सामना संवाददाता / मुंबई
लातूर, सांगली, पुणे, नांदेड, छत्रपति संभाजी नगर, सोलापुर जिलों में लगभग १४ लड़कियों को अनाथ साबित करने के लिए सरकारी कार्यालयों के दरवाजों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। माता-पिता के बारे में कुछ भी जानकारी न होने के बावजूद इन लड़कियों को उनके माता-पिता के मृत्यु प्रमाणपत्र लाने के लिए कहा गया है। महिला व बाल विकास विभागीय उपायुक्तों ने भी हाथ उठा लिए हैंै, जिसके कारण माता-पिता के बिना पढ़ी इन लड़कियों को १२ महीने बाद भी अनाथ प्रमाणपत्र नहीं मिला है। ऐसे में विभागीय उपायुक्तों की इस अजीबोगरीब कार्रवाई और कामकाज पर सवाल उठने लगे हैं।
उल्लेखनीय है कि राज्य के बाल गृहों में वर्तमान में १० हजार से अधिक बच्चे हैं, जिनमें से कुछ के माता-पिता में से एक, तो कुछ के दोनों ही नहीं हैं। इसके साथ ही कई के माता-पिता किसी अपराध में जेल में हैं। कई के एचआईवी से पीड़ित हैं। कई के गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं, तो कई के माता-पिता दोनों ही दिव्यांग हैं। इनमें से लगभग ६०० बच्चों के माता-पिता नहीं हैं। कुछ को बचपन में ही बाल गृह में छोड़ दिया गया है। कुछ बच्चे अलग-अलग जगहों पर खुले में पाए गए हैं। इस बीच १८ साल पूरे होने के बाद बाल गृह से आगे की पढ़ाई के लिए निकलीं १४ लड़कियों ने अलग-अलग जगहों पर अनाथ प्रमाणपत्र नहीं मिलने की शिकायतें की हैं। यह मुद्दा कल विधान परिषद में सदस्यों ने प्वाइंट ऑफ ऑर्डर के तहत उठाया, जिस पर जांच कर कार्रवाई करने का आदेश सभापति राम शिंदे ने दिया।
विभागीय उपायुक्तों को पत्र,
फिर भी जानकारी नहीं मिली
पुणे के सनाथ वेलफेयर फाउंडेशन की गायत्री पाठक ने पहल करते हुए महिला व बाल विकास आयुक्तालय से संपर्क किया और संबंधित अधिकारियों के सामने स्थिति रखी। उस समय उपायुक्त राहुल मोरे ने विभाग के सभी विभागीय उपायुक्तों को पत्र भेजकर उनसे अनाथ प्रमाणपत्र नहीं मिलने वालों की जानकारी मांगी। प्रमुख पांच मुद्दों पर उपायुक्त मोरे ने जानकारी मांगी, लेकिन दस दिन बीत जाने के बाद भी विभागीय उपायुक्तों की ओर से महिला व बाल विकास आयुक्तालय को कोई जवाब नहीं मिला।
माता-पिता की जानकारी न होने पर भी मांगा मृत्यु प्रमाणपत्र …आवेदन के १२ महीने बाद भी १४ लड़कियों को नहीं मिला अनाथ प्रमाणपत्र
अपने जीवन को आनंद से भरें – प्रेम रावत
– जीवित रहने तक नहीं बदलेगा सांसों का आना-जाना
– सांस के साथ जुड़कर जिंदगी बदलने का दिया सुझाव
सामना संवाददाता /मुंबई
अंतर्राष्ट्रीय वक्ता, लेखक और शांतिदूत प्रेम रावत ने ९ मार्च को देहरादून के परेड ग्राउंड में हजारों श्रोताओं को संबोधित किया। उन्होंने जीवन के मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस संसार में सब कुछ बदल जाता है, लेकिन जब तक तुम जीवित हो, सांसों का आना-जाना नहीं बदलेगा। यह बनाने वाले की कृपा है। इसलिए इस सांस के साथ जुड़ना सीखो, तब जिंदगी बदल जाएगी, अच्छी हो जाएगी।
उन्होंने यह भी बताया कि उनके संदेश पर आधारित ‘पीस एजुकेशन प्रोग्राम’ दुनियाभर में पांच लाख से अधिक लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया है।
तीन बार गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम है दर्ज
– स्वयं की आवाज’ पुस्तक के वाचन में सबसे अधिक उपस्थिति (१,१४,७०४ लोग)।
– एक संबोधन में सबसे अधिक दर्शकों की संख्या (३,७५,६०३ लोग)।
– ‘एक से अधिक लेखक पुस्तक वाचन’ में सर्वाधिक दर्शकों की संख्या (१,३३,२३४ लोग)।
इन उपलब्धियों के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें २०१२ का एशिया पैसिफिक ब्रांड लॉरिएट लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड शामिल है। यह सम्मान पहले नेल्सन मंडेला और स्टीव जॉब्स को दिया जा चुका है।
द प्रेम रावत फाउंडेशन और सामाजिक कार्य
प्रेम रावत ‘द प्रेम रावत फाउंडेशन’ के संस्थापक भी हैं, जो भोजन, पानी और शांति जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का कार्य करता है। इसकी ‘जन भोजन’ पहल भारत, नेपाल, घाना और दक्षिण अप्रâीका में प्रतिदिन जरूरतमंद बच्चों और बीमार वयस्कों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती है।
उनके व्याख्यानों पर आधारित ‘पीस एजुकेशन प्रोग्राम’ १,४०० से अधिक शैक्षिक एवं अन्य संस्थानों में चलाया जाता है, जिससे अब तक ५ लाख से अधिक लोग लाभान्वित हुए हैं। यह कार्यक्रम १,००० से अधिक जेलों में भी संचालित हो रहा है, जिससे वैâदियों में दोबारा अपराध करने की संभावना कम हुई है। उनकी किताबें ‘स्वयं की आवाज’ और ‘शांति संभव है’ दुनियाभर में सराही गई हैं।
प्रेम रावत वैश्विक शांतिदूत
१९७० के दशक में एक बाल प्रतिभा और युवा आइकन के रूप में शुरुआत करने वाले प्रेम रावत ने करोड़ों लोगों को स्पष्टता, प्रेरणा और जीवन के प्रति गहरी समझ दी है। उनके संदेश ११० से अधिक देशों में सुने जाते हैं, जहां वे हर व्यक्ति को आशा और शांति का मार्ग दिखा रहे हैं। उनके कार्यों को दुनियाभर में सराहा गया है।
`देर से ही सही… बीजेपी के मुख्यमंत्री ने माना `मोदी नेता नहीं, अभिनेता हैं’! …भजनलाल के फेवरेट एक्टर मोदी जी वाले बयान पर कांग्रेस का तंज
सामना संवाददाता / जयपुर
राजस्थान में एक कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस बीजेपी पर जमकर सियासी हमले कर रही है। इस दौरान सीएम भजनलाल ने अपने फेवरेट एक्टर का नाम नरेंद्र मोदी बताया। इसको लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने सीएम भजनलाल पर तीखा तंज किया। उन्होंने कहा कि `देर ही सही… बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री भी कहने लगे हैं कि मोदी नेता नहीं, अभिनेता हैं।’ इधर कांग्रेस के पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी जमकर हमला किया। उन्होंने कहा कि जनता के खून पसीने की कमाई पर सरकार ने डवैâती डाली है और डवैâती का यह पैसा इस कार्यक्रम को दिया गया।
दरअसल, राजधानी जयपुर में एक कार्यक्रम की सिल्वर जुबली पर फिल्मी सितारों का जमावड़ा लगा हुआ था। इस दौरान सीएम भजनलाल और डिप्टी सीएम दीया कुमारी भी समारोह में नजर आए। इस बीच मीडिया ने सीएम भजनलाल से सवाल किया कि आपका फेवरेट एक्टर कौन है? इस पर सीएम ने हंसते हुए पीएम नरेंद्र मोदी का नाम ले लिया। इस पर सभी लोग हंसने लगे। इधर इस वीडियो को लेकर डोटासरा ने सोशल मीडिया पर बीजेपी पर हमला किया। उन्होंने कहा कि `देर से ही सही..भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री भी कहने लगे कि हैं कि मोदी जी नेता नहीं अभिनेता हैं। कैमरे की कलाकारी, टेलीप्रॉम्प्टर, वेशभूषा और लछेदार भाषणों में माहिर हैं।’
सरकार ने जनता के पैसों पर
डाली है डकैती -खाचरियावास
जयपुर में इस कार्यक्रम को लेकर गहलोत सरकार में मंत्री रह चुके प्रताप सिंह खाचरियावास शुरू से बीजेपी पर हमलावर बने हुए हैं। उन्होंने एक बार फिर सरकार को घेरते हुए कहा कि गरीबों की खून पसीने की कमाई पर सरकार ने डवैâती डाली है और इस पैसे को कार्यक्रम में लगा दिया। प्रदेश के लोगों की हालत खराब है, लेकिन सरकार ने इस कार्यक्रम में नाच गाने के लिए १०० करोड़ रुपए दे दिए। उन्होंने फिल्मी स्टार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि इन स्टारों को ढाई लाख रुपए के होटल के कमरों में ठहराया गया है, तमाम तरह की सुविधाएं दी जा रही है, जो जनता के पैसों का दुरुपयोग है।
यूपी के दारोगा को देश से प्रेम नहीं! … क्रिकेट फैंस से तिरंगा छीना, फिर फटकारा
– भारत के चैंपियन बनने के जश्न में डाली खलल
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ खुद को देश भक्त मानते हैं, वहीं उनके पुलिस विभाग के एक अधिकारी को शायद देश से प्रेम नहीं है। यही वजह है कि जब इंडिया ने चैंपियंस ट्रॉफी जीती तो सहारनपुर के कुछ युवाओं के जश्न में दारोगा ने खलल डाल दी। दारोगा ने जश्न मना रहे युवाओं से तिरंगा छीन लिया और उन्हें फटकारा भी। ये घटना सहारनपुर के घंटाघर इलाके की है। क्रिकेट पैंâस ने दारोगा पर तिरंगा छीनने और फटकारने के आरोप लगाए।
दारोगा ने आरोपों का विरोध जताया तो भीड़ भड़क गई और दारोगा से धक्का-मुक्की करने लगी। इस दौरान मारपीट और गाली-गलौज भी हुई। इसके बाद आक्रोशित भीड़ ने घंटाघर पुलिस चौकी को घेर लिया। इस दौरान दारोगा ने छिपकर अपनी जान बचाई। इस घटनाक्रम के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। एक युवक ने बताया कि भारतीय क्रिकेट टीम ने १२ साल बाद चैंपियंस ट्रॉफी जीती। मैच खत्म होने के बाद क्रिकेट प्रेमी जश्न मना रहे थे। वे नारेबाजी और जयकारे के साथ घंटाघर चौक पर पहुंचे थे। वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने कहा कि अपने-अपने घर जाओ। युवकों ने जवाब दिया, वे जश्न मनाकर घर लौट जाएंगे, लेकिन दारोगा ने एक युवक के हाथ से तिरंगा छीन लिया और उसको फटकारना शुरू कर दिया। इससे भीड़ भड़क गई और युवाओं की दारोगा से बहस हो गई। बहसबाजी धक्का-मुक्की में बदल गई।
इसके बाद आक्रोशित भीड़ थाने पहुंच गई, जहां दारोगा पहले से पहुंचा हुआ था। भीड़ ने दारोगा को बाहर आने को कहा, लेकिन वह छिप गया और चुपके से अपने घर चला गया। इसके बाद मौके पर भीड़ जुटती चली गई। बवाल की जानकारी मिलते ही पुलिस बल आ गया। रिपोर्ट के अनुसार, हंगामे की जानकारी मिलते ही ३ थानों की पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिसकर्मियों ने किसी तरह भीड़ को तितर- बितर किया और शांति बनाए रखने की अपील की। पुलिस विभाग के आला अधिकारी भी मौके पर पहुंचे और युवाओं को समझाने का प्रयास किया। युवाओं ने दारोगा के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
यात्रीगण सावधान! १६ मार्च तक ६ स्टेशनों पर नहीं मिलेंगे प्लेटफार्म टिकट
सामना संवाददाता / मुंबई
कुंभ के समय नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ के बाद रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। शायद यही वजह है कि अब मध्य रेलवे ने भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिए आने वाले कुछ दिनों में प्लेटफार्म टिकट नहीं देने का पैâसला किया है। जानकारी के मुताबिक, सीएसएमटी, दादर, लोकमान्य तिलक टर्मिनस, ठाणे, कल्याण एवं पनवेल स्टेशनों पर प्लेटफार्म टिकट नहीं दिए जाएंगे।
मध्य रेलवे के मुताबिक, होली के अवसर पर आमतौर पर स्टेशनों पर भीड़ होती है। इनमें से कई व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपने परिजनों व रिश्तेदारों को स्टेशन पर छोड़ने के लिए आते हैं, इससे भीड़ अधिक बढ़ जाती है। ऐसे में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ८ मार्च से १६ मार्च तक प्लेटफार्म टिकट नहीं देने का पैâसला किया गया है। इस दौरान केवल आरक्षित टिकट वालों को ही इन स्टेशनों पर प्रवेश दिया जाएगा। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि कोई अप्रिय घटना न घटे। बता दें कि भीड़ को काबू करना रेलवे के लिए चुनौती बनता जा रहा है। प्रमुख स्टेशनों पर आरपीएफ के अतिरिक्त जवानों की तैनाती की गई है ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचा जा सके।
३४ होली स्पेशल ट्रेन चलाएगा मध्य रेल
मध्य रेल अपने प्रमुख मार्गों पर अतिरिक्त ३४ होली स्पेशल ट्रेनें चलाएगा। रेलवे ने बताया कि इन ट्रेनों को मुंबई-पुणे, सीएसएमटी-बनारस, एलटीटी-दानापुर, सीएसएमटी-मऊ व अन्य मार्गों पर चलाया जाएगा। इन विशेष ट्रेनों के लिए बुकिंग विशेष शुल्क पर सभी कम्प्यूटरीकृत आरक्षण केंद्रों व आईआरटीसी की वेबसाइट से की जा सकती है।
राजस्थान सरकार बंद करेगी १८ लाख लोगों की पेंशन! …भौतिक सत्यापन नहीं कराने का दे रही है हवाला
सामना संवाददाता / जयपुर
एक राज्य में एक साथ १८ लाख लोगों की पेंशन बंद होना निश्चित तौर पर चिंता का विषय है। इतने लोगों की पेंशन एक साथ बंद करने से सरकार के खिलाफ लोगों में रोष भी भड़क सकता है। इसके बावजूद राजस्थान की भजनलाल सरकार १८ लाख पेंशन भोगियों की पेंशन बंद करने की तैयारी में है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन १८ लाख लोगों ने अब तक भौतिक सत्यापन नहीं करवाया है।
गौरतलब है कि निरंतर पेंशन पाने के लिए हर पेंशन भोगी को हर साल नवंबर में फिजिकल वेरिफिकेशन करवाना अनिवार्य होता है। लेकिन राज्य सरकार ने पेंशन भोगियों को राहत देते हुए, फिजिकल वेरिफिकेशन की तारीख ३१ मार्च तक बढ़ा दी थी। इसके बावजूद करीब १८ लाख लोगों ने अभी तक फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं करवाया है।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत का कहना है कि सरकार की कोशिश यही है कि हर पात्र व्यक्ति को पेंशन मिले, कोई भी पात्र व्यक्ति पेंशन से वंचित न रह जाए। लेकिन तय समय पर फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं होता है तो उनकी पेंशन रोक दी जाएगी। मिली जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार से कुल पेंशन भोगियों की संख्या ७७ लाख, ७२ हजार, ५२ है, जिसमें वृद्धावस्था पेंशन वाले लोगों की संख्या ५१ लाख, ३५ हजार, १३५ है। एकल नारी पेंशन भोगियों की संख्या १८ लाख, ३ हजार, १८८ और विशिष्ट योग्यजन की संख्या ६ लाख, २५ हजार, ८४० के साथ ही कृषक वृद्धजन पेंशन भोगियों की संख्या २ लाख, ७ हजार, ९०९ है।
केंद्र सरकार की स्कीम के लाभार्थियों की संख्या
केंद्र सरकार की स्कीम के लाभार्थियों की संख्या भी १३ लाख, ५२ हजार, २१ है। इसमें वृद्धावस्था पेंशन भोगियों की संख्या ९ लाख, १८ हजार, ९५९ है। विधवा पेंशन के लाभार्थियों की संख्या ४ लाख, १६ हजार, ३२७ है और १६ हजार ७३५ दिव्यांग जन हैं, जिन्हें पेंशन मिलती है।
रमजान में पत्नी ने संबंध बनाने से मना किया तो नाबालिग लड़के का किया बलात्कार!
हत्या के बाद मांगी रु. १० लाख की फिरौती
मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
कानपुर के बिल्हौर में ५वीं कक्षा के एक छात्र का अपहरण कर दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। आरोपियों ने शव को कुएं में फेंकने के बाद परिवार से १० लाख रुपए की फिरौती भी मांगी थी। पुलिस ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर एक आरोपी नजर अली उर्फ हुसैन को गिरफ्तार कर लिया, जबकि दूसरा आरोपी अजहर उर्फ अज्जू फरार है।
पुलिस पूछताछ में आरोपी हुसैन ने बताया कि रमजान के महीने में पत्नियां रोजे के चलते शारीरिक संबंध बनाने से मना कर रही थीं। इसी कारण उसने अपने दोस्त के साथ मिलकर गांव के १३ वर्षीय किशोर का अपहरण करने की साजिश रची। आरोपी की नीयत थी कि बच्चे के साथ दुष्कर्म भी किया जाए और फिरौती से पैसे भी कमाए जाए। दोनों आरोपियों ने पहले से ही बच्चे के अपहरण की योजना बना रखी थी। रात साढ़े आठ बजे के करीब दोनों ने बच्चे को पकड़कर रस्सी से बांध दिया। दोनों ने उसके साथ दुष्कर्म किया और चीखने पर मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। हालत बिगड़ने पर पीड़ित बेहोश हो गया, जिसके बाद दोनों ने रस्सी से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। शव को कुएं में फेंकने के बाद परिवार से १० लाख की फिरौती मांगी। परिजनों ने जब पुलिस को सूचना दी तो जांच में पाया गया कि मैसेज उसी फोन से भेजा गया था, जो आरोपी के पास था। पुलिस ने तुरंत उसे हिरासत में लिया और तलाशी में मृतक का बंद मोबाइल उसकी जेब से बरामद हुआ।
पूछताछ में उसने पूरी घटना स्वीकार कर ली। पुलिस ने बताया कि एक आरोपी गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि अजहर उर्फ अज्जू फरार है।
ब्लैक फ्राइडे : ३१ साल बाद भी गूंज रही है धमाकों की धमक
फिरोज खान
कहते हैं वक्त के साथ जख्म भर जाते हैं, लेकिन कुछ खूंरेज घटनाएं ऐसी होती हैं जिनका दर्द और गम कभी भुलाया नहीं जा सकता। १९९३ का मुंबई सीरियल ब्लास्ट काली स्याही से इतिहास के पन्नों में दर्ज है। ३१ साल का अरसा बीत चुका है। आतंकवादी हमले का वह मंजर बेहद दर्दनाक था। चारों ओर खून से लथपथ लाशें और लहूलुहान लोग पड़े नजर आ रहे थे। धमाकों से लोगों के चीथड़े उड़ गए थे। धमाकों की चीख माहौल में गूंज रही थी। रूह कंपा देनेवाली ये हकीकत आज भी देश के दिल और दिमाग पर छाई हुई है।
मास्टरमाइंड पकड़े से दूर
१९९३ सिलसिलेवार बम धमाकों के मास्टरमाइंड और टाइगर मेमन ३१ साल बाद भी गिरफ्तार नहीं हुए हैं। दोनों आतंकी पाकिस्तान के कराची में ऐश व आराम की जिंदगी बसर कर रहे हैं। जिन्होंने अपनों को खोया, जो अपाहिज हुए उनके दिलों में आज भी रंज है कि दोनों पकड़े क्यों नहीं गए। असल में भारत का भगोड़ा और आतंकवादी दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन ने सीरियल ब्लास्ट की साजिश सऊदी अरब में रची थी। हमले को अंजाम देने के लिए दाऊद और टाइगर मेमन ने फंड इकट्ठा किया था। १९९३ के सीरियल ब्लास्ट को दाऊद इब्राहिम के इशारे पर टाइगर मेमन ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से अंजाम दिया था। पाकिस्तान में समुद्र के रास्ते हथियार भेजे थे, जिसे टाइगर ने हासिल किया था और अपने गुर्गों तक पहुंचाया था। टाइगर मेमन ही वह शख्स है, जिसने फरवरी १९९३ में अपने लोगों को हथियार चलाने बम और रॉकेट लॉन्चर चलाने के लिए पाकिस्तान भेजा था। टाइगर ने कई लोगों को सधेरी और बोरघट में ट्रेनिंग कराई। ११ मार्च, १९९३ को टाइगर ने अपने घर के पास वाहनों में आरडीएक्स लोड करवाया था, जिन्हें अलग-अलग जगह पर पार्क किया और धमाकों को अंजाम दिया। १२ मार्च, १९९३ की सुबह टाइगर फ्लाइट पकड़कर फरार हो गया और उस दिन दोपहर डेढ़ बजे बम ब्लास्ट शुरू हो गए। इसके बाद से वह आज तक पकड़ा नहीं गया।
मोदी भी फेल
दाऊद इब्राहिम को भारत लाने की कवायद कई सालों से चल रही है। मोदी ने भी वादा किया था कि सबसे पहले दाऊद को पाकिस्तान से भारत खिंचवाकर ले आएंगे। यह मोदी सरकार के एजेंडे में भी है। लोकसभा चुनाव के समय मोदी ने कहा था कि दाऊद को भारत लाने जैसे ऑपरेशन प्रेस रिलीज जारी करके नहीं किए जाते। साल २०१४ में ही मोदी ने कहा था कि अगर वो सत्ता में आए तो सबसे पहले दाऊद इब्राहिम को पकड़कर ले जाएंगे। यह भी चर्चा थी कि सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी की तरह दाऊद की गिरफ्तारी भी मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक होगा। किए गए वादे को दस साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक मास्टरस्ट्रोक की खबर नहीं आई है।
मोदी ने भी वादा किया था कि सबसे पहले दाऊद को पाकिस्तान से भारत खिंचवाकर ले आएंगे। यह मोदी सरकार के एजेंडे में भी है। लोकसभा चुनाव के समय मोदी ने कहा था कि दाऊद को भारत लाने जैसे ऑपरेशन प्रेस रिलीज जारी करके नहीं किए जाते।
जम्मू को अलग होने पर किया जा रहा मजबूर: शिवसेना
उद्योग, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, धार्मिक व अन्य पर्यटन में फिर खाली हाथ रहा जम्मू
सामना संवाददाता / जम्मू
हाल ही में पेश बजट में जम्मू संभाग की बेहतरी व अर्थव्यवस्था को गति देने के तमाम वादे एक बार फिर हवा-हवाई साबित हुए हैं। लद्दाख की तरह जम्मू संभाग को भी अपने हकों के लिए अलग राज्य की मांग पर मजबूर किया जा रहा है, ऐसा शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) जम्मू-कश्मीर इकाईप्रमुख मनीष साहनी का कहना है।
मनीष साहनी ने कहा कि जम्मू संभाग के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का नजरिया जस का तस है। हाल ही में उमर सरकार द्वारा पेश बजट में जम्मू के पर्यटन, धार्मिक स्थलों के विकास व अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए किसी विशेष पैकेज की घोषणा नहीं की गई। वहीं किसानों की लाइफलाइन रणबीर कनाल व डोगरा विरासत स्थलों की देख-रेख पर भी कोई विशेष राशि की घोषणा नहीं हुई। डोगरी भाषा व सांस्कृतिक प्रोत्साहन के लिए भी सरकार समेत भाजपा विधायक खामोशी ओ़ढ़े रहे।
मंदिरों के शहर जम्मू में शराबबंदी पर हो-हल्ला भी विक्रेताओं पर दबाव की राजनीति से आगे नहीं बढ़ा। साहनी ने कहा कि समय आ चुका है कि जम्मू संभाग अपने हकों के लिए आवाज बुलंद करे। साहनी ने कहा कि बजट सत्र के संपन्न होते ही शिवसेना व सैनिक समाज पार्टी द्वारा संयुक्त रूप से `जम्मू को दो अपना हक’ अभियान के तहत जम्मू को स्थाई राजधानी बनाने व अलग राज्य के दर्जे की मांग पर जनभावना को जानने का प्रयास किया जाएगा। साहनी ने कहा कि अगर उमर सरकार जम्मू को कश्मीर के साथ बनाए रखना चाहती है तो जम्मू को स्थायी राजधानी घोषित किया जाए, अन्यथा लेह-लद्दाख की तरह जम्मू संभाग को अपने हकों के लिए अलग राज्य बनाने की मांग उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
राज की बात : मिलीभगत की राजनीति का गुजरात पैटर्न
द्विजेंद्र तिवारी मुंबई
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुजरात में पार्टी नेताओं के एक वर्ग पर ‘भाजपा के साथ मिलीभगत’ का आरोप लगाया और कहा कि पार्टी को जरूरत पड़ने पर ‘२० से ३० लोगों’ को हटाने के लिए तैयार रहना चाहिए। लोकसभा में विपक्ष के नेता ने कहा कि राज्य में कांग्रेस का पुनरुद्धार ‘दो से तीन साल की परियोजना नहीं, बल्कि ५० साल की परियोजना’ है। कांग्रेस नेता की यह चिंता राजनीति के उस दौर पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जहां बहुत सारे लोगों के लिए विचारधारा मायने नहीं रखती और वे सत्ता को सिर्फ स्वार्थ सिद्धि का माध्यम मानते हैं। मिलीभगत की राजनीति का यह गुजरात पैटर्न है। उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र और गुजरात तक ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने दलों से गद्दारी करते हैं। ऐसे लोग कभी खुलकर तो कभी पार्टी के अंदर रहकर अपनी पार्टी को नुकसान पहुंचाते हैं। महाराष्ट्र में ही ऐसे लोगों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा, जिन्हें कांग्रेस ने मुख्यमंत्री तक बनाया। ऐसे लोगों ने राहुल गांधी का साथ छोड़ा, जिन्हें मंत्री से लेकर हर राजनैतिक लाभ मिला।
३० वर्ष से सत्ता से बाहर
गुजरात में कांग्रेस पिछले ३० वर्षों से सत्ता से बाहर है। क्या इन तीस वर्षों में भाजपा ने गुजरात का कायाकल्प कर दिया है? क्या वहां गरीबी और बेरोजगारी का प्रतिशत कम है और देश के बाकी राज्यों से हालात बेहतर हैं? इन सभी प्रश्नों के उत्तर न में हैं। ऐसा होने पर भी कांग्रेस गुजरात के लोगों की उम्मीदों पर खरा क्यों नहीं उतर पा रही है? इसका एक जवाब यह है कि गुजरात में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग आम जनता से कटा हुआ है और भाजपा के साथ मिला हुआ है।
२०१७ के विधान सभा चुनाव में भाजपा हारते-हारते बची। भाजपा को ९९ और कांग्रेस को ७७ सीटें मिलीं। इसके बाद २०२२ के विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी द्वारा १२ प्रतिशत वोट लेने से भाजपा ने १५६ सीटों के साथ भारी बहुमत प्राप्त किया। कांग्रेस को सिर्फ १७ सीटें मिलीं, जिनमें से पांच विधायक बाद में भाजपा में चले गए। खास बात यह है कि दोनों चुनावों में भाजपा ५० प्रतिशत के आसपास रही, जबकि भाजपा विरोधी प्रमुख दलों ने कुल मिलाकर ४० प्रतिशत वोट हासिल किए। २०१७ में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री अजेय कहे जा रहे थे, तब गुजरात में सत्ता जाते-जाते बची। उस समय भी यह बात उभरी कि राज्य के कई बड़े नेताओं से लेकर बूथ लेवल तक कांग्रेसी भाजपा के साथ मिल गए थे। राहुल गांधी को कमजोर करने के लिए एक पूरी लॉबी भाजपा से मिली हुई थी। इनमें से कई लोग आगे चलकर भाजपा में शामिल भी हो गए।
खेल सिर्फ ५ प्रतिशत का
इसका अर्थ यह है कि खेल सिर्फ ५ प्रतिशत का है। नरेंद्र मोदी जी के स्वर्णिम काल में भी भाजपा विरोधी वोट लगभग ४० प्रतिशत थे। इस तरह देखा जाए तो राज्य में विपक्ष वोट कम नहीं हैं। यह बात मीडिया के एक वर्ग और भाजपा ने लोगों के दिमाग में डाल दी है कि कांग्रेस में कोई ताकत नहीं है। यह नैरेटिव सेट करने में भाजपा काफी आगे है। कांग्रेस के लोगों में ही आत्मविश्वास की भारी कमी है। अगर ऐसा न होता तो पार्टी २०१७ में ७७ सीटों से २०२२ में सीधे १७ सीटों पर न आ जाती। इसमें बड़ा योगदान जहां आम आदमी पार्टी के १२ प्रतिशत वोटों का रहा, वहीं कांग्रेस के कई नेताओं का खुलेआम भाजपा के लिए काम करना भी एक बड़ा कारण था। ऊपर से यह हवा भी फैलाई गई कि कांग्रेस से जो जीतेगा, वह भाजपा में ही जाएगा। २०२२ की करारी हार के बाद से गुजरात में कांग्रेस लगभग ठप हो गई। ७७ विधायक होने के बावजूद २०१७ से २०२२ के बीच गुजरात में भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस कोई हवा नहीं बना पाई।
पार्टी के तौर पर कांग्रेस के सामने एक और बड़ा सवाल यह है कि नए लोग कब आएंगे और वे कांग्रेस में क्यों आएंगे? लोगों को यह बताना और समझाना आवश्यक है कि विपक्ष क्या कर सकता है। अगर आप विपक्ष में भी रहते हैं, तो आप हजारों लोगों के जीवन पर प्रभाव डाल सकते हैं और एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
कांग्रेस करो या मरो वाली स्थिति में है। जिन लोगों ने अभी तक पार्टी नहीं छोड़ी है, वे जानते हैं कि भाजपा में उनके लिए कुछ नहीं है, लेकिन व्यापार, रियल एस्टेट या व्यापारिक और भाजपा के सत्ता में होने के कारण उनके अपने निजी हित हैं। ऐसे ही मौन या तटस्थ लोग कांग्रेस का नुकसान कर रहे हैं।
गिरावट राज्य के
शीर्ष नेतृत्व में भी
लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि शीर्ष से ही गिरावट पर चल रही पार्टी के लिए कोई रास्ता आसान नहीं होगा। शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ दिल्ली मुख्यालय में बैठे नेताओं के खिलाफ भी शिकायत है। समस्या यह भी है कि शीर्ष नेतृत्व अनिर्णायक है। कई बार ऐसा होता है जब एआईसीसी संवाद करना बंद कर देती है और राज्य कार्यकारिणी की किसी भी शिकायत पर ध्यान नहीं देती है। जब आपको जमीनी स्तर से बदलाव की जरूरत होती है, तो इसे उदाहरण के तौर पर करना होता है।
राहुल गांधी का यह दौरा गुजरात में ऐसे समय हुआ, जब नगरपालिकाओं पर भाजपा ने हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में अपने परचम फहरा दिए। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की भाजपा से मिलीभगत और कमजोर जमीनी नेटवर्क का नतीजा यह रहा कि भाजपा ने ६८ नगर पालिकाओं में से ६२ पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस को केवल एक ही नपा मिली। २०१८ की तुलना में १२ नगर पालिकाओं का नुकसान हुआ। ६८ नगर पालिकाओं की १,८४० सीटों में से, भाजपा ने १,३४१ और कांग्रेस ने २५२ जीतीं। इसका अर्थ यह हुआ कि २०१७ से भाजपा के खिलाफ जो हवा बन रही थी और जो २०१८ में कुछ हद तक जारी थी, वह २०२२ आते-आते खत्म होने लगी। कांग्रेस के स्थानीय राज्य नेताओं ने इन हालात को काबू नहीं किया। ऐसे में राहुल गांधी का दौरा और इस दौरे में खरी-खरी कहना, उनकी चिंता को रेखांकित करता है। अब गुजरात के कांग्रेस नेता क्या मिलीभगत के इस पैटर्न को नाकाम कर पाएंगे, समय इसे परखेगा।
(लेखक कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)