ़ोत्तरी करनें के लिए कम संसाधनों से युक्त शिक्षा संस्थाओं को सहयोग देने हेतु डिज़ाईन किए गए इस प्रकल्प के तहत कन्वर्जिंट सिस्टम के ४० से अधिक कर्मचारियों ने उनका समय और कुशलता देकर स्वयंसेवक के रुप में काम करते हुए महत्त्वपूर्ण सुविधा और तंत्रज्ञान उपलब्ध कराया।
इस प्रकल्प का एक भाग होने के नाते स्कूल में स्थित विडिओ सुरक्षा उपकरणों में बढ़ोत्तरी करते हुए पांच नए कैमरे लगाए गए, इस से स्कूल के परिसर में सुरक्षा और कड़ी की गई। इनके अलावा टिमनें शिक्षा से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण और जरूरी चीजें जैसे कोल्ड स्टोअरेज के लिए रेफ्रिजरेटर, पुस्तकों के लिए दो शेल्फ्स, दो नोटिस बोर्ड्स और एक वाईफाई राऊटर लगाए, जिससे स्कूल के क्लास का परिचालन अधिक अच्छा हो सकेगा।
कन्वर्जिंट इंडिया के डेटा सेंटर्स के सर्विस डिलिवरी मैनेजर संदीप कुमार ने प्रकल्प का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा “हमारे स्टेप अप स्कूल उपक्रम के माध्यम से हम केवल तंत्रज्ञान ही नहीं दे रहे, बल्की दीर्घकालीन और सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। पीएम श्री स्कूल में सर्वसमावेशक तथा सर्वंकश शिक्षा देने का प्रयास होता रहता है और इस से अधिक सुरक्षित तथा भविष्य में बच्चों और शिक्षकों को बेहतर शिक्षा का वातावरण और अच्छा करने में हम सहकार्य कर रहें हैं।”
पीएम श्री स्कूल की प्रिन्सिपल मानसी मंगेश सुर्वे ने आभार व्यक्त करतें हुए कहा, “पीएम श्री स्कूल में हम लगातार सर्वंकश, सर्वसमावेशक तथा तंत्रज्ञान पर आधारीत शैक्षणिक वातावरण देनें के लिए प्रयास करतें रहते हैं। कन्वर्जिंट के सहयोग से हम अब स्कूल की सुरक्षा बेहतर करनें के साथ ही रोजमरहा की शिक्षा में भी सुधार ला रहे है। इन सुधारों के कारण हम हमारें विद्यार्थी तथा शिक्षकों को अधिक सुरक्षित कर सकेंगे तथा वे शिक्षा का नया समृध्द अनुभव प्राप्त करेंगे। इस सहयोग के लिए हम उनके आभारी है और इस से स्कूल के कार्य में अधिक सकारात्मक सुधार आएगा.”
कन्वर्जिंट के स्टेप अप फॉर स्कूल्स उपक्रम का एक भाग उनके महत्त्वपूर्ण विशाल सामाजिक जिम्मेदारी का एक भाग है। इस उपक्रम के तहत ७४८८ विश्वस्तर के सहकारी इस साल सहभागी होकर ३७ देशों में संसाधनों की कमी के स्कूलों और समाजों को सहकार्य कर रहें है।

यादव व सनातन का अपमान कब तक! 

फिल्म अभिनेता आमिर खान के द्वारा आनेवाली फिल्म महाभारत और उसमें परमेश्वर कृष्ण का अभिनय करने को लेकर कृष्णा धर्म ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर यह फिल्म रिलीज होने से नहीं रोकी गई और इसमें आमिर खान द्वारा परमेश्वर कृष्ण का अभिनय किया जाना यह संपूर्ण यादव के साथ सनातन संस्कृति की परंपरा संस्कार का अपमान और धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। अगर आमिर खान को बनाना है तो अपने मजहब पर फिल्म बनाएं। इसके पहले भी आमिर खान के द्वारा पीके फिल्म में सनातन देवी-देवताओं का अपमान किया जा चुका है। इनकी निजी जिंदगी भी संयमित नहीं है। यह चौथी बार निकाह करने जा रहे हैं। परमेश्वर कृष्ण का अभिनय कोई चरित्रहीन, शराबी और नंगेपन को प्रदर्शन करनेवाला कैसे कर सकता है। अगर हमारी मांग को नहीं माना गया तो कृष्णा धर्म की तरफ से आंदोलन चलाया जाएगा एवं जन जागरण अभियान चलाया जाएगा और पुलिस में एफ आई आर दर्ज कराई जाएगी। ऐसे विचार कृष्णा धर्म के संस्थापक एवं मेनेजिंग ट्रस्टी पार्थ संतोष जियालाल यादव ने व्यक्त किया।

सुल्तानपुर में निकली धोपाप पर्यावरण यात्रा

विक्रम सिंह / सुल्तानपु

पर्यावरण जागरूकता के लिए सुल्तानपुर के धोपाप में हरित जीवन पर्यावरण यात्रा निकाली गई। मुंबई से अयोध्या तक इस यात्रा को ले जाने का प्रयास चल ही रहा था कि इस बार 5 जून को सुखद संयोग रहा। पर्यावरण दिवस एवं गंगा दशहरा एक ही तिथि को मनाए गए। धोपाप के निकट बुधना देवी मंदिर के पास स्थानीय प्रकृतिप्रेमी गणमान्य लोगों की उपस्थिति में इसके समापन की घोषणा की गई। पर्यावरण को समर्पित हरित जीवन समूह की इस पर्यावरण यात्रा से बड़े पैमाने पर स्थानीय लोग जुड़े। पर्यावरण को बचाए रखने एवं नदी के तट पर प्लास्टिक न फेंकने एवं कूड़ा करकट न डालने की प्रतिज्ञा की। लंभुआ के बीजेपी नेता अवनीश कुमार सिंह गुड्डू ने इस यात्रा की प्रशंसा की। कहा कि ऐसी यात्राएं सदैव चलती रहे यही मेरी ईश्वर से कामना है।
आयोजक हरित जीवन यूपी प्रमुख मुमताज अली ने बताया कि धोपाप घाट पर वृक्षारोपण अभियान चलाया जाएगा, जिसमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण कराए जाएंगे। इस अवसर पर पूर्व बीडीसी जियाउल हक, अध्यापक राखी सिंह, संजय यादव, इजहार अहमद, राजेश यादव, शैलेंद्र दुबे नौशाद अली, मानसिंह, कुर्बान जीशान , रामलौट यादव, संजय निषाद, शहबाज, प्रदीप निषाद मौजूद रहेl

निर्जला एकादशी पर काशी में निकली विराट कलश यात्रा…सिंधु,चिनाब,रीवा, मानसरोवर और गंगा के जल से बाबा विश्वनाथ का हुआ अभिषेक

उमेश गुप्ता / वाराणसी

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाई जाने वाली निर्जला एकादशी के पावन अवसर पर शुक्रवार को काशी में भक्ति, आस्था और सांस्कृतिक एकता का अद्भुत दृश्य देखने को मिला। गंगा घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। हजारों लोगों ने गंगा में स्नान कर दान-पुण्य किया और भगवान विष्णु की आराधना में लीन नजर आए। सुप्रभातम व श्री काशी मोक्षदायिनी सेवा समिति के तत्वाधान में श्री काशी विश्वनाथ वार्षिक कलश यात्रा निकाली गई।
इस बार का आयोजन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को समर्पित किया गया, जिसके तहत सिंधु, चिनाब, रीवा, मानसरोवर और गंगा जैसे पवित्र जल स्रोतों से लाए गए जल से बाबा विश्वनाथ का महाअभिषेक किया गया। इस अनूठे आयोजन ने पूरे विश्वनाथ धाम को भक्तिमय कर दिया।
कार्यक्रम संयोजक निधि देव अग्रवाल पवन चौधरी दिलीप सिंह के नेतृत्व में कलश यात्रा डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद घाट से आरंभ हुई सभी सनातनी पारंपरिक परिधानों में जलाभिषेक यात्रा में सम्मिलित होकर वर्षों पुरानी परंपरा का विधिवत निर्वाह किया श्री काशी विश्वनाथ वार्षिक कलश यात्रा के उप संस्करण में भक्तों का उत्साह देखते ही बनता रहा कलश यात्रा अपने चीर परचित अंदाज के साथ निकाली यात्रा में सबसे आगे साउंड सिस्टम पर शिव भजन मुखर था रथ पर संस्था के संस्थापक स्वर्गीय राज किशोर गुप्ता बचानू साव एवं पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय जगदंबा तुलस्यान के तेल चित्र था। मणी जी कांची कामकोटि परमार्थ जी का रथ। उसके पीछे नंदी पर विराजमान भगवान शिव और माता पार्वती की छवि धारण किए कलाकारों की प्रस्तुति विशेष उत्साह भर रही थी। डमरू की गर्जना के साथ भक्तों का हर हर महादेव उद्घोष से संपूर्ण परिवेश शिव भक्ति से पूरी तरहा महिलाएं-पुरुष माथे पर कलश दिए हुए थे। शोभा यात्रा में पी ए सी बैंड आकर्षण का केंद्र था। शहनाई की मंगल ध्वनि के बीच भक्तों का जत्था दशाश्वमेध गोदौलिया हौज कटोरा बांस फाटक होते हुए ज्ञानवापी स्थित गेट नंबर 4 से विश्वनाथ धाम में प्रवेश किया यात्रा से पूर्व राजेंद्र प्रसाद घाट पर कलश पूजन पंडित अमरकांत के आचार्यत्व में 5 ब्राह्मणों ने कराया। इसके यजमान समाजसेवी अनूप पोद्दार सपत्नीक अमिता पोद्दार, शहर दक्षिणी विधायक डॉ. नीलकंठ तिवारी निधि देव अग्रवाल टीले महाराज नासिक रहे। रजत की 11 कलश में विभिन्न पवित्र नदियों त्रिवेणी सिंधु झेलम चिनाव रावी व्यास के अलावा काशी हरिद्वार ऋषिकेश के गंगाजल से पूरित कलश में दूध बेलपत्र माला के साथ ही 1008 कलश का पूजन किया। इससे पहले संस्था के लोगों ने मां गंगा की आरती उतारी आयोजक संस्था श्री काशी मोक्षदायिनी सेवा समिति के कार्यकर्ताओं ने व्यवस्था संभाली, जिसके बाद लोगों ने कतार में लगकर कलश प्राप्त किया। शोभायात्रा का आकर्षण यात्रा में बाबा बर्फानी की झांकी भी रही।
जगह-जगह सजे कैंप
यात्रा मार्ग में जगह-जगह अनेक संस्थाओं की ओर से शिव भक्तों की सेवा के लिए कैंप लगाए गए कहीं आम का अमरस तो कहीं नींबू का शरबत शीतल जल बांटा गया कैंप में मारवाड़ी समाज, श्री श्याम मंडल, बालसखा श्री बाल श्याम मंडल महेश्वरी समाज मंडल, खत्री हितकारिणी सभा केसरवानी वैस्य समाज समिति सामाजिक संस्था भावना मुख्य अतिथि शहर दक्षिणी के विधायक पूर्व मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी, जिन्होंने भक्तों को कलश देकर यात्रा का शुभारंभ किया। संयोजन में न्यासी केशव जालान उमाशंकर अग्रवाल कार्यक्रम संयोजक निधि देव अग्रवाल, पवन चौधरी दिलीप सिंह सुरेश तुलस्यान, हेमदेव अग्रवाल, पवन कुमार अग्रवाल, मनोज जाजोदिया, गोकुल शर्मा, कौशल शर्मा, पवन शुक्ला, मुकुल टंडन, महेश चौधरी, केशव अग्रवाल, महेश महेश्वरी आदि लोग उपस्थित थे।

अंधेरी के राजा मंडप का भूमिपूजन संपन्न 

रवीन्द्र मिश्रा / मुंबई

अगस्त महीने में होने वाले गणेशोत्सव को लेकर मुंबई के विभिन्न सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडलों ने अपनी तैयारी शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में 5 जून गुरुवार को अंधेरी के राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल ने अपना भूमि पूजन कर मंडप बांधने का काम शुरू कर दिया है। अंधेरी का राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल के प्रवक्ता उदय सालियन के अनुसार मंडल के प्रमुख मार्गदर्शक यशोधर (शैलेश) फणसे, अध्यक्ष अशोक राने, उपाध्यक्ष महेंद्र डेढिया, सचिव विजय सावंत, कोषाध्यक्ष सुबोध चिटनिस तथा आर्ट डायरेक्टर धर्मेश शाह ने विधि-विधान से भूमि पूजन किया। मंडल के सदस्यों ने भगवान गणेश का दर्शन कर मंडप के सजावट कार्य शुरू करने के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं। मंडल के प्रवक्ता उदय सालियन ने बताया कि इस वर्ष के गणेशोत्सव में कष्टभंजन हनुमान जी की प्रतिमा 32 फिट ऊंचे बनाए गये भव्य गेट पर बिराजमान की जाएगी। गुजरात के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर कष्ट भंजन हनुमान की प्रतिमा इस वर्ष गणेश भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा। भूमि पूजन के बाद मंडप का काम शुरू कर दिया गया है। इस अवसर पर अंधेरी का राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल के सभी पदाधिकारी, प्रतिष्ठित नागरिक एवं गणेश भक्त भारी संख्या में उपस्थित थे। ज्ञात हो कि यह मंडल पूरे साल में विविध सामाजिक, शैक्षणिक तथा धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन कर हर संभव लोगों की मदद करता हैं।